आसावरी ( या, आसावरी) प्राचीन भारतीय संगीताचार्यों के अनुसार राग 'श्री' की एक प्रमुख रागिनी। ऋतु, समय और भावादि का वैज्ञानिक विश्लेषण करके प्रमुख 132 प्रकार के राग-रागिनियों की कल्पना की गई थी किंतु आधुनिक विद्वानों ने यह विभेद हटाकर सबको राग की ही संज्ञा दी है। आशावरी वियोगशृंगार की रागिनी (राग) है और इसके गायन का समय दिन का द्वितीय प्रहर है। इसका लक्षण 'रागप्रकाशिका' नामक ग्रंथ (सन्‌ 1899 ई.) में यों दिया है:

आशवरी रागिनी, १६१० ई (रागमाला पेंटिंग्स)
पीतम के बिरहा भरी, इत उत डोलत धाय।
ढूंढ़त भूतल शैल बन, कर मल मल पछिताय॥

अशावरी रागिनी के जो चित्र उपलब्ध हैं उनमें अपना जातीय परिधान पहने एक युवती बैठी सर्पों से खेल रही है और सामने दो बीनकार बैठे बीन बजा रहे हैं।

संरचना संपादित करें

आरोह: S R m P d S'

अवरोह: S' n d P m P g R S


इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  • Bor, Joep (ed). Rao, Suvarnalata; der Meer, Wim van; Harvey, Jane (co-authors) The Raga Guide: A Survey of 74 Hindustani Ragas. Zenith Media, London: 1999.

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें