ककसाड़ नृत्य या ककसार नृत्य छत्तीसगढ़ के बस्तर ज़िले की मुड़िया और अबुझमाड़िया जनजाति के युवक-युवतियों द्वारा किया जाने वाला एक लोकनृत्य है। यह नृत्य, फसल और वर्षा के देवता ‘ककसाड़’ की पूजा के उपरान्त किया जाता है। इस नृत्य के साथ संगीत और घुँघरुओं की मधुर ध्वनि से एक रोमांचक वातावरण उत्पन्न होता है। इस नृत्य के माध्यम से युवक और युवतियों को अपना जीवनसाथी ढूँढने का अवसर प्राप्त होता है। यह एक मूलतः जात्रा नृत्य है इस लिए इसे जात्रा नृत्य भी कहते हैं।[1] गांव के धार्मिक स्थल पर मुरियाया जनजाति के लोग वर्ष में एक बार ककसाड़ यात्रा पर पूजा का आयोजन करते हैं। लिंगोपेन उनके प्रमुख देवता हैं जिनको प्रसन्न करने के लिए युवक और युवतियों अपनी साज-सज्जा करके सम्पूर्ण रात नृत्य-गायन करते हैं। पुरुष कमर में घंटी बाँधते हैं जबकि स्त्रियां सिर पर विभिन्न फूलों और मोतियों की मालाएं पहनती है।[2][3]

ककसाड़ नृत्य एक धार्मिक नृत्य है जिसे करते समय नर्तक युवा अपने कमर में पीतल अथवा लोहे की घंटियां से बना कमरबंध, हिरनांग बांधे रहते हैं। इसके अलाव युवा अपने सिर पर पगड़ी, कलगी और कौड़ियों से श्रृंगार कर आकर्षक वेशभूषा में रहते हैं। मांदरी की ताल नृत्य को गति प्रदान करती है। युवतियाँ छोटे आकार के मजीरे (चिटकुल) बजाते हुए मांदरी की थाप के साथ संगत करते हुए नृत्य करतीं हैं।

मुरिया जनजाति के ककसाड़, मांदरी और गेंडी नृत्य अपनी गीतत्मक और सुन्दर विन्यास के लिये अत्यन्त लोकप्रिय हैं।

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इन्हें भी देखें संपादित करें