आर्योद्देश्यरत्नमाला
आर्योद्देश्यरत्नमाला आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा संवत १९२५ (१८७३ ईसवीं) में रचित एक लघु पुस्तिका है।
आर्योद्देश्यरत्नमाला़ | |
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पुस्तक रचयिता | |
लेखक | स्वामी दयानंद सरस्वती |
मूल शीर्षक | आर्योद्देश्यरत्नमाला़ |
अनुवादक | कोई नहीं, मूल पुस्तक हिन्दी में है |
चित्र रचनाकार | अज्ञात |
आवरण कलाकार | अज्ञात |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
श्रृंखला | शृंखला नहीं |
विषय | वैदिक धर्म के लक्ष्य व परिभाषा |
प्रकार | धार्मिक, सामाजिक |
प्रकाशक | परोपकारिणी सभा व अन्य |
प्रकाशन तिथि | १८७३ |
अंग्रेजी में प्रकाशित हुई |
१८७३ |
मीडिया प्रकार | मुद्रित पुस्तक |
पृष्ठ | ८ |
आई॰एस॰बी॰एन॰ | अज्ञात |
ओ॰सी॰एल॰सी॰ क्र॰ | अज्ञात |
पूर्ववर्ती | शृंखला नहीं |
उत्तरवर्ती | शृंखला नहीं |
सामग्री व प्रारूप संपादित करें
इस पुस्तक में क्रमवार १०० शब्दों की परिभाषा दी गई है। ईश्वर, धर्म, अधर्म से प्रारंभ कर के उपवेद, वेदांग, उपांग आदि की परिभाषा यहाँ उपलब्ध है।
अधिकतर परिभाषाएँ इन शब्दों के लोक व्यवहार में प्रयुक्त अर्थों से भिन्न हैं, अर्थात् शाब्दिक अर्थ और भावार्थ के आधार पर परिभाषा व वर्णन किया गया है।
यह पुस्तक आर्य समाज की स्थापना के २ वर्ष पूर्व लिखी गई थी। स्वामी दयानंद का मानना था कि कई शब्दों और विचारों को सनातन वैदिक धर्म में रूढ अर्थ दे दिए गए हैं जो कि अनुचित हैं।[1] इसी लक्ष्य से इस पुस्तक में यह परिभाषाएँ दी गई हैं।
छपी हुई पुस्तक केवल ८ पृष्ठों की है। भाषा की शैली संस्कृतनिष्ठ हिन्दी है। उस समय हिन्दी में काफ़ी कम पुस्तकें प्रकाशित होती थीं, स्वामी दयानंद हिंदी का प्रयोग प्रकाशन में करने वाले कुछ अग्रणियों में गिने जाते हैं और यह पुस्तक भी इसी का एक उदाहरण है।
सन्दर्भ संपादित करें
- ↑ (अंग्रेज़ी) बावा सी सिंह