चादर

आयताकार टुकड़ा का

एक चादर या चद्दर, कपड़े का एक बड़ा चौकोर टुकड़ा होता है जिसका प्रयोग बिस्तर तैयार करते समय एक गद्दे को ढकने के लिए किया जाता है। आम तौर पर इसी के उपर एक व्यक्ति लेटता है। चादर दो प्रयोजनो के लिये इस्तेमाल की जाती हैं, ओढ़ने और बिछाने के लिये।

पहले चादरें आम तौर पर सफेद ही होती थीं पर अब रंगीन और छींटदार चादरें भी प्रयोग मे लायी जाती हैं। ओढ़ने वाली चादरें आज भी सामान्य रूप से सफेद या हल्के रंगों की ही होती हैं। बिस्तर लगाते समय सर की तरक से चादर को गद्दे के नीचे अधिक दबाया जाता है जबकि पैर की तरफ् से कम। दाएं और बाएं दोनो पासों को दबाया भी जा सकता है या बस ऐसे ही छोडा़ भी जा सकता है।

चादर बनाने मे मुख्यतः कपास (सूत), लिनन (छालुकी) और कपास और पॉलिएस्टर के मिश्रण का प्रयोग किया जाता है। अन्य सामग्रियों मे कभी कभी रेयान, रेशम और बांस तंतु का प्रयोग भी किया जाता है।

चादर को चढा़वे के रूप मे भी प्रयुक्त किया जाता है और यह आम तौर पर सूफी संतो की दरगाह पर चढाई (भेंट) जाती है। चढा़वे की चादर फूल से भी बनी हो सकती हैं।

इसके अलावा, चादर एक धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व का प्रतीक भी है। भारतीय साहित्य और कला में, चादर को धार्मिक आयाम के साथ जोड़ा गया है, और यह सामाजिक और सांस्कृतिक अभिवृद्धि का हिस्सा बन चुका है। कई धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों में, चादरें आदर्श भेंट के रूप में प्रदान की जाती हैं, जिससे उन्हें आशीर्वाद और शुभकामनाएं मिलती हैं।

चादर का उपयोग विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक परियों में एकता और समरसता का प्रतीक भी है। इसे समाज में समर्थन और साझा करने का एक तरीका माना जाता है, जो सामूहिक संबंध बढ़ाता है और समृद्धि की दिशा में सहायक होता है।

चादर, जो न केवल एक सामान्य उपयोग के लिए है बल्कि धार्मिक, सांस्कृतिक, और सामाजिक पहलुओं में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, एक विशेष रूप से महत्वपूर्ण और सांस्कृतिक धरोहर बन चुकी है।