काला पानी (1958 फ़िल्म)

हिन्दी भाषा में प्रदर्शित चलवित्र

काला पानी 1958 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। इस फिल्म का निर्माण देव आनंद ने नवकेतन फिल्म के लिए किया था। फिल्म में संगीत सचिन देव बर्मन का था।

काला पानी
चित्र:काला पानी.jpg
काला पानी का पोस्टर
निर्देशक राज खोसला
अभिनेता देव आनन्द,
मधुबाला,
नलिनी जयंत,
आग़ा,
नासिर हुसैन,
डी के सप्रू,
किशोर साहू,
कृष्ण धवन,
मुकरी,
जानकी दास,
प्रवीन कौल,
मुमताज़ बेग़म,
हीरा सावंत,
प्रदर्शन तिथि
1958
देश भारत
भाषा हिन्दी

संक्षेप संपादित करें

करण को पता चलता है कि उसके पिता जेल में हैं जबकि उसकी माँ बचपन से ही उससे झूठ बोलती है कि उसके पिता का देहांत हो चुका है। करण अपने पिता से मिलता है और उसे पता चलता है कि उसके पिता जिस हत्या के जुर्म में सजा काट रहे हैं, वह हत्या उन्होंने की ही नहीं है। करण अपने पिता की बेगुनाही को साबित करने के लिए सबूतों की तलाश में लग जाता है जिससे वह केस को फिर से खुलवा सके और अपने पिता को आज़ाद करा सके।

करण की मुलाक़ात एक गवाह से होती है जिसने अदालत में उसके पिता के पक्ष में गवाही दी थी। इस गवाह से उसे इंस्पेक्टर मेहता के बारे में पता चलता है जो उसके पिता के मामले में जांच अधिकारी थे।

करण जिस आशा के घर में पेइंग गेस्ट के तौर पर रहता है, वह आशा एक पत्रकार है।

इंस्पेक्टर मेहता से करण को अन्य गवाह किशोरी और जुम्मन के बारे में पता चलता है। इंस्पेक्टर मेहता यह स्वीकार करते हैं कि उन्हें दाल में कुछ काला लगा था लेकिन वह बचाव पक्ष के वकील के आगे चुप हो गए थे। बचाव पक्ष के वकील दीवान सरदारीलाल थे। इंस्पेक्टर मेहता करण को बताते हैं कि किशोरी और जुम्मन किसी चिट्ठी के बारे में बता रहे थे जो उसके पिता को निर्दोष साबित करने में महत्वपूर्ण हो सकती है।

करण किशोरी को रिझाने की कोशिश करते हैं जिससे वह चिट्ठी हासिल कर सके। इसी बीच करण और आशा के बीच में भी प्रेम पनपने लगता है।

करण वकील दीवान सरदारीलाल से मिलता है कि वह कैसे केस को फिर से खुलवाए और अपने पिता को निर्दोष सिद्ध कर सके। करण वकील सरदारीलाल से पूछता है कि क्या किशोरी से चिट्ठी हासिल कर लेने से वह ऐसा कर पाएगा. वकील सरदारीलाल उसको कहते हैं कि पहले वह चिट्ठी हासिल करे, उसको देखने के बाद ही कुछ कहा जा सकेगा।

दीवान सरदारीलाल खलनायक का काम करता है और वह राय बहादुर जसवंत राय, जिसने सच में खून किया था, को बता देता है कि करण, किशोरी से चिट्ठी हासिल करने की फ़िराक में है। जसवंत राय, जुम्मन को आदेश देता है कि वह इसके बारे में किशोरी को बता दे। किशोरी, करण पर आरोप लगाती है कि उसने उसे धोखा दिया है और झूठा प्रेम दिखाया है। करण जवाब देता है कि जिस किशोरी के झूठ से उसके पिता जेल में हैं, उसको कोई हक़ नहीं है कि वह किसी और को झूठा कहे. सच जानकार किशोरी को पछतावा होता है और वह करण को चिट्ठी दे देती है।

करण ख़ुशी से झूमता हुआ चिट्ठी दीवान सरदारीलाल को देता है। दीवान सरदारीलाल करण के सामने ही चिट्ठी को जला देता है। करण समझ जाता है कि वकील सरदारीलाल हत्यारों से मिला हुआ है। दोनों में हाथापाई होती है और पुलिस करण को गिरफ्तार कर लेती है।

आशा करण की मदद करती है और अख़बार में दीवान सरदारीलाल के बारे छापने का प्रयास करती है लेकिन संपादक आशा को ऐसा करने से रोक देते हैं क्यों की आशा के पास दीवान सरदारीलाल के बारे में ऐसा कुछ लिखने के लिए सबूत नहीं होता है।

किशोरी को इसके बारे में पता चलता है और वह वास्तविक चिट्ठी लेकर आती है। करण इस चिट्ठी के आधार पर केस को फिर से खुलवाता है। दीवान अपने अपराध कुबूल करता है। शंकरलाल के जेल से रिहा होते है कहानी ख़त्म हो जाती है।

चरित्र संपादित करें

मुख्य कलाकार संपादित करें

दल संपादित करें

संगीत संपादित करें

"नजर लागी राजा तोरे बंगले पर " बहुत पसंद किया गया था। "अच्छा जी मै हारी चलो मान जाओ ना" आज भी लोग गुनगुनाते हैं।

रोचक तथ्य संपादित करें

परिणाम संपादित करें

बौक्स ऑफिस संपादित करें

समीक्षाएँ संपादित करें

नामांकन और पुरस्कार संपादित करें

फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें