पुआल मश्रूम (वैज्ञानिक नाम: Volvariella volvacea) एक प्रकार का खाद्य मश्रूम है। पूर्वी एशिया तथा दक्षिण पूर्व एशिया में इसकी खेती की जाती है। भारत में इसे 'चीनी मश्रूम' भी कहा जाता है।

पुआल मश्रूम

परिचय संपादित करें

पुआल मशरूम (वोल्वेरिएला वोल्वेसिया) जिसे चाईनीज मशरूम के नाम से भी जाना जाता है, बेसिडियोमाइसीट्स (Basidiomycetes) के प्लूटेसिया (Pluteaceae) कुल से संम्बन्ध रखती है। यह उपोशण तथा उष्ण कटिबंध भाग की खाद्य मशरूम है। सर्वप्रथम इसकी खेती चीन में सन् 1822 मे की गईं थी। शुरू मे यह मशरूमं ”ननहुआ“ के नाम से जानी जाती थी। इसका यह नाम चीन के उत्तरी गांगडोे ग प्रान्त के ननहुआ मन्दिर के नाम पर पड़ा। शुरूआत में पुआल मशरूम की खेती बौद्ध अनुयायियो द्वारां स्वंय उपयोग के लिए की गई थी और सन् 1875 के बाद यह शाही परिवार को उपहार स्वरूप भेट की जानें लगी। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि इस मशरूम की खेती की शुरूआत लगभग 300 वर्श पूर्व अठारहवी शताब्दी मे हुई तथा सन् 1932 से 1935 के दौरान इस मशरूम की खेती फिलीपिन्स, मलेशिया तथा अन्य दक्षिणी एशियाई देशो में भी शुरू की गई।

पुआल मशरूम को ‘गर्म मशरूम’ के नाम से भी जाना जाता है क्योकि यें सापेक्षतः उच्च तापमान पर उगती है। यह तेजी से उगने वाली मशरूम है तथा अनुकूल उत्पादन परिस्थितियों मे इसका एक फसल चक्र 4 से 5 सप्ताह में पूर्ण हो जाता है। इस मशरूम के उत्पादन हेतु विभिन्न प्रकार के सेलुलोज युक्त पदार्थों का इस्तेमाल किया जा सकता है तथा इन पदार्थो में कार्बन व नाईट्रोजन के 40 से 60:1 अनुपात की आवश्यकता होती है, जो अन्य मशरूमों के उत्पादन की तुलना मे बहुत उच्च है। इस मशरूम को बहुत से अविघटित माध्यमों (पोशाधारो) पर उगाया जा सकता हैं जैसे धान का पुआल, कपास उद्योग से प्राप्त व्यर्थ तथा अन्य सेलुलोज युक्त जैविक व्यर्थ पदार्थ। यह आसानी से उगाई जाने वाली मशरूमो में सें एक मानी जाती है।

भारत वर्श मे इस मशरूम की खेती सर्वप्रथम सन् 1940 मे की गई, हालांकि व्यवस्थित ढंग से़ इस की खेती का प्रयास 1943 मे किया गया। वर्तमान में यह मशरूम समुन्द्रतटीय राज्यो जैसे कि उड़ीसा, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडू, केरल तथा पश्चिम बंगाल मे सर्वां धिक लोकप्रिय है। मशरूम अन्य राज्यो में भी उगाई जा सकती है जहाँ की जलवायु इसके अनुकूल है तथा कृशि व कपास उद्योग के अवशेश भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं।

