भरभोलिए गाय के गोबर से बने ऐसे उपले होते हैं जिनके बीच में छेद होता है। इस छेद में मूँज की रस्सी डाल कर माला बनाई जाती है। एक माला में सात भरभोलिए होते हैं। होली में आग लगाने से पहले इस माला को भाईयों के सिर के ऊपर से सात बार घूमा कर फेंक दिया जाता है। रात को होलिका दहन के समय यह माला होलिका के साथ जला दी जाती है। इसका यह आश्य है कि होली के साथ भाईयों पर लगी बुरी नजर भी जल जाए।[1] भारतीय जन मानस व संस्कृति में गाय के गोबर का अपना विशेष महत्व है। होली पर भी इसका महत्व देखने को मिलता है। किसी समय जब घर घर में गाय हुआ करती थी उस समय होली के दिनों में दोपहर में घर की महिलाएँ उपले और भरभोलिए बनाती थी लेकिन बदलते परिवेश ने इसमें फर्क डाला है। आज घर घर में गैस के चूल्हों ने जगह बना ली है और गाय का गोबर उपयोग में नहीं आता है। इस कारण भरभोलियों को घर में बनाना संभव नहीं हैं। लेकिन होली के अवसर पर इन्हें दूकान से ख़रीदा जा सकता है। इन भरभोलियों का राजस्थान में बहुत प्रचलन है। बीकानेर के दम्माणियों के चौक व बारहगुवाड चौक में होली के अवसर पर भरभोलियों की बिक्री परवान पर चढ़ती है।

बीकानेर में भलभोलियों की दूकान

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "भरभोळियों का है होली पर विशेष महत्व". खबर एक्सप्रेस. मूल (एचटीएमएल) से 15 मार्च 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 मार्च 2008. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)