गोपी गोविंद संपादित करें

काशी - भगवान विष्णु (माधव) की पुरी संपादित करें

 
गोपी गोविंद स्कंद पुराण
 
गोपी गोविंद शालिग्राम प्रतिमा स्कंद पुराण

विश्व के सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में काशी का उल्लेख मिलता है - 'काशिरित्ते.. आप इवकाशिनासंगृभीता:'। पुराणों के अनुसार यह आद्य वैष्णव स्थान है। पहले यह भगवान विष्णु (माधव) की पुरी थी। जहां श्रीहरिके आनंदाश्रु गिरे थे, वहां बिंदुसरोवर बन गया और प्रभु यहां बिंधुमाधव के नाम से प्रतिष्ठित हुए। काशी में माधव गोपियो के साथ पूजे जाते हैं, इस तीर्थ का नाम गोपी गोविंद है।

 
गोप्रेक्षेश्वर skand puran

कहा जाता है जब भगवान शंकर ने गोलोक से गायो को काशी जाने का आदेश दिया तब गायो के साथ गोविंद भी गोपीयो सहित समस्त गोलोक के साथ काशी आ गए थे इस प्रकार काशी में माधव गोपियो के साथ पूजे जाते हैं। इस तीर्थ का नाम गोपी गोविंद है,गोपी गोविंद की अदभुत शालिग्राम शीला की प्रतिमा इस तीर्थ में विराजमान है।1965 में पिलानी ग्राम निवासी व्यापारी बलदेव दास बिड़ला की धर्म पत्नी सरला बिड़ला ने एक सफेद संगमर्मर की राधा रानी की प्रतिमा गोपी गोविंद जी के बगल में रखने की भेट दी जो आज भी उसी स्थान पर है।

इसी स्थान पर गायो को भगवान शंकर ने लिंग स्वरूप में और मां गौरी ने मूर्ति स्वरूप में एक ही विग्रह में साथ-साथ साक्षात दर्शन दिए, गौओ को इस प्रकार शंकर और मा गौरी के प्रत्यक्ष दर्शन से गोप्रेक्ष नाम हुआ।

गोलोक का परिचय संपादित करें

गोलोक परम पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्णा का निवास स्थान है। जहाँ पर भगवान कृष्ण अपनी प्रेमिका व सर्वेश्वरी श्री राधा रानी संग निवास करते हैं। वैष्णव मत के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ही परंब्रह्म हैं और उनका निवास स्थान गोलोक धाम है, जोकि नित्य है, अर्थात सनातन है। इसी लोक को परमधाम कहा गया है। कई भगवद्भक्तों ने इस लोक की परिकल्पना की है। गर्ग संहिता व ब्रह्म संहिता मे इसका बड़ा ही सुंदर वर्णन हुआ है। बैकुंठ लोकों मे ये लोक सर्वश्रेष्ठ है, और इस लोक का स्वामित्व स्वयं भगवान श्री कृष्ण ही करते हैं। इस लोक मे भगवान अन्य गोपियों सहित निवास तो करते ही हैं, साथ ही नित्य रास इत्यादि क्रीड़ाएँ एवं महोत्सव निरंतर होते रहते हैं। इस लोक मे, भगवान कृष्ण तक पहुँचना ही हर मनुष्यात्मा का परंलक्ष्य माना जाता है।

श्री गर्ग-संहिता मे कहा गया है:

आनंदचिन्मयरसप्रतिभाविताभिस्ताभिर्य एव निजरूपतया कलाभिः।

गोलोक एव निवसत्यखिलात्मभूतो गोविंदमादिपुरुषम तमहं भजामि॥

अर्थात- जो सर्वात्मा होकर भी आनंदचिन्मयरसप्रतिभावित अपनी ही स्वरूपभूता उन प्रसिद्ध कलाओं (गोप, गोपी एवं गौओं) के साथ गोलोक मे ही निवास करते हैं, उन आदिपुरुष गोविंद की मै शरण ग्रहण करता हूँ।

जब शिव ने माधव से काशी को मांगा संपादित करें

ऐसी एक कथा है कि जब भगवान शंकर ने क्रुद्ध होकर ब्रह्माजी का पांचवां सिर काट दिया, तो वह उनके करतल से चिपक गया। बारह वर्षों तक अनेक तीर्थों में भ्रमण करने पर भी वह सिर उन से अलग नहीं हुआ। किंतु जैसे ही उन्होंने काशी की सीमा में प्रवेश किया, ब्रह्महत्या ने उनका पीछा छोड़ दिया और वह कपाल भी अलग हो गया। जहां यह घटना घटी, वह स्थान कपालमोचन-तीर्थ कहलाया। महादेव को काशी इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने इस पावन पुरी को विष्णुजी से अपने नित्य आवास के लिए मांग लिया। तब से काशी उनका निवास-स्थान बन गया।