जीवन चक्र तथा प्रजनन तंत्र अनुवांशिकी हरे पौधो की तुलना में मशरूम की ज्यादातर प्रजातियाँ एकाकी सूत्री होती हं। तथा युैग्मसूत्री अवस्था अस्थिर व क्षणिक समय के लिये होती है तथा बेसिडियम अवस्था ;ठमेपकपनउद्ध तक ही सीमित रहती है। पुआल मशरूम अन्य मशरूमों से भिन्न है समलैगिक प्रजाति होने की वजह से है, प्रत्येक एकल नाभिकीय एकाकी सूत्री स्व-निशेचित बीजाणु उगते है तथा कवक जाल उत्पन्न करते है तथा बिना किसी संयोग (मैटिंग) कारक की सहायता के अपना जीवन चक्र पूर्ण करते हैं। वोल्वेरिएला प्रजाति मे कलैंम्प कनैक्षंस पूर्ण रूप से अनुपस्थिति होते हैं। वोल्वेरिएला वोल्वेसिया मे तन्तुं कोशिकाएं बहु-केन्द्रीय होती है। कलैं म्प कनैक्षंस अनुपस्थिति होते हैं तथा बीजाणुओ (बेसिडियोस्पोर) के विभाजन के बाद केवल एक ही केन्द्रक प्राप्त होता है। इसकी वृद्धि दर तथा एकल बीजाणु तन्तु की विशेशताओं मे बहुत विविधता पाई जाती है। इस मशरूम को मूल रूप से होमोथैलिक ;भ्वउवजींससपबद्ध कहना अभी भी कठिन है क्योकि विभिन्न शोंधकर्ताओं द्वारा ज्यादातर स्व-निशेचित बीजाणुओ की मौजूदगी व न्यूनतम गैर मौजूदगी पर किये गये अनुसंधान कायो र्सें अलग-अलग तर्क प्राप्त हुए हं। ज्यादातर अनुसंधान कर्ताओ नें बीजाणुओ में स्व-जनन का अस्तित्व बताया है।

जैविकीय विशेशताए संपादित करें

पुआल मशरूम के फलनकाय को छह विभिन्न विकासात्मक अवस्थाओ में विभाजित किया जा सकता है। ये अवस्थाएं है खुम्ब कलिकाएं (पिन हैड), छोटे बटन, बटन, अडांकार, विस्तारण अवस्था तथा परिपक्व अवस्था। प्रत्येक की अपनी विशेश अकारिकी तथा आंतरिक रचना होती है।

1. खुम्ब कलिकाएं (पिन हैड)

इस अवस्था मे इसका आकार सूक्ष्म दानों जैसा होता है। इसमे धब्बा रहित सफेद झिल्ली होती है। लम्बवत दिशा मं काटनेे के बाद देखने पर इसमे छत्र तथा तना दिखाईं नहीं देते हैं। सम्पूर्ण संरचना तन्तु कोशिकाओ की गाँठ जैसी होती है।

2 . छोटे बटन

दोनो ही अवस्थाएं, छोटे बटन तथा खुम्ब कलिकाएं आपस में बुनी हुई तन्तु कोशिकाओ से बनती है। युवा छोटे बटन मे झिल्ली का ऊपरी हिस्सा भूरा होता है जबकि शेष हिस्सा सफेद होता है। यह आकार मे गोल होता

हिस्सा भूरा होता है जबकि शेश हिस्सा सफेद होता है। यह आकार मे गोंल होता है और यदि बटन को लम्बवत काट दिया जाये तो इसके पत्रक (लैमिली), छत्र के निचले तल पर संकरे बंद की तरह दिखाई देते हैं।

3 . बटन अवस्था

पुआल मशरूम की इस अवस्था को उत्तम समझा जाता है तथा यह बाजार मे अधिक मूल्य पर बेची जाती है। इस अवस्था मे संपूर्ण संरचना एक झिल्ली द्वारा ढकी होती है जिसे संपूर्ण झिल्ली कहते हं। झिल्ली के अन्दर बन्द अवस्था मं छत्रक विद्यमान होता है। हालांकि सामान्य तौर पर तना दिखाई नहीं देता है परन्तु मशरूम के अनुदैर्ध्य खण्ड (खड़ी दिशा) मे यह दिखाई देता है।

4 . अंडाकार अवस्था

इस अवस्था को भी बहुत अच्छा माना जाता है तथा बाजार मे इसकी अच्छी खासी रकम मिलती है। इस अवस्था मे छत्रक झिल्लीं से बाहर निकल आता है तथा झिल्ली वॉल्वा के रूप मे शेंश रह जाती है। इस अवस्था मे पत्रकों पर बीजाणुं नहीं होते है। इस अवस्था तक छत्रक का आकार बहुत छोटा रहता है।

5 . विस्तारण अवस्था

इस अवस्था पर छत्रक बन्द होता है तथा इसका आकार परिपक्व अवस्था से थेाड़ा छोटा होता है, जबकि तना अधिकतम लम्बाई प्राप्त कर चुका होता है। डण्डी जलसह स्याही के साथ चिन्हित होती है।

