भारतीय विज्ञान संस्थान

भारत का वैज्ञानिक अनुसंधान और उच्च शिक्षा के लिये अग्रगण्य शिक्षा संस्थान

भारतीय विज्ञान संस्थान भारत का वैज्ञानिक अनुसंधान और उच्च शिक्षा के लिये अग्रगण्य शिक्षा संस्थान है। यह बंगलुरु में स्थित है। इस संस्थान की गणना भारत के इस तरह के उत्कृष्टतम संस्थानों में होती है। संस्थान ने प्रगत संगणन, अंतरिक्ष, तथा नाभिकीय प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान किया है।  2016 तक यह संस्थान दुनिया के सर्वश्रेष्ठ 250 संस्थानों में से एक था

भारतीय विज्ञान संस्थान का प्रशासकीय भवन

इतिहास संपादित करें

भारतीय विज्ञान संस्थान (भाविसं) की परिकल्पना एक शोध संस्थान या शोध विश्वविद्यालय के रूप में जमशेत जी नसरवान जी टाटा द्वारा, उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में की गई थी। इस परिकल्पना से लगभग तेरह वर्षों के लंबे अंतराल के पश्चात 27 मई 1909 को इस संस्थान का जन्म हुआ।

भारतीय विज्ञान संस्थान की स्थापना २७ मई सन् १९०९ में स्वामी विवेकानन्द की प्रेरणा से महान उद्योगपति जमशेदजी नुसरवानजी टाटा के दूरदृष्टि के परिणामस्वरूप हुई। सन १८९८ में संस्थान की रूपरेखा व निर्माण के लिये एक तात्कालिक समिति बनायी गयी थी। नोबेल पुरस्कार विजेता सर विलियम राम्से ने इस संस्थान की स्थापना हेतु बंगलोर का नाम सुझाया और मॉरीस ट्रॅवर्स इसके पहले निदेशक बने। 1956 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना के साथ, संस्थान डीम्ड विश्वविद्यालय के रूप में अपने वर्तमान स्वरूप में सक्रिय है।

इस संस्थान के प्रारंभिक इतिहास में भारतीय उच्च शिक्षा और वैज्ञानिक शोध का एक स्वर्णिम अध्याय रहा है। संस्थान की स्थापना में अनेक ख्यात व्यक्तियों का योगदान रहा है। इनमें प्रमुख हैं - जमशेत जी टाटा, स्वामी विवेकानंद, जो सर्वविदित शिकागो यात्रा में उनके सहयात्री थे, मैसूर के महाराजा श्री कृष्णराज वाडयार चतुर्थ, उनकी माता और भारत के तत्कालीन वायसराय लार्ड कर्जन। दुर्भाग्यवश, अपनी कल्पना को साकार देखने के कुछ वर्ष पूर्व ही जमशेत जी टाटा का 1904 में निधन हो गया। सन 1909 में ब्रिटिश सरकार के भारतीय विज्ञान संस्थान का स्थापनादेश जारी करने के साथ उच्च शिक्षा और शोध के क्षेत्रों में एक अद्वितीय प्रयोग का शुभारंभ हो गया। भारतीय विज्ञान संस्थान सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र की साझेदारी का पहला उदाहरण है।

१९५८ में इस संस्थान को समविश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया।

परिचय संपादित करें

भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलूर के लगभग 400 एकड़ उत्कृष्ट भूमि में व्याप्त है, जिसे मार्च 1907 में मैसूर के महाराजा द्वारा उदारता-पूर्वक दान में दिया गया था। मैसूर के राजवंश द्वारा दिया गया यह योगदान जे एन टाटा के प्रस्तावित संस्थान के स्थान के निर्धारण का कारण रहा है। टाटा यह नहीं चाहते थे, इस संस्थान के साथ उनका नाम जुड़ा रहे। उनका सपना था एक ऐसे संस्थान के निर्माण का था, जो भारत के विकास में अपना योगदान दे सके। भारतीय विज्ञान संस्थान हर प्रकार से जे एन टाटा की अपेक्षाओं को प्रतिबिंबित करता है। बेंगलूर आनेवाले भा वि सं का पता लगाने के लिये अभी भी स्थानीय व्यक्तियों से टाटा इंस्टिट्यूट का पता पूछते हैं जो जमशेत जी टाटा के उदारता पूर्ण कार्य के प्रति सतत श्रद्धांजलि है। एक शताब्दी के बीत जाने पर भी सार्वजनिक स्मृति में जमशेत टाटा जी के महान प्रयासों का साक्षी बना रहा है।

