गोविन्ददास आचार्य बांग्ला के प्रसिद्ध कवि थे। वे श्री चैतन्य के शिष्य और समसामयिक थे तथा सन् 1533 ई. के लगभग उपस्थित थे। "वैष्णव" "वंदना" एवं "गैर-गणोद्देश-दीपिका" दोनों ग्रंथों में इनका उल्लेख है। "वैष्णव वंदना" के उल्लेखों से ज्ञात होता है कि इन्होंने राधा-कृष्ण-लीला संबंधी रचनाएँ "विचित्र घामाली" की थीं।