6. परिपक्व अवस्था

परिपक्व अवस्था मे इसकी सरचना को तीन हिस्सो में विभाजित किया जा सकता हैं-

  • (१) छत्रक या टोपी
  • (२) तना या डण्डी
  • (३) वॉल्वा या कप

छत्रक तने के साथ मध्य मे जुड़ा रहता है और साधारणतया इसका व्यास 6 से 12 सेटीमीटर हों ता है। पूर्ण परिपक्व छत्रक सभी किनारो सें आकार मे वश्ताकार होता है तथा इसकी सतह समतल होती है। इसकी सतह मध्य मे गहरी स्लेटी तथा किनारो परं हल्की सलेटी होती है। छत्रक की निचली सतह पर पत्रदल होते है, जिनकी सं ख्या 280 से 380 तक हो सकती है। पत्रदल आकार मे भी भिन्नं होते है। पत्रदल छत्रक कें पूरे आकार से लेकर एक चौथाई आकार तक के हो सकते हैं।

सुक्ष्मदर्शी परिक्षण से प्रत्येक पत्रदल आपस में बुनी हुई तन्तु कोशिकाओ की तीन परतों सें बना दिखाई देता है। सबसे बाहरी परत हायमिनियम कहलाती है। ये डण्डे के आकार की बेसिडिया व सिसटिडिया बनाती है। इस बेसिडिया में चार बीजाणु होते हैं। बीजाणु आकार मे भिन्न-भिन्न होते हैं, येै अण्डाकार, गोलाकार तथा दीर्घवश्त आकार के होते हैं। बीजाणुओ कें रंग भी भिन्न-भिन्न होते है और ये हल्के पीले, गुलाबी या गहरे भूरे रंग के हो सकते हैं।

तना एक परिपक्व फलनकाय का महत्वपूर्ण भाग होता है जो छत्रक तथा वॉल्वा को जोड़ कर रखता है। तने की लम्बाई छत्रक के आकार पर निर्भर करती है, साधारणतया इसकी लम्बाई 3 से 8 सेटीमीटर तथा व्यास 0.5 से 1.5 सेटीमीटर होता है। यह सफेद, गूदेदार होता है तथा इसमें कोई छल्ला नहीं हों ता है। डण्डी के आधार पर वॉल्वा होता है, जो वास्तव मे आपस मं बुनी हुई तन्तु कोशिकाओ की एक पतली चादर हों ती है तथा तने के आधार पर बल्बनुमा आकार के चारों तरफ होेती है। वॉल्वा, गूदेदार, सफेद तथा कप के आकार का होता है और इसके किनारे अव्यवस्थित होते हैं। वॉै ल्वा के आधार पर कवक जाल (राईजोमार्फस) होता है जो पोशाधार से पोषण ग्रहण करने मे सहायक होता है।

पौष्टिक गुण संपादित करें

उत्कृष्ट अनुपम खुशबू तथा ऊतक संरचना की विशेशताओ कें कारण यह मशरूम अन्य खाद्य मशरूमो सें अलग है। इस मशरूम की पौश्टिक गुणवत्ता, फसल उगाने के तरीके तथा विभिन्न परिपक्व अवस्थाओ सें प्रभावित होती है। उपलब्ध आंकड़ बतातेे है कि मशरूम कें शुखे भार के आधार पर, इसमे कच्चा प्रोटीन 30.43 प्रतिशत, वसा 1.6 प्रतिशत, काबोहाइर्डेटस 12.48 प्रतिशत, कच्चा रेशा 4.10 प्रतिशत तथा राख 5.13 प्रतिशत पोशक तत्व पाये जाते है। ताजा मशरूम कें भार के आधार पर इसकी तत्व संरचना नीचे दर्शाइ गई है। वसा तत्व की बढ़ोत्तरी परिपक्व अवस्था तक होती है तथा पूर्ण रूप से परिपक्व फलनकाय मे यहं काफी उच्च (5 प्रतिशत) होती है। नाइट्रोजन मुक्त काबोहाइर्डे ªटस की बढ़ोत्तरी बटन अवस्था से अण्डाकार अवस्था तक होती है। विस्तारण अवस्था मे यह रूक जाती हैं तथा परिपक्व अवस्था मे कम हो जाती है। पहली तीन अवस्थाओं मे कच्चा रेशा लगभग समान स्तर पर रहता है तथा परिपक्व अवस्था मे बढ़ जाता है। सभी विकास की अवस्थाओ में राख तत्व लगभग समान रहता है।