यह संस्थान केवल दो विभागों के साथ प्रारंभ हुआ था सामान्य व अनुप्रयुक्त रासायनिकी तथा विद्युत प्रौद्योगिकी। इसके प्रथम निदेशक मोरिस डब्ल्यू ट्रावर्स ने वर्ष 1906 के अंत में भारत आने के तुरंत बाद संस्थान को संगठित करने का प्रयास किया। ट्रावर्स ने, मुख्य भवन के निर्माण का कार्य प्रारंभ किया आज बेंगलूर का एक सीमाचिह्न बन गया है। आरंभिक विभागों कार्वनिक रासायनशास्त्र तथा जैव रासायन शास्त्र - के बाद वर्ष 1933 में भौतिकी विभाग अस्तित्व में आया, जब सी वी रामन इस संस्थान के प्रथम भारतीय निदेशक बने।

विगत शताब्दी में अपनी स्थापना के समय से ही भा वि सं, विज्ञान तथा अभियांत्रिकी में अनुसंधान तथा स्नातकोत्तर शिक्षा के लिये भारत का प्रमुख केंद्र रहा है। विगत सौ वर्षों में संस्थान का विकास भारत में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विकास में प्रतिबिंबित हुआ है। दीर्घ इतिहास, शैक्षिक अनुसंधान की एक दृढ़ परंपरा तथा विद्वत्तापूर्व कार्यकलापों के लिए अनुकूल परिवेश इस संस्थान को विद्यार्थियों एवं शिक्षकों के लिये अत्यंत आकर्षक स्थान बनाने वाले महत्वपूर्ण तत्व बन गये हैं। जैसे-जैसे संस्थान का विस्तार हुआ नये-नये अनुसंधान के क्षेत्र स्थापित किये गये हैं - उनमें से अधिकांश भारत में पहली बार बने हैं। जैव रासायन से लेकर अंतिरक्ष अभियांत्रिकी तक के क्षेत्रों में संस्थान के विभागों ने अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है अनेक सरकारी एवं निजी क्षेत्रों से सम्बद्ध अनुसंधान एवं विकास में संस्थान की राष्ट्रीय भूमिका है। संस्थान के शिक्षक एवं पूर्व छात्रों ने, देश भर में अनेकों नये संस्थानों तथा कार्यक्रमों की स्थापना एवं नेतृत्व किया तथा जो वास्तविक अर्थ में राष्ट्र के उत्थान एवं विकास के लिये इस संस्थान के प्रमुख योगदान को प्रतिबिंबित करते हैं। होमी भाभा ने भा वि सं के भौतिकी विभाग में कार्यरत हुए ही टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान (टीआईएफआर) तथा परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के विचारों को जन्म दिया था। विक्रम साराभाई - भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के संस्थापक - इस संस्थान के भूतपूर्व छात्र रहे हैं। उनके असामयिक निधन के बाद, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इस्रो) का निर्माण सतीश धवन के दूरदर्शी के नेतृत्व में किया गया जो उस समय संस्थान के निदेशक थे। प्रथम भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) खड़गपुर की स्थापना जे सी घोष द्वारा की गई थी, जो 1939-48 के दौरान भा वि सं के निदेशक रहे। इस दौरान ही, संस्थान में अभियांत्रिकी में त्वरित गति से अनुसंधान कार्य किया गया। भारत के अधिकांश प्रतिष्ठित वैज्ञानिक, छात्र या शिक्षक के रूप में संस्थान से जुड़े रहे हैं। जी एन रामचंद्रन, हरिश्चंद्र, एस रामशेषन, ए रामचंद्रन, सी एन आर राव तथा आर नरसिंह इनमें उल्लेखनीय हैं। संस्थान के भूतपूर्व छात्र, भारत तथा विदेशों में अनेकों