जैनेंद्र की तीसरी औपन्यासिक कृति 'त्यागपत्र' है। इसका प्रकाशन सन 1937 में हुआ। इसका अनुवाद अनेक प्रादेशिक तथा विदेशी भाषाओं में हो चुका है। हिंदी के भी सर्वश्रेष्ठ लघु उपन्यासों में मृणाल नामक भाग्यहीना युवती के जीवन पर आधारित यह मार्मिक कथा अत्यंत प्रभावशाली बन सकी है। उसका भतीजा प्रमोद उसकी पीड़ा को समझता है। वह अपने सर्वस्व की बाज़ी लगाकर भी अपनी बुआ के दुर्भाग्य पर विजय प्राप्त करना चाहता है, परंतु मृणाल सदैव ही उसकी कृपा को अस्वीकृत कर देती है। वह स्वयं कभी इसके लिए ज़ोर नहीं दे पाता, क्योंकि वह दुविधा में पड़ा रहता है। उसके ह्रदय के किसी कोने में दबी स्वार्थवृत्ति भी उसे पीछे खींचती है। जीवन भर वह अपने आपको मृणाल की ओर से भुलावे में रखने में सफल होता है, परंतु मृणाल की अंतिम अवस्था उसे आंदोलित कर देती हैं और वह अपने पद जजी से त्यागपत्र देकर प्रायश्चित्त करता है। मृणाल की सूक्ष्म चारित्रिक प्रतिक्रियाओं, विवश इच्छाओं, दमित स्वप्नों तथा नुरुद्वेग विकारों की यह मनोवैज्ञानिक कथा अत्यंत मार्मिक बन सकी है। प्रथम पुरुष के रूप में कहीं गई यह रचना पाठक के मनोभावनाओं और संवेदनाओं को आंदोलित करने में समर्थ है। आकर्षक और उपयुक्त शिल्प रूप में ढाली गई यह, कृति जैनेंद्र की रचनाओं में प्रमुख स्थान रखती है।[1]

त्यागपत्र  
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लेखक जैनेंद्र कुमार
देश भारत
भाषा हिंदी
विषय अभागी युवती की कहानी
प्रकाशक चंद्रकला प्रकाशन, पुणे
प्रकाशन तिथि 1937

सन्दर्भ संपादित करें

  1. यह पूरा लेख हिन्दी साहित्य कोश, भाग-2, संपादक- धीरेंद्र वर्मा एवं अन्य, ज्ञानमंडल लिमिटेड, वाराणसी, द्वितीय संस्करण-1986 ई०, पृष्ठ-219-20 से यथावत् उद्धृत है।