पट्टचित्र ओड़िशा की पारम्परिक चित्रकला है। इन चित्रों में हिन्दू देवीदेवताओं को दर्शाया जाता है। 'पट्ट' का अर्थ 'कपड़ा' होता है।

पट्टचित्र में राधा-कृष्ण

इन्हें भी देखें संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें

पट्टाचित्र ओडिशा के समृद्ध कला और संस्कृति का प्रतिक है। प्राचीन काल से विभिन्न कला प्रकार उड़िया लोगों के जीवन मार्ग दिखाते है, उनमे से एक पट्टचित्र कला है। पट्टाचित्र संस्कृत से विकसित हुई कला है। इसका दो भागों में बिभाजन करे तो इसका अर्थ समज आता है, जो पट्टा का अर्थ है कपड़ा और दूसरा चित्र। याने कपडे के एक टुकड़े पर चित्रित किया एक चित्र है।

यह हिंदू पौराणिक कथाओं के जटिल रूप पर आधारित रघुराजपुर, ओडिशा के चित्रकार परिवारों द्वारा बनाई गई पारंपरिक कला या पेंटिंग का एक रूप है, जिसमे कला का यह रूप श्री जगन्नाथ के पंथ और पुरी में मंदिर परंपराओं से निकटता से संबंधित है। इसकी शुरुवात 12वीं शताब्दी में हुई थी। तब से अब तक यह सबसे लोकप्रिय जीवित कला रूपों में से एक है।