प्राचीन श्रीलंका की स्थापत्य कला

श्रीलंका का स्थापत्य अत्यन्त विविधतापूर्ण है। इसमें एक ओर अनुराधापुर राज्य (377 ईसापूर्व – 1017) की स्थापत्य शैली है तो दूसरी तरफ कैंडी राज्य (1469–1815) की स्थापत्य शैली। सिंहली स्थापत्य पर उत्तर भारत की स्थापत्य कला का भी प्रभाव दिखता है। श्रीलंका में बौद्ध धर्म का प्रवेश ईसापूर्व तीसरी शताब्दी में हुआ था और यहाँ के स्थापत्य पर बौद्ध धर्म का उल्लेखनीय प्रभाव है। श्रीलंका का प्राचीन स्थापत्य मुख्यतः धार्मिक स्थापत्य था। बौद्ध मठों की २५ से अधिक शैलियाँ देखने को मिलतीं हैं। जेतवनरमय तथा रुवानवेलिसय के स्तूप उल्लेखनीय भवन हैं। सिगिरिया का राजमहल प्राचीन स्थापत्य का श्रेष्ठ उदाहरण है। इसी प्रकार, यपहुआ का दुर्ग तथा टूथ का मंदिर भी अपने वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध हैं।

तूत मंदिर (कैंडी)

मठों का निर्माण मंजुश्री वास्तुविद्या शास्त्र के अनुसार हुआ है। यह ग्रन्थ संस्कृत भाषा में तथा सिंहल लिपि में रचित है। इसमें विभिन्न प्रकार की संरचनाओं की रूपरेखा दी गयी है।