नयवाद, जैन दर्शन के आधारभूत सिद्धान्तों में से एक है। वस्तु को एकान्त भाव से किसी एक ही रूप में या कुछ ही रूपों में ग्रहण करनेवाले ज्ञान का नाम है "नय"। नय के मुख्य दो भेद हैं- द्रव्यार्थिंक और पर्यायार्थिक। द्रव्यार्थिक नय तीन प्रकार का है- नैगम, संग्रह और व्यवहार। पर्यायार्थिक नय चार प्रकार का है- ऋजुसूत्र, शब्द, समनिरूढ़ और एवंभूत। सभी द्रव्यार्थिक नय वस्तु के केवल सामान्य अंश को ही ग्रहण करते हैं। इसी प्रकार सभी पर्यायार्थिक नय वस्तु के केवल विशेष अंश को ही ग्रहण करते हैं। फलत: किसी भी नय से सामान्य, विशेष एवं उभयात्मक वस्तु का साकल्येन ग्रहण नहीं होता।

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