फ्रांसीसी जर्मन युद्ध

(फ्रांस-प्रशा युद्ध से अनुप्रेषित)

फ्रांस और जर्मनी के बीच लगभग 13 महीने तक चलनेवाली लड़ाई (1870-1871) फ्रांसीसी जर्मन युद्ध कहलाती है जिसके परिणाम फ्रांस की पराजय, नेपोलियन राजवंश की सत्ता का अंत तथा तृतीय गणतंत्र की स्थापना और प्रशा के नेतृत्व में एकीकृत जर्मन राज्य के उदय के रूप में हुए।

लंबे काल से फ्रांस और प्रशा के संबंध तनावपूर्ण चले आ रहे थे किंतु जब प्रशा 1866 में आस्ट्रिया को जीतकर सारे जर्मनी का नेता बन बैठा तो फ्रांस को उसकी शक्ति से बहुत खतरा महसूस हुआ। युद्ध की स्थिति उस समय उत्पन्न हो गई, जब स्पेन की रानी इज़ाबेला के राजच्युत होने के बाद जनरल प्रिम ने प्रशा के एक राजकुमार ल्योपोल्ड को स्पेन की गद्दी पर बैठने के लिए आमंत्रित किया। फ्रांस को प्रशा के राजकुमार का स्पेन का राजा बनना, अपनी सुरक्षा के लिए बहुत खतरनाक लगा। नेपोलियन तृतीय ने प्रशा के राजा से आग्रह किया कि वह स्पेन के मामले से दूर रहे। प्रशा के राजकुमार ने स्पेन की गद्दी से अपना नाम तो वापस ले लिया, किंतु फ्रांसीसी राजदूत का यह आग्रह कि प्रशा का सम्राट् विधिवत् आश्वासन दे कि उसके वंश का कोई व्यक्ति स्पेन का राज्याधिकारी नहीं बनेगा, अस्वीकार कर दिया गया। इसपर जुलाई, 1870 में फ्रांस ने प्रशा के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी और सेनाएँ जर्मन सीमा की ओर बढ़ा दीं। दूसरी ओर यह चुनौती न केवल प्रशा द्वारा वरन् सभी जर्मन राज्यों द्वारा स्वीकार की गई और जर्मन सेनाएँ युद्ध के लिए सन्नद्ध हो गईं।

युद्ध के आरंभ में फ्रांसीसी सेनाओं ने नेपोलियन तृतीय के नेतृत्व में जर्मन सेना के प्रथम भाग को पीछे हटने के लिए बाध्य कर दिया, किंतु उसके बाद जर्मन सेनाओं ने फ्रांस की एक के बाद एक स्थितियों पर अधिकार करना आरंभ किया। अंत में नेपोलियन तृतीय भी बंदी हो गया। लगातार होनेवाली पराजय से फ्रांस की जनता क्षुब्ध हो उठी और उसने नेपोलियन को सत्ताच्युत करने की माँग की। 4 सितंबर को फ्रांस गणतंत्र घोषित हुआ। 19 सितंबर को जर्मन सेनाओं ने पेरिस घेर लिया।

 
फ्राँस के वे क्षेत्र जो युद्ध के हर्जाने के अदा न करने तक जर्मनी के आधीन रहे।

जर्मनों ने बहुत दिनों तक पेरिस पर घेरा कायम रखा। नगर भुखमरी की सीमा तक पहुँच गया। नगर पर तीन सप्ताह की लगातार बमबारी ने फ्रांसीसी सरकार को आत्मसमर्पण के लिए विवश कर दिया। 28 जनवरी को अस्थायी संधि हुई। उसमें फ्रांस ने पेरिस के निकटवर्ती सभी किले जर्मनी को सौंप दिए। 20 करोड़ फ्रांक हर्जाने के बतौर भी देने पड़े। इसके बाद फ्रांस की असेंबली का चुनाव हुआ और थिये नवगठित सरकार के अध्यक्ष नियुक्त हुए। उन्होंने वार्साई में जर्मनी के साथ शांतिसंधि में भाग लिया। युद्धविराम के तीन बार बढ़ाए जाने के बाद 26 फरवरी 1871 को वर्साय में शांति संधि पर हस्ताक्षर किए गए। संधि में फ्रांस पर तीन शर्तें लादी गईं -

(1) फ्रांस, लोराइन प्रदेश का पाँचवाँ भाग जर्मनी के आधिपत्य में सौंप दे,
(2) फ्रांस पाँच अरब फ्रांक की राशि जर्मनी को युद्ध के हर्जाने के बतौर दे,
(3) फ्रांस के कुछ विभागों पर जर्मनी का तब तक अधिकार रहेगा जब तक फ्रांस उपर्युक्त राशि जर्मनी को चुकता न करे।

फ्रांस की असेंबली ने 1 मार्च को इन शर्तों को मान लिया और उसी दिन जर्मन सेनाओं ने पेरिस में प्रवेश किया। युद्ध के हर्जाने की अंतिम किश्त 5 सितंबर 1873 को अदा हुई। 13 सितंबर तक जर्मनी ने फ्रांस का सारा क्षेत्र खाली कर दिया।

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