पूर्णमासी जानी (ओड़िया में : पूर्ण्णमासी जानी ; जन्म 1944) ओडिशा की एक कवयित्री, सामाजिक कार्यकर्ता एवं आध्यात्मिक साधिका हैं। कन्धमाल जिले में उन्हें 'टाड़िसरु बाई' कहा जाता है। कुई भाषा में 'टाड़ि' का अर्थ 'पर्वत' है, 'सरु' कार्थ 'ऊपर' है और 'बाई' का अर्थ 'साधिका' है। उन्होंने कुई, ओड़िया और संस्कृत में 50,000 से अधिक भक्ति गीतों की रचना की है। कला के क्षेत्र में उनके अवदान को देखते हुए 2021 में, उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।[1]

पूर्णमासी जानी

Purnamasi Jani receiving Padma Shri award from President Ram Nath Kovind

उनका जन्म १९४४ में कन्धमाल जिले के खजूरीपड़ा उपखण्ड के दळपड़ाठा गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम नीलकण्ठ जानी और माता का नाम राणिमता था। अल्पायु में ही उनका विवाह चारिपड़ा ग्राम के आराधना जानी के साथ कर दिया गया। उनकी छः सन्तानें हुईं किन्तु कोई जीवित नहीं बचा। इससे दुखी होकर पति-पत्नी दोनों अध्यात्म की ओर प्रवृत्त हुए।

पुरस्कार संपादित करें

  • 2006 में कविता के लिए ओडिशा साहित्य अकादमी पुरस्कार [1]
  • 2008 में दक्षिण ओडिशा साहित्य पुरस्कार [1][1]
  • 2021 में पद्मश्री [1][1]

सन्दर्भ संपादित करें

  1. Barik, Satyasundar (2021-01-26). "Padma award for tribal mystic from Odisha". The Hindu (अंग्रेज़ी में). आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0971-751X. अभिगमन तिथि 2022-03-05. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> अमान्य टैग है; ":0" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है