बेर (वानस्पतिक नाम : Ziziphus mauritiana) फल का एक प्रकार हैं। कच्चे फल हरे रंग के होते हैं। पकने पर थोड़ा लाल या लाल-हरे रंग के हो जाते हैं।

डाली में लगा हुआ बेर का फल
पके हुए बेर
बेर की एक प्रजाति

बेर एक ऐसा फलदार पेड़़ है जो कि एक बार पूरक सिंचाई से स्थापित होने के पश्चात वर्षा के पानी पर निर्भर रहकर भी फलोत्पादन कर सकता है। यह एक बहुवर्षीय व बहुउपयोगी फलदार पेड़ है जिसमें फलों के अतिरिक्त पेड़ के अन्य भागों का भी आर्थिक महत्व है। शुष्क क्षेत्रों में बार-बार अकाल की स्थिति से निपटने के लिए भी बेर की बागवानी अति उपयोगी सिद्ध हो सकती है। इसकी पत्तियाँ पशुओं के लिए पौष्टिक चारा प्रदान करती है जबकि इसमें प्रतिवर्ष अनिवार्य रूप से की जाने वाली कटाई-छंटाई से प्राप्त कांटेदार झाड़ियां खेतों व ढ़ाणियों की रक्षात्मक बाड़ बनाने व भण्डारित चारे की सुरक्षा के लिए उपयोगी है।

बेर की पत्तियां अलग-अलग आकार की होती हैं, अंडाकार या दीर्घ वृत्ताकार आकार की होती हैं। पत्तियों का आकार (लंबाई x चौड़ाई) ~4.7 सेमी x 2.5 सेमी - 9.6 सेमी x 7.3 सेमी, कोमल से लेकर वृद्धावस्था तक होता है। पत्तियों का ऊपरी भाग (एडैक्सियल) तैलीय सतह के साथ गहरे हरे रंग का होता है, जबकि हल्का सफ़ेद निचले भाग (अबाक्सियल) की सतह धागे के समान उलझी हुई सूक्ष्म-फाइबर सतह से ढका होता है। इन सूक्ष्म-फाइबर का व्यास ~5.6 से 7.1 माइक्रोमीटर तक होता है। हाल ही में महेश चंद्र दुबे द्वारा प्रकाशित शोध में बताया गया है कि उलझा हुआ सूक्ष्म-फाइबर पत्ती की निचले सतह की जल प्रतिरोध (हाइड्रोफोबिसिटी) को बढ़ाता है। इसके साथ-साथ यह सूक्ष्म-फाइबर सूरज की विकीरण को आंशिक रूप से परावर्तित करके बचता है [1]

बेर खेती ऊष्ण व उपोष्ण जलवायु में आसानी से की जा सकती है क्योंकि इसमें कम पानी व सूखे से लड़ने की विशेष क्षमता होती है बेर में वानस्पतिक बढ़वार वर्षा ऋतु के दौरान व फूल वर्षा ऋतु के आखिर में आते है तथा फल वर्षा की भूमिगत नमी के कम होने तथा तापमान बढ़ने से पहले ही पक जाते है। गर्मियों में पौधे सुषुप्तावस्था में प्रवेश कर जाते है व उस समय पत्तियाँ अपने आप ही झड़ जाती है तब पानी की आवश्यकता नहीं के बराबर होती है। इस तरह बेर अधिक तापमान तो सहन कर लेता है लेकिन शीत ऋतु में पड़ने वाले पाले के प्रति अति संवेदनशील होता है। अतः ऐसे क्षेत्रों में जहां नियमित रूप से पाला पड़ने की सम्भावना रहती है, इसकी खेती नहीं करनी चाहिए। जहां तक मिट्टी का सवाल है, बलुई दोमट मिट्टी जिसमें जीवांश की मात्रा अधिक हो इसके लिए सर्वोत्तम मानी जाती है, हालाकि बलुई मिट्टी में भी समुचित मात्रा में देशी खाद का उपयोग करके इसकी खेती की जा सकती है। हल्की क्षारीय व हल्की लवणीय भूमि में भी इसको लगा सकते है। बेर में 300 से भी अधिक किस्में विकसित की जा चुकी है परन्तु सभी किस्में बारानी क्षेत्रों में विशेषकर कम वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त नहीं है। ऐसे क्षेत्रों के लिए अगेती व मध्यम अवधि में पकने वाली किस्में ज्यादा उपयुक्त पाई गई है। [2]

सन्दर्भ संपादित करें

  1. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  2. बेर की व्यावसायिक खेती व प्रबन्धन Archived 2016-01-31 at the वेबैक मशीन (केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान, जोधपुर)

इन्हें भी देखें संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें