उपदानव तारा ऐसा तारा होता है जो मुख्य अनुक्रम के बौने तारों से तो अधिक चमकीला हो लेकिन इतनी भी चमक और द्रव्यमान न रखता हो के दानव तारों की श्रेणी में आ सके। यर्कीज़ वर्णक्रम श्रेणीकरण में इसकी चमक की श्रेणी "IV" होती है। वॄश्चिक तारामंडल का सर्गस नाम का तारा (जिसका बायर नाम "θ स्को" है) ऐसे एक चमकीले दानव का उदाहरण है।

तारों की श्रेणियाँ दिखने वाला हर्ट्ज़स्प्रुंग-रसल चित्र

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"उपदानव तारे" को अंग्रेज़ी में "सबजाएंट स्टार" (subgiant star) कहा जाता है।

वर्णन संपादित करें

वैज्ञानिकों का मानना है के उपदानव तारों के केन्द्रों में हाइड्रोजन ईंधन ख़त्म हो चुका होता है जिस से उसका केंद्र सिकुड़ जाता है और अंदरूनी दबाव बढ़ने से केंद्र का तापमान बढ़ जाता है। इस बढ़े हुए तापमान और दबाव की वजह से केंद्र के इर्द-गिर्द की हाइड्रोजन गैस में नाभिकीय संलयन (न्यूक्लीयर फ्यूज़न) शुरू हो जाता है और तारा फूलने लगता है। तारे की यह अवस्था कई अरबों साल तक रह सकती है, जिसके बाद यह फूलकर एक लाल दानव तारा बन जाता है। जब तारा अपनी उपदानव अवस्था में होता है तो उसकी चमक अधिक नहीं बदलती और उसके इर्द-गिर्द कभी-कभी ग्रह बन सकते हैं। खगोलशास्त्री अनुमान लगते हैं के मुख्य अनुक्रम के तारों के आलावा सिर्फ़ उपदानव ही ऐसे तारे होते हैं जिनके ग्रहों पर जीवन पनप सके।

इन्हें भी देखें संपादित करें