खस" खशा' कस' खासिया ' खश (आर्य)' एक प्राचीन बाह्लीकी भाषा बोल्ने ( हिन्द-आर्य ) पाजाडि जाति थी । इनकि लिपि को ब्रह्म लिपि तथा खरोष्ठी लिपि कहा जाता है। भारत के उतर मे और नेपाल मे आज भि खस जनजाति पाइ जाति है जिनहे क्षेत्रि और ठकुरी भि कहि जाति है ।

खस जाति गान्धार, त्रिगर्त और मद्र राज्यों में रहते थे

उत्पत्ति संपादित करें

( धार्मिक सिद्धांत- पुराणो के अनुसार अदिति के पुत्र कश्यप जी ने नंदनी गौ की रक्षा के लिए एक पुत्र पैदा किया जो खश था उन्ही के वंसज काश, कुश ,खशा कहलाये ) भारतीय साहित्यिक उल्लेखों में उन्हें गान्धार, बाह्लीक, त्रिगर्त और मद्र राज्यों के शासक वर्ग कहा गया थे । यह भी धारणा है खशा अनार्य अवैदिक आर्य है जो काश्गर अथवा मध्य एशिया के निवासी थे जिन्होंने कश्मीर को अपनी मुख्य भूमि बनाया और वे वहाँ से पूरे हिमालय भू भाग मे फैल गए

साहित्यिक उल्लेख संपादित करें

प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में खस जाति का उल्लेख मिलता है। महाभारत में उल्लेखित खसों ने कौरव के पक्ष से युद्ध लड़ा था ।दुर्योधन ने स्वय इनकी वीरता का यशोगान किया ये वैदिकक्षत्रियहै जो ऋग्वेद को सर्वोच्च मानते थे पुरोहित वादी व्यवस्था का विरोध करने तथा भगवान बुद्ध के मार्ग पर चलने से यह'व्रात्य क्षत्रिय' कहे गए और उन्हें व्रात्य क्षत्रिय के वंशज कहा गया था ।

वैसे हिंदू धर्म ग्रंथ मुख्य रूप से हर उस क्षत्रिय वंश चाहे वो शक्या हो या मल्ल हो या शुरसैंण वंश हो उनको वर्त्या क्षत्रिय ही कह देता है इस लिए यह विप्र वर्ग का अपना वर्चस्व और बौद्ध धर्म का विरोध का एक तरीका मात्र था ताकि वे अपने अनुसार धर्म को आर्यों पर थोप सके[1][1] मार्कण्डेय पुराण में खस एक हिमालयी राज्ये के रूप में वर्णित किया गया है।[1] महाभारत के सभापर्व एवं मार्कंडेय तथा मत्स्यपुराण में इनके अनेक उल्लेख प्राप्त होते है। महाभारत के कर्ण पर्व में खसों को पंजाब क्षेत्र और किरात वसाति के बीच वाले इलाकों में रहनेका वर्णन किया था ।

प्रस्थला मद्र-गान्धार किरट्ट नामतः खशः वसाति सिन्धु सौवीर ।[2]

समझा जाता है कि महाभारत में उल्लिखित खस का विस्तार हिमालय में पूर्व से पश्चिम तक था। राजतरंगिणी के अनुसार ये लोग कश्मीर के नैऋत्य कोण के पहाड़ी प्रदेश अर्थात् नैपाल में रहते थे। अत: वहाँ के निवासियों को लोग खस मूल का कहते हैं।

ऐतिहासिक उल्लेख संपादित करें

इतिहासकार खासकर जो भारत के हुए उनका लेख हमेशा गलत ही सिद्ध हुआ है क्यूँकि वे पुरवगृह और बुरे आशास् से इतिहास लेखन करते है। इसलिए उनकी जानकारी विश्वसनीय नही है

इन्होंने दो हज़ार वर्षो से अधिक वर्षो तक मध्य हिमालय मे शासन किया। इनके प्रमुख राजवंश अग्र लिखित है।

कर्कोट या कर्कोटक राजवंश

यह कश्मीर का एक राजवंश था, जिसने गोनंद वंश के पश्चात् कश्मीर पर अपना आधिपत्य जमाया। 'कर्कोट' पुराणों में वर्णित एक प्रसिद्ध नाग का नाम है। उसी के नाम पर इस वंश का नाम पड़ा। यह नाग वंशी क्षत्रियों का राजवंश था। कार्कोट (598 ई - 855 ई) :-

कार्कोट नागवंशी खस क्षत्रिय राजवंश की स्थापना दुर्र्लभवर्धन (598 CE) ने की थी। दुर्र्लभवर्धन गोन्दडिया वंश के अंतिम राजा बालादित्य के राज्य में अधिकारी थे। बलादित्य ने अपनी बेटी अनांगलेखा का विवाह कायस्थ जाति के एक सुन्दर लेकिन गैर-शाही व्यक्ति दुर्र्लभवर्धन के साथ किया था। कायस्थ एक व्यापारी वर्ग था जो इनके राज दरबार मे व्यापार का कार्य देखते थे


इस खस क्षत्रिय वंश के राजा ललितादित्य मुक्तापीड़, आठवीं सदी, में कश्मीर पर शासन कर रहे थे। साहस और पराक्रम की प्रतिमूर्ति सम्राट ललितादित्य मुक्तापीड का नाम कश्मीर के इतिहास में सर्वोच्च स्थान पर है। उसका सैंतीस वर्ष का राज्य उसके सफल सैनिक अभियानों, उसके अद्भुत कला-कौशल-प्रेम और विश्व विजेता बनने की उसकी चाह से पहचाना जाता है। लगातार बिना थके युद्धों में व्यस्त रहना और रणक्षेत्र में अपने अनूठे सैन्य कौशल से विजय प्राप्त करना उसके स्वभाव का साक्षात्कार है। ललितादित्य ने पीकिंग को भी जीता और 12 वर्ष के पश्चात् कश्मीर लौटा।कश्मीर उस समय सबसे शक्तिशाली राज्य था। उत्तर में तिब्बत से लेकर द्वारिका और उड़ीसा के सागर तट और दक्षिण तक, पूर्व में बंगाल, पश्चिम में विदिशा और मध्य एशिया तक कश्मीर का राज्य फैला हुआ था जिसकी राजधानी प्रकरसेन नगर थी। ललितादित्य की सेना की पदचाप अरण्यक (ईरान) तक पहुंच गई थी।

लोहरा राजवंश देव राजवंश कत्यूरी राजवंश कटोच् राजवंश डोगरा राजवंश शाह राजवंश नेपाल मल्ल राजवंश नेपाल राणा राजवंश नेपाल गढ़वाल मे 1518 तक 52 गढ़ की खशा क्षत्रियों की ठाकुराई रही

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें

  1. Thakur 1990, पृ॰ 286.
  2. Thakur 1990, पृ॰ 285.