उदयादित्य पंवार या पोवार , मालवा का राजा था जिसने जयसिंह के बाद राजधानी से मालवा पर राज किया। चालुक्यों से संघर्ष पहले से ही चल रहा था और उसके आधिपत्य से मालवा अभी हाल ही अलग हुआ था जब उदयादित्य लगभग १०५९ ई. में गद्दी पर बैठा। मालवा की शक्ति को पुन: स्थापित करने का संकल्प कर उसने चालुक्यराज कर्ण पर सफल चढ़ाई की। कुछ लोग इस कर्ण को चालुक्य न मानकर कलचुरि लक्ष्मीकर्ण मानते हैं। इस संबंध में कुछ निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता। इसमें संदेह है कि उदयादित्य ने कर्ण को परास्त कर दिया। उदयादित्य का यह प्रयास परमारों का अंतिम प्रयास था और ल. १०८८ ई. में उसकी मृत्यु के बाद परमार वंश की शक्ति उत्तरोत्तर क्षीण होती गई। उदयादित्य की अभिलेखों में भोज का 'बंधु' कहा गया है। कुछ आश्चर्य नहीं जो वह परमारों की दूसरी शाखा का रहा हो। उदयपुर और नागपुर के अभिलखों में इसका उल्लेख राजा भोज के उत्तरधिकारी के रूप में हुआ है।

गंजबसौदा के पास स्थित उदयपुर का शिव मन्दिर

उत्तराधिकारी संपादित करें

उदयादित्य के तीन पुत्र थे । प्रथम लक्ष्मनदेव द्वितीय नरवर्मन तथा तृतीय जगदेव पंवार पिता उदयादित्य के राजकाल में ही लक्ष्मनदेव मालवा के दख्खन की उपराजधानी नगरधन (रामटेक नागपुर समिप) से इस प्रदेश का सुबेदार था। उदयादित्य की मृत्यु १०८६ इसा में हुई। उदयादित्य के मृत्यु पश्चयात धार राजसिंहासन पर नरवर्मनदेव का राज्याभिषेक हूआ और उसने मालवा प्रांत पर ११३३ तक राज किया। [1]

सन्दर्भ संपादित करें

  1. [1] Archived 2018-04-23 at the वेबैक मशीन.