गोरखाली सन १८०३ में नेपाल की गोरखा सेना द्वारा गढ़वाल राज्य पर किये गये आक्रमण को कहा जाता है।

ऐतिहासिक विवरणों के अनुसार केदारखण्ड कई गढ़ों (किले) में विभक्त था। इन गढ़ों के अलग-अलग राजा थे जिनका अपना-अपना आधिपत्य क्षेत्र था। इतिहासकारों के अनुसार पँवार वंश के राजा ने इन गढ़ों को अपने अधीनकर एकीकृत गढ़वाल राज्य की स्थापना की और श्रीनगर को अपनी राजधानी बनाया। केदार खण्ड का गढ़वाल नाम तभी प्रचलित हुआ। सन १८०३ में नेपाल की गोरखा सेना ने गढ़वाल राज्य पर आक्रमण कर अपने अधीन कर लिया। यह आक्रमण लोकजन में गोरखाली के नाम से प्रसिद्ध है।

गोरखाओं का मुख्य हथियार खुखरी होता था। इस आक्रमण के समय महाराजा की सेना युद्धकला एवं संसाधनों के मामले में अत्यन्त कमजोर थी। बुजुर्गों के अनुसार सेना के पास लड़ने के लिये तलवारें तक न थी यहाँ तक कि कनारागढ़ी के राजा के सैनिक किरमोड़ (एक पहाड़ी काँटेदार पेड़) से बनी लकड़ी की तलवारों से लड़े। इस आक्रमण में बहुत से सैनिक और नागरिक मारे गये। हालाँकि बताया जाता है कि गोरखा ब्राह्मणों को नहीं मारते थे और ब्राह्मण गाँवों पर आक्रमण नहीं करते थे।

महाराजा गढ़वाल ने नेपाल की गोरखा सेना के अधिपत्य से राज्य को मुक्त कराने के लिए अंग्रेजों से सहायता मांगी। अंग्रेज़ सेना ने नेपाल की गोरखा सेना को देहरादून के समीप सन १८१५ में अन्तिम रूप से परास्त कर दिया। किन्तु गढवाल के तत्कालीन महाराजा द्वारा युद्ध व्यय की निर्धारित धनराशि का भुगतान करने में असमर्थता व्यक्त करने के कारण अंग्रेजों ने सम्पूर्ण गढ़वाल राज्य राजा गढ़वाल को न सौंप कर अलकनन्दा-मन्दाकिनी के पूर्व का भाग ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन में सम्मिलित कर गढ़वाल के महाराजा को केवल टिहरी जिले (वर्तमान उत्तरकाशी सहित) का भू-भाग वापस किया।

इन्हें भी देखें संपादित करें