वासुकी प्रसिद्ध नाग हैं महर्षि कश्यप के पुत्र थे जो कद्रु के गर्भ से हुए थे । इसकी पत्नी शतशीर्षा थी। नागधन्वातीर्थ में देवताओं ने इसे नागराज के पद पर अभिषिक्त किया था। शिव का परम भक्त होने के कारण यह उनके शरीर पर निवास था। शिव को जब ज्ञात हुआ कि नागवंंश का नाश होनेे वाला है तब भगवाान शिव और माता पार्वती ने अपनी पुत्री मनसा का विवाह जरत्कारू के साथ कर दिया और इनके पुुत्र आस्तीक ने जनमेजय के नागयज्ञ के समय नागोंं की रक्षा की, नहीं तो नागवंंश उसी समय नष्ट हो गया होता। समुद्रमंथन के समय वासुकी[1] ने पर्वत को बांधने के लिए रस्सी का काम किया था। त्रिपुरदाह के समय वह शिव के धनुष की डोर बना था। वासुकी के पांंच फण हैंं। वासुकी के बड़े भाई शेषनाग हैं जो भगवान विष्णु के परम भक्त हैं उन्हें शैय्या के रूप में आराम देते हैं। १००० नागों में शेषनाग सबसे बड़े भाई हैं , दूसरे स्थान पर वासुकी और तीसरे स्थान पर तक्षक हैं।वासुकी नाग जी का वास हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला के थाटीबीर गाव मै भी माना जाता है । इनका पहला स्थान् मनीकरण मै स्तिथ है और इनकी पत्नी मनीकरण की देवी माँ नैना भगवती है !

  1. "भगवान शिव से जुड़ी 12 गुप्त बातें जानिए | Bhagwan Shiv Ji se judi 12 gupt baatein - Shri Shivji" (अंग्रेज़ी में). 2023-04-05. मूल से 5 मई 2023 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2023-05-05.
भगवान शिव के गले में वासुकी
समुद्रमन्थन के लिये वासुकी ने रस्सी का काम किया।