बहिणाबाई चौधरी (1880 – 3 दिसम्बर 1951 ) एक मराठी कवयित्री थीं।

बहिणाबाई चौधरी
चित्र:BahinabaiChaudhari.jpg
जन्म २४ अगस्त१८८०
ओसोदा जलगाव
राष्ट्रीयता भारतीय
पेशा खेती
धर्म हिन्दू

जीवन चरित्र संपादित करें

बहिणाबाई चौधरी का जन्म नागपंचमी के दिन २४ अगस्त १८८० को महाराष्ट्र के आसोदे (जळगाव) गाँव में हुआ। यह गाँव खानदेश के जळगाव से ६ कि॰मी॰ की दूरी पर है। उनकी माँ का नाम भिमाई था। उनके घमा, घना और गना नाम के तीन भाई थे और अहिल्या, सीता, तुळसा नामक तीन बहनें थीं। बहिनाबाई का विवाह १३ वर्ष की आयु (१८९३) में खंडेराव चौधरी के पुत्र नथुजी से हुआ। उनके ओंकार, सोपानदेव नामक दो पुत्र थे और काशी नामक एक पुत्री थी।

वे जन्म भर निराक्षर रहीं, इसिलिए जो कविता वो गाती थी वे पड़ोस के लोग लिखा करते थे और कुछ कविताये नष्ट भी हो गईं। वह मराठी होने के कारण "लेवा गणबोली" भाषा में लिखती थी। वह निरक्षर थीं लेकिन उनकी काव्यरचना के जीवन कि प्रतिभा हैं, जिसमे उनकी खेती के काम, घर के काम, बिदाई के बाद का लडकी का जीवन सारे उनमे समाए रहते हैं। यह सब सुन कर जितना हो सके उतना उनके सुपुत्र सोपानदेव और उनके ममेरेभाई दोन्हों लिखते थे। उनकी मृत्यु (७२) ३ दिसंबर १९५१ को हो गई।

काव्य संग्रह संपादित करें

महाराष्ट्र के कवि सोपानदेव, बहिनाबाई के पुत्र थे। बहिनाबाई के मृत्यु के बाद सोपानदेव तथा उनके ममेरे भाई श्री पीतांबर चौधरी दोनोने "बहिनाबाईची गानी" हस्तलिखित स्वरुप में थी। ये कविताएँ सोपानदेव ने अपने गुरु आचार्य को दिखायी, गुरु ने कहा कि, यह तो सोना(gold) है ! इसे महाराष्ट्र से छिपाना अपराध हैं (मराठी: अहो हे तर बावनकशी सोनं आहे ! हे महारष्ट्र पासुन लपवनं गुन्हा आहे) और उन कविताओं को प्रकाशित करने का वादा किया। गुरु के वादे के अनुसार १९५२ में उनकी कविता प्रकाशित हुई। 'धरतिच्या आरशामधी सरग (स्वर्ग)' देखने वाली बहिनाबाई को महाराष्ट्र में एक नई पहचान मिली। इस काव्य संग्रह में उनकी केवल ३५ कविताएँ प्रकाशित हुई; उन कविताओं की कुछ भी शंका न रखते हुऐ, केवल सहधर्म रखते हुए जो उन्होंने कविताऐ लिखे थे वो उनके साथ ही खत्म हो गई। इन सभी कविताओं को प्रकाशित करने में सोपानदेव के आचार्य का योगदान था।

काव्य रचना की विशेषता संपादित करें

लेवा गणबोली भाषा में से; सरल शब्दों में जीवन का सुख दुख व्यक्त करना। खानदेश के आसोद यह बहिनाबाई का जन्मस्थल हैं। वहाँ का परिसर ,वहाँ पर बोलने वाली भाषा उनके काव्यों में से व्यक्त होता हैं। वे खुद खेती-बाडी करने के कारण खेती,जमिन,उनके सुख दुख, जीवन का चढाऊ उतार, प्राणी- मात्र,पशु-पक्षी, झाड -पौधे,निसर्ग-इन सारे के प्रति उनमे आत्मियता थी ,यह हमे उनके काव्य संग्रह में से दिखाई देता हैं।

उदाहरण:

असा राजा शेतकरी, चालला रे आलवणी, देखा त्यांच्या पायाखाली; काते गेले वाकिसनी

अर्थात -किसान ऐसा है कि, जब वह नांगर लेके खेत जाता है तब उनके पैर में पायदल (चप्पल) नहीं रहती हैं, बल्कि उसके पैर में काटे रहते हैं। इतना सूक्ष्म निरक्षण, स्मरणशक्ति, जीवन के सुखों दुखों के प्रति, जीवन जिने से मिलने वाला तत्त्वज्ञान यही उनके काव्य कि विशेषताऐ हैं। 'आला सास ,गेला सास,बहिनाबाई चौधरी एक मराठी कवियित्री थीं।जिवा जुझे रे तंतर, अरे जगनं-मरनं एका असच अंतर'! इसप्रकार के शब्द हैं,जिससे लोगों का मन जित सकते हैं। कोई एक बड़े से बड़ा ग्रंथ का जीवन का विस्तार एक छोटे से छोट सरल शब्द में उन्होंने किया हैं। बहिनाबाई कए काव्यों का अनुवाद अंग्रेजी में 'फ्रँग्रर्न्स आँफ दि अर्थ' इस इस प्रकार के काव्यसंग्रह से प्रकाशित किया हैं। अनुवादक यह माधुरि शानभाग हैं।

कविताओं का विषय संपादित करें

बहिनाबाई की कविताये विशेष तौंर से उनकी मातृभाषा पर अवलंबित हैं ,उनकी कविताओं का विषय हैं- पिहर,संसार,खेती कि सामग्री,उनका काम काज आदि। कृषीजीवन के विविध प्रसंग,पोला,गुढिपाडवा आदि। त्योहारोंका समावेश हैं।

हमारे जीवन में भगवान किस प्रकार उपस्थित रहता हैं,सुरज ,हवा,पानी ,आकाश इनमें भगवान कृष्ण उपस्थित हैं ,इसप्रकार वह अपनी कविताये लिखा करती हैं।

अभिप्राय और समीक्षा संपादित करें

बहिनाबाई चौधरी यह मराठी साहित्यकार हैं। 'जुन्यात चमकेलं आणि नव्यात झळकेलं असे बावनकशी' इसप्रकार सोने के समान उनका काव्य हैं, इसप्रकार आचार्य अत्रे इन्होंने बहिनाबाई को अभिप्राय दिया हैं।

कविताएँ संपादित करें

  • अरे खोप्यामधी खोपा
  • अरे संसार संसार
  • धरित्रिच्या कुशिमधे
  • बिना कंपाशीनं उले
  • मन वढाळ वढाळ
  • माझी माय सरसोती

उनकी कविताएँ विषय विशेष तौर से मनुष्य का जन्म, मनुष्य का जीवन और उनकी मृत्यु पर आधारित हैं। वह ये भी कहती है कि ,किस प्रकार मनुष्य अपना पेट भरने के लिये तडपता है, किसप्रकार उन्हे कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, यह सब उन्होंने अपने कविता में बताया हैं।

बाहरी कड़ियां संपादित करें