गलगल नीबू की अनेक जातियों में एक जातिविशेष है जिसके फल बड़े और फल का छिलका बहुत मोटा होता है। इसे जंबीर अथवा दंतशठ, जंबीरी नीबू , 'पहाड़ी कागजी', इडलिंबू तथा लेमन (Lemon) कहते हैं। यह निंबुकुल रूटेसिई (Rutaceae) के सिट्रस मेडिवा वार लिमोनम (Citrus medica var limonum) नामक छोटे वृक्ष का फल है, जो पंजाब में पठानकोट के आसपास अधिक पैदा होता है।

गलगल का फल

गलगल की पत्तियों के नाल लगभग पंखहीन होते हैं। इसका फल मध्यम परिमाण के, अंडाकार (ovoid), पीले, चूचुकवत (mammillate) और मोटे छिलकेवाले होते हैं और उनकी मज्जा प्रचुर और आम्लिक होती है। जंबीरी नीबू आयुर्वेद में अम्ल, गुरू पित्तकारक तथा तृष्णा, शूल, वमन, श्वास, वात, कफ और विबंध को दूर करनेवाला माना जाता है। फल का उपयोग लेमनेड, मुरब्बा, शरबत, चटनी एवं अचार बनाने और व्यंजनों को सुस्वादु करने में होता है। इसका निचोड़ा हुआ रस शीतल, झागदार पेय तैयार करने के काम आता है। इसमें स्कर्वीनाशक विटामिन सी अधिक रहता है। फलत्वक् दीपक, पाचक और वायुनाशक होता है और इससे लेमन तैल तथा टिंक्चर आदि बनाए जाते हैं।

इसका पौधा बीज और कलम दोनों से लगाया जाता है। मार्च-अप्रैल में इसमें सुगंधित फूल खिलते हैं। खट्टे के फूलों की खुशबू बहुत अच्छी होती है। इसे तेलों में डाला जाता है। इसके खिलने से सारा बाग महक उठता है। फूलों के बाद फल लगते हैं, जो पहले हरे होते हैं और पककर पीले पड़ जाते हैं। इनका रंग नारंगी होता है। फल बहुत खट्टे होते हैं और इनमें रस भी खूब होता है। इसका छिलका बहुत मोटा होता है। रस निचोड़ने के बाद छिलके का अचार बनाया जा सकता है। छिलके दो छोटे छोटे टुकड़ों में काटकर नमक लगाकर धूप में रखने से कुछ दिनों में अचार तैयार हो जाता है।

गलगल में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसका अचार भी बनाया जाता है। अचार छिलके के साथ डाला जाता है और बरसों खराब नहीं होता।

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