1739 में नादिरशाह के आक्रमण और दिल्ली विजय के परिणामस्वरूप मुग़ल कलाकार, मैदानी इलाकों की अनिश्चित्तताओं से बचने के लिए पहाड़ी क्षेत्रों की ओर पलायन कर गए। उन्हें वहाँ जाते ही आश्रयदाता तैयार मिले, जिसके फलस्वरूप चित्रकारी की कांगड़ा शैली विकशित हुई। अठारहवी शताब्दी के मध्य में कांगड़ा के कलाकारों ने एक नई शैली विकसित कर ली, जिसने लघु चित्रकारी में एक नई जान डाल दी। उनकी प्रेरणा का स्त्रोत, वहां की वैष्णव परंपराएँ थी। ठंडे नील और हरे रंगों का प्रयोग और विषयों का काव्यात्मक निरूपण कांगड़ा शैली की विशेषता थी।