पुआल मशरूम की अनुमानित तत्व संरचना

क्रम संख्या -- अंश -- तत्व सरंचना (मात्रा/100 संख्या ग्राम ताजा मशरूम)

1. नमी 90.40 (ग्राम)

2. वसा 0.25 (ग्राम)

3. प्रोटीन 3.90 (ग्राम)

4. कच्चा रेशा 1.87 (ग्राम)

5. राख 1.10 (ग्राम)

6. फास्फोरस 0.10 (ग्राम)

7. पोटाशियम 0.32 (ग्राम)

8. लोहा 1.70 (ग्राम)

9. कैल्शियम 5.60 (मि.ग्राम)

10. थायमिन 0.14 (मि.ग्राम)

11. राइबोफ्लेविन 0.61 (मि.ग्राम)

12. नियासिन 2.40 (मि.ग्राम)

13. एस्कॉर्बिक अम्ल 18.00 (मि.ग्राम)

पुआल मशरूम मे खनिज जैसे पोटाशियम, सोडियम तथा फास्फोरस प्रचुर मात्रा मे पायें जाते है। पोटाशियम प्रमुख तत्वो में महत्वपूर्ण है, उसके बाद शेश प्रमुख तत्वो मं सोे डियम व कैल्शियम आते है। पों टाशियम, कैल्शियम तथा मैगनीशियम का स्तर मशरूम फलनकाय विकास की विभिन्न अवस्थाओ में समान रहता हैं। सोडियम तथा फास्फोरस का स्तर, विस्तारण व परिपक्व अवस्थाओ में कम हों जाता है। निम्न तत्व जैसे कॉपर, जिंक तथा लोहे का स्तर विकास की विभिन्न अवस्थाओ में अधिक परिवर्तिंत नहीं होता है।

पुआल मशरूम मे थाईं मिन तथा राइबोफलेविन का स्तर बटन मशरूम (एगेरिकस बाईसपोरस) तथा शिटाके मशरूम (लेन्टिनुला इडोड्स) की अपेक्षा कम होता है, जबकि नियासिन इन दोनों के समान मात्रा मे हों ती है (एफ.ए.ओ., 1972)। सभी अवस्थाओ में लाईं सीन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होता है तथा अनावश्यक अम्लो में ग्लूटेमिक (Glutamic) अम्ल तथा एस्पार्टिक अम्ल (Aspartic) प्रचुर मात्रा मे पायें जाते हैं। आवश्यक अमीनो अम्लों में ट्रिप्टोफेन (Tryptophan) तथा मिथियोनीन अम्ल न्यूनतम मात्रा मे होते हं। फिनाईल एलानाईन्स का स्तर विस्तारण अवस्था तक बढ़ता है जबकि लाईसीन इस अवस्था मे बटन अवस्था की तुलना मे घटकर आधा रहा जाता है। अमीनां अम्ल की संरचना तथा सम्पूर्ण अमीनो अम्लों में आवश्यक अमलों की प्रतिशतता के आधार पर पुआल मशरूम की तुलना अन्य मशरूमो सें की जा सकती है। वास्तव मे पुआल मशरूम मे आवश्यक अमीनो अम्ल की प्रतिशतता अन्य मशरूमो की तुलना में उच्च होती है तथा लाईसीन की प्रचुरता अत्यन्त महत्वपूर्ण है। अन्य तीनो अमीनों अम्ल जैसे लाईसिन, आइसोलयूसिन तथा मिथियोनिन अम्ल पुआल मशरूम मे अन्य मशरूम की तुलना मे कम होते हैं।

पुआल मशरूम में पाए जाने वाले अमीनो अम्ल

क्रम संख्या -- अमीनो अम्ल -- मात्रा (मि. ग्राम/100 ग्राम प्रोटीन)

1. लियूसीन 3.5

2. आईसोलियूसिन 5.5

3. वैलिन 6.8

4 . ट्रिप्टोफेन 1.1

5. लाईसीन 4.3

6. हिस्टीडिन 2.1

7. फिनाईल एलानिन 4.9

8. थ्रियोनिन 4.2

9. आर्जीनीन 4.1

10. मिथियोनीन 0.9

इन्हें भी देखें संपादित करें