आलार कालाम गौतम बुद्ध के समकालीन एक दार्शनिक एवं योगी थे। वे सांख्य दर्शन के विशेषज्ञ थे। पालि ग्रन्थों के अनुसार, वे गौतम बुद्ध के प्रथम गुरु थे।

गौतम बुद्ध के समय समाज में सांख्य दर्शन का काफी प्रभाव था और इससे गौतम बुद्ध भी काफी प्रभावित थे। उनकी भी इच्‍छा थी कि सांख्य दर्शन का अध्ययन करें और इसलिए वे वैशाली के आश्रम में जा पहुंंचे जहाँ (गोंड़ी) धर्म के (आदिवासियों) के पहले धर्म गुरु (पारी कूपार लिंगो संस्थापक) के बारहवें गोंड़ी धर्म गुरु (उत्तराधिकारी) आलार कालाम लिंगो रहते थे। आलार कालाम ने गौतमबुद्ध को न सिर्फ सांख्य-दर्शन की शिक्षा दी बल्कि उने ध्यान मार्ग के सिद्धान्त तथा समाधि मार्ग का ज्ञान भी प्रदान किया | स्वयं आलार कालाम भी ध्यानाचार्य के रूप में कौशल जनपद में प्रसिद्ध थे | छ:वर्षों तक उनके पास रहकर गौतमबुद्ध ने सांख्य-मार्ग तथा समाधि-मार्ग का उचित अध्ययन किया और इनपर दक्षता और प्रवीणता हासिल की।

पारी कूपार लिंगो गोंड धर्म के संस्थापक थे और लिंगो वाद (कोया पुणेम) दर्शन के संस्थापक थे। गोंड़ी धर्म के बारहवे धर्मगुरू आलार -कालाम ने लिंगो वाद (कोया पुणेम) के तत्वज्ञान को सांख्य-दर्शन के रूप में सबके सम्मुख प्रस्तुत किया | लिंगो दर्शन के तत्वज्ञान को आर्यों ने प्रायः नष्ट कर दिया था परन्तु यह आलार कालाम के ही अटूट प्रयासों का नतीजा है कि लिंगो तत्वज्ञान को न सिर्फ नष्ट होने से बचाया है उन्होनें तत्पश्चात उसमें एक नई जान भी फूक दी थी। कपिलमुनि ने सांख्यदर्शन (लिंगो वाद (कोया पुणेम) पर आधारित " सांख्यसूत्र " की रचना की।

सांख्य सूत्र की खासियत ये है कि इस पूरे ग्रंथ में ईश्वर या ईश्वरीय शक्ति का जिक्र कहीं नहीं होता है ; पर संपूर्णत: दर्शन शास्त्र (Philosophy) पर आधारित इस ग्रंथ को पूरे विश्व में एक महान एवं पवित्र ग्रंथ का दर्जा दिया जाता है और ये ग्रंथ पूर्णता पारी कूपार लिंगो के लिंगो वाद (कोया पुणेम) दर्शन पर आधारित है पूर्णत:।गौरतलब है कि कोयापुनेम दर्शन भारतीय दर्शन में अभी तक नजरअंदाज रहा है जो प्रकृति आधारित दर्शन है।जिसके अंतर्गत जनजातीय सामुदायिक व्यवस्था को प्राकृतिक नियमों के अनुरूप व्यवस्थित किया गया है। उदाहरण स्वरूप टोटम व्यवस्था को लिया जा सकता है। वर्तमान भारतीय दर्शन के अंतर्गत कोयापुनेम दर्शन व्यापक अनुसंधान का विषय है।