बीरूबाला राभा, एक समाज सेविका है जो लंबे समय से डायन बताकर हत्या किए जानेवाली कुप्रथा के ख़िलाफ़ काम कर रही हैं। [1]

जीवन संपादित करें

बीरूबाला जब पांच साल की थी तब इसके पिता का देहांत हो गया था। 15 साल की उमर में राभा की शादी एक किसान से हो गयी थी।[2]

उपलब्धि संपादित करें

असम की 62 साल की बीरूबाला की कोशिशों को नतीजा है कि वहां की विधानसभा ने पिछले दिनों "डायन हत्या निषेध" विधेयक पारित किया है बीरूबाला[3], डायन बताकर मार देने वाले अंधविश्वास के खिलाफ सालों से लड़ रहीं हैं और अब तक 42 से अधिक महिलाओं की जान को बचा चुकी हैं। इसके लिए उन्हें कई सम्मान भी दिए जा चुके हैं। [4]

1996 में जब उनके बेटे को मलेरिया हुआ तो गांव[5] के लोगों की बताई 'देवधोनी' ने इलाज करने की बजाए कहा कि बेटा मर जाएगा. पर बेटा ज़िंदा रहा, और तभी से बीरूबाला ने अंधविश्वास [6]के ख़िलाफ़ लड़ाई शुरू की।

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 11 दिसंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 दिसंबर 2016.
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 3 दिसंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 दिसंबर 2016.
  3. "संग्रहीत प्रति". मूल से 21 दिसंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 दिसंबर 2016.
  4. "संग्रहीत प्रति". मूल से 20 दिसंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2020.
  5. "संग्रहीत प्रति". मूल से 20 दिसंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 दिसंबर 2016.
  6. "संग्रहीत प्रति". मूल से 20 दिसंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 दिसंबर 2016.