खुदगर्ज़

1987 की राकेश रोशन की फ़िल्म
(खुदगर्ज़ (1987 फ़िल्म) से अनुप्रेषित)

खुदगर्ज़ 1987 में बनी हिन्दी भाषा की नाट्य फ़िल्म है। इसका निर्देशन और निर्माण राकेश रोशन ने किया। इसमें जितेन्द्र, शत्रुघ्न सिन्हा, गोविन्दा, भानुप्रिया, अमृता सिंह और नीलम प्रमुख भूमिकाओं में हैं और संगीत राजेश रोशन ने निर्मित किया है। यह राकेश रोशन द्वारा निर्देशित सबसे पहली फिल्म है।[1]

खुदगर्ज़

खुदगर्ज़ का पोस्टर
निर्देशक राकेश रोशन
लेखक कादर ख़ान (संवाद)
पटकथा मोहन कौल
रवि कपूर
निर्माता राकेश रोशन
अभिनेता जितेन्द्र,
शत्रुघ्न सिन्हा,
भानुप्रिया,
अमृता सिंह,
गोविन्दा,
नीलम
छायाकार पुष्पुल दत्ता
संपादक नन्द कुमार
संगीतकार राजेश रोशन
प्रदर्शन तिथियाँ
31 जुलाई, 1987
देश भारत
भाषा हिन्दी

संक्षेप संपादित करें

ये कहानी बचपन के दो दोस्तों की है, जिसमें से एक अमर सक्सेना काफी अमीर परिवार से होता है, और वहीं बिहारी सिन्हा काफी करीब होता है। बड़े होने के साथ ही साथ उनकी दोस्ती भी मजबूत होते जाती है। अमर (जितेन्द्र) को जया से, तो बिहारी (शत्रुघ्न सिन्हा) को लता से प्यार हो जाता है। इसके बाद उन लोगों की शादी भी तय हो जाती है।

अमर के पिता, बृज भूषण सक्सेना एक बहुत बड़ा पूँजीवादी होता है, जिसका सारा जीवन गणना करने में लगा होता है। वो अपने बेटे को शादी के उपहार के रूप में एक 5-सितारा होटल देने की सोचता है। वो जिस जगह पर ये होटल बनाने की सोचते रहता है, गलती से वो जगह बिहारी का होता है। वो पहले भी जमीन बेचने से कई लोगों को मना कर चुका होता है, क्योंकि उस जमीन से उसके पिता की यादें जुड़ी होती है।

अमर के कहने पर बिहारी मान जाता है, पर वो होटल की कमाई में पचास फीसदी हिस्सेदारी चाहते रहता है। बृज भूषण इस तरह का दस्तावेज़ बनाता है, जिससे होटल का मालिक वो अकेला रहे। बिहारी अशिक्षित होने के कारण दस्तावेज़ में अपना अंगूठा लगा देता है। पर होटल तैयार होने के बाद जिस दिन होटल खुलने वाला होता है, उसी दिन होटल के पास उसके घर को हटाने की योजना बनाई जाती है, क्योंकि इतने अच्छे होटल के पास उस तरह का घर एक काले धब्बे के समान दिख रहा होता है।

अमर उसे नए घर और होटल देने की पेशकश करता है, पर बिहारी अपने जगह के लिए काफी भावुक हो जाता है और उसे थप्पड़ मार देता है। इसके बाद उन दोनों के बीच गलतफहमी बनना शुरू हो जाती है। बृज भूषण के कंपनी में काम करने वाला भ्रष्ट कर्मचारी, सुधीर (किरन कुमार) इसका फायदा उठाता है और बृज भूषण के कहने पर बिहारी के घर और होटल को बुलडोजर से गिरा देता है और सारा आरोप अमर पर लगा देता है कि उसी ने शराब के नशे में उसे ऐसा काम करने को कहा था। अमर को भी लगता है कि उसने कहा होगा। वो वादा करता है कि वो बिहारी का घर और होटल अपने हाथों से फिर से वापस करेगा। पर वहीं बिहारी उसे चुनौती देता है कि वो एक होटल नहीं, बल्कि ढेरों होटल पूरे देश में बनाएगा और उसे नीचे कर के खुद शीर्ष पर आएगा।

बिहारी नए होटल बनाने के लिए बैंक से कर्ज लेता है और वो अपना पहला होटल बनाता है। अपने पहले होटल के बाद वो सफलता की सीढ़ी चढ़ता जाता है। बाद में अमर और जया के घर कुमार (गोविन्दा) का जन्म होता है, वहीं बिहारी और लता के घर ज्योति (नीलम) का जन्म होता है। वे दोनों बड़े हो जाते हैं, तब वे दोनों एक दूसरे से प्यार करने लगते हैं, पर उन्हें पता चलता है कि उन दोनों के पिता एक दूसरे के बहुत बड़े दुश्मन हैं। ज्योति की माँ, लता को पता चलता है कि उसकी बेटी अमर के बेटे से प्यार करती है। उसे डर लगने लगता है कि बिहारी को ये बात पता चली तो क्या होगा? ये सोच कर वो अमर से मिलने उसके घर जाती है, वहाँ बैंक मैनेजर पहले से मौजूद रहता है और वो बृज भूषण को बताता है कि अमर ने अपनी गारंटी पर बिहारी को बैंक से कर्ज दिलाया है।

बैंक मैनेजर के चले जाने के बाद बृज भूषण इसे लेकर अमर से सवाल करता है, तो अमर कहता है कि वो उसने बिहारी को उसके जमीन, घर और होटल के बदले दिया था। लता वहीं खड़ी ये सब सुन रही होती है और ये बात जान कर हैरान रह जाती है कि उसके पति के सफलता के पीछे अमर का हाथ है। लता अंत में बिहारी को बताती है कि किस तरह अमर ने उसे कर्ज दिलाने में मदद किया था। ये सब जान कर बिहारी काफी दुःखी हो जाता है कि उसने अपने दोस्त के साथ इस तरह का व्यवहार किया था। वो अमर से माफी मांगने उसके घर जाता है। इसके बाद उन दोनों के बीच हुई सारी गलतफहमी दूर हो जाती है।

मुख्य कलाकार संपादित करें

संगीत संपादित करें

सभी राजेश रोशन द्वारा संगीतबद्ध।

क्र॰शीर्षकगीतकारगायकअवधि
1."जिंदगी का नाम दोस्ती"इंदीवरनितिन मुकेश6:35
2."आप के आ जाने से"इंदीवरमोहम्मद अज़ीज़, साधना सरगम7:12
3."यहीं कहीं जियरा हमार"इंदीवरनितिन मुकेश, साधना सरगम5:14
4."जिंदगी का नाम दोस्ती" (डुएट)इंदीवरमोहम्मद अज़ीज़, नितिन मुकेश6:27
5."लोग कहते हैं"फारुख़ क़ैसरमोहम्मद अज़ीज़, साधना सरगम6:52
6."जिंदगी का नाम दोस्ती" (दुखी)इंदीवरनितिन मुकेश1:56

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "फिल्म खुदगर्ज की वजह से राकेश रोशन ने ताउम्र गंजे रहने की खाई थी कसम". नवोदय टाइम्स. 31 जुलाई 2018. मूल से 8 जनवरी 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 जनवरी 2019.

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें