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लेख 1 – 20 संपादित करें

प्रवेशद्वार:राजनीति/चयनित लेख/1

 
लंदन में थेम्स नदी के किनारे स्थित, वेस्टमिंस्टर महल, ब्रिटिश संसद का सभास्थल

वेस्ट्मिन्स्टर प्रणाली, (सामान्य वर्तनी:वेस्टमिंस्टर प्रणाली) शासन की एक लोकतांत्रिक संसदीय प्रणाली है, जो सैकड़ों वर्षों के काल में, संयुक्त अधिराज्य (UK) में विकसित हुई थी। इस व्यवस्था का नाम, लंदन के पैलेस ऑफ़ वेस्टमिन्स्टर से आता है, जो ब्रिटिश संसद का सभास्थल है। वर्तमान समय में, विश्व के अन्य कई देशों में इस प्रणाली पर आधारित या इससे प्रभावित शासन-व्यवस्थाएँ स्थापित हैं। ब्रिटेन और राष्ट्रमण्डल प्रजाभूमियों के अलावा, ऐसी व्यवस्थाओं को विशेषतः पूर्व ब्रिटिश उपनिवेशों के शासन-व्यवस्था में देखा जा सकता है।

वेस्टमिंस्टर प्रणाली की सरकारें, विशेष तौर पर राष्ट्रमंडल देशों में देखीं जा सकती हैं। इसकी शुरुआत, सबसे पहले कनाडा प्रान्त में हुई थी, और उसके बाद ऑस्ट्रेलिया ने भी अपनी सरकार को इसी प्रणाली के आधार पर स्थापित किया। आज के समय, विश्व भर में कुल ३३ देशों में इस प्रणाली पर आधारित या इससे प्रभावित शासन-व्यवस्थाएँ हैं। एक समय ऐसा भी था जब अधिकांश राष्ट्रमंडल या पूर्व-राष्ट्रमण्डल देशों में और उनकी उपराष्ट्रीय इकाइयों में वेस्टमिन्स्टर प्रणाली की सरकारें थीं। बाद में, अन्य कई देशों ने अपनी शासन प्रणाली को बदल लिया। अधिक पढ़ें…


प्रवेशद्वार:राजनीति/चयनित लेख/2

अराजकता एक आदर्श है जिसका सिद्धांत अराजकतावाद है। अराजकतावाद राज्य को समाप्त कर व्यक्तियों, समूहों और राष्ट्रों के बीच स्वतंत्र और सहज सहयोग द्वारा समस्त मानवीय संबंधों में न्याय स्थापित करने के प्रयत्नों का सिद्धांत है। अराजकतावाद के अनुसार कार्यस्वातंत्र्य जीवन का गत्यात्मक नियम है और इसीलिए उसका मंतव्य है कि सामाजिक संगठन व्यक्तियों के कार्य स्वातंत्र्य के लिए अधिकतम अवसर प्रदान करे। मानवीय प्रकृति में आत्मनियमन की ऐसी शक्ति है जो बाह्य नियंत्रण से मुक्त रहने पर सहज ही सुव्यवस्था स्थापित कर सकती है। मनुष्य पर अनुशासन का आरोपण ही सामाजिक और नैतिक बुराइयों का जनक है। इसलिए हिंसा पर आश्रित राज्य तथा उसकी अन्य संस्थाएँ इन बुराइयों को दूर नहीं कर सकतीं। मनुष्य स्वभावत: अच्छा है, किंतु ये संस्थाएँ मनुष्य को भ्रष्ट कर देती हैं। बाह्य नियंत्रण से मुक्त, वास्तविक स्वतंत्रता का सहयोगी सामूहिक जीवन प्रमुख रीति से छोटे समूहों से संभव है; इसलिए सामाजिक संगठन का आदर्श संघवादी है। अधिक पढ़ें…


प्रवेशद्वार:राजनीति/चयनित लेख/3

 
त्रिनिदाद और टोबैगो में आयोजित २००९ के राष्ट्रमंडल शासनाध्यक्षों की बैठक में सभी सदस्य देशों के शासनाध्यक्ष की ग्रुप तस्वीर।

राष्ट्रकुल, या राष्ट्रमण्डल देश (अंग्रेज़ी:कॉमनवेल्थ ऑफ नेशंस) (पूर्व नाम ब्रितानी राष्ट्रमण्डल), ५४ स्वतंत्र राज्यों का एक संघ है जिसमे सारे राज्य ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा थे (मोज़ाम्बीक और स्वयं यूनाइटेड किंगडम को छोड़ कर)। इसका मुख्यालय लंदन में स्थित है। इसका मुख्य उद्देश्य लोकतंत्र, साक्षरता, मानवाधिकार, बेहतर प्रशासन, मुक्त व्यापार और विश्व शांति को बढ़ावा देना है। इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय प्रत्येक चार वर्ष में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों और बैठक में भाग लेती हैं। इसकी स्थापना १९३१ में हुई थी, लेकिन इसका आधुनिक स्वरूप १९४७ में भारत और पाकिस्तान के स्वतंत्र होने के बाद निश्चित हुआ। राष्ट्रमंडल देशों का कोई संविधान या चार्टर नहीं है। इसके प्रमुखों की प्रत्येक दो वर्ष में एक बार बैठक होती है। भारत सहित एंटीगुआ, ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, ब्रुनेई, कनाडा, साइप्रस, घाना आदि इसके सदस्य हैं। लंदन घोषणा के तहत ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय राष्ट्रमंडल देशों के समूह की प्रमुख होती हैं। राष्ट्रमंडल सचिवालय की स्थापना १९६५ में हुई थी। इसके महासचिव मुख्य कार्यकारी के तौर पर काम करते हैं। अधिक पढ़ें…


प्रवेशद्वार:राजनीति/चयनित लेख/4

 
मॉस्को के रेड स्क्वायर में मध्यवर्ती दूरी की सोवियत आर-12 परमाणु बैलिस्टिक मिसाइल (नाटो द्वारा दिया गया नाम एसएस-4) की सीआईए (CIA) सन्दर्भ तस्वीर.

क्यूबाई मिसाइल संकट (क्यूबा में अक्टूबर संकट के रूप में जाना जाता है) शीत युद्ध के दौरान अक्टूबर 1962 में सोवियत संघ, क्यूबा और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच एक टकराव था। सितंबर 1962 में, क्यूबा और सोवियत सरकारों ने चोरी-छिपे क्यूबा में महाद्वीपीय संयुक्त राज्य अमेरिका के अधिकांश भागों पर मार कर सकने की क्षमता वाली अनेक मध्यम- और मध्यवर्ती-दूरी की प्राक्षेपिक मिसाइलें (MRBMs और IRBM) लगानी शुरू की। 1958 में यूके में थोर आईआरबीएम और 1961 में इटली और तुर्की में जुपिटर आईआरबीएम- मॉस्को पर नाभिकीय हथियारों से हमला करने की क्षमता वाली इन 100 से अधिक अमेरिका-निर्मित मिसाइलों की तैनाती के प्रतिक्रियास्वरूप यह कारवाई की गयी। 14 अक्टूबर 1962 को, एक संयुक्त राज्य अमेरिकी यू-2 फोटोआविक्षण विमान ने क्यूबा में निर्माणाधीन सोवियत मिसाइल ठिकानों के फोटोग्राफिक सबूत जमा किये।

फलस्वरूप बर्लिन नाकाबंदी से पैदा हुआ संकट शीत युद्ध के एक बड़े टकराव का रूप ले लिया और आम तौर पर माना जाने लगा कि शीत युद्ध अब एक नाभिकीय संघर्ष के कगार पर आ पहुंचा है। संयुक्त राज्य अमेरिका ने क्यूबा आकाश और समुद्र मार्ग से हमला करने पर विचार किया और क्यूबा का सैन्य संगरोधन करना तय किया। अमेरिका ने घोषणा की कि वह क्यूबा में आक्रामक हथियारों को ले जाने नहीं देगा और मांग की कि सोवियत संघ क्यूबा में निर्माणाधीन या बन चुके मिसाइल ठिकानों को नष्ट करे और वहां से सभी आक्रामक हथियारों को हटा ले। कैनेडी प्रशासन को बहुत ही कम उम्मीद थी कि क्रेमलिन उनकी मांगों को मान लेगा और वह एक सैन्य टकराव की अपेक्षा कर रहा था। दूसरी ओर सोवियत संघ के निकिता ख्रुश्चेव ने केनेडी को एक पत्र में लिखा कि "अंतरराष्ट्रीय जल मार्ग और आकाश मार्ग के यातायात के" उनके संगरोधन की "कारवाई एक ऐसी आक्रामकता है जो मानव जाति को विश्व नाभिकीय-मिसाइल युद्ध के नरक कुंड में डाल देगी।" अधिक पढ़ें…


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