इमारतों में जल, गैस, जलनिकासी, शौचगृह, रसोईघर, स्नानगृह आदि के लिए नलों की जुड़ाई, मरम्मत, झलाई आदि की कला को नलकर्म या नलकारी कहते हैं। अंग्रेजी में इसे प्लमिंग (Plumbing) कहते हैं, क्योंकि इस काम में सीसे (लैटिन में प्लंबम / Plumbum) का विशेष प्रयोग होता है। वैसे अब टिन, जस्ते, तांबे, आदि अन्य धातुओं का प्रयोग बढ़ गया है।

पाइप, उनके जोड़, वाल्व आदि नलकर्म के मुख्य कार्य हैं।
पाइप कर्तक (पाइप कटर)

नलकारी का सबसे अधिक प्रयोग तो जलस्रोत, नदी और कुओं से पानी लाकर घरों में विविध प्रकार के उपकरणों द्वारा वितरण करने में ही होता है। सड़क या गली में लगे मुख्य नल से हरेक इमारत के लिए पृथक्‌ वितरण नली लगाई जाती है। मुख्य नल से इस नली का जोड़ भूमि से लगभग ढाई फुट नीचे रखना अवश्यक होता है। घर के भीतर इस नली से जहाँ जहाँ घर में जल की आवश्यकता हो अन्य नलियाँ लगाई जाती हैं और जल निकालने के लिए टोंटी या चिलमची आदि लगाई जाती है। शौचकक्ष में जलबहाव संडास (Flush Latrine) के लिए एक अलग टंकी घर की छत पर लगाई जाती है जिससे शौचकक्ष के लिए पानी हर समय सुलभ रहे।

वर्षा का या अन्य फालतू पानी घर से बाहर निकालने के लिए ढलवाँ लोहे के नल दीवार के साथ लगाए जाते हैं। शौचकक्ष के बाहर के नल भी जो दूषित हवा को निकालने के लिए लगाए जाते हैं ढलवाँ लोहे के 3फ़ फ़ व्यास के होते हैं। पाश्चात्य ढंग के घरों में हरेक शयनकक्ष के साथ स्नानागार और शौचकक्ष होते हैं। दीवारों के ऊपर लगे नल बुरे दिखाई देने के कारण उन्हें दीवारों में झिरी खोदकर भीतर दबा दिया जाता है और ऊपर पलस्तर करके रंगरोगन कर दिया जाता है।

गैस या गरम पानी वहन करनेवाली नली इस्पात या पिटवाँ लोहे की बनाई जाती है और उसके उसके चूड़ीदार जोड़ों में सीसे और तेल का मिश्रण भरा जाता है। अधिकतर इनको भी दीवार में छिपा दिया जाता है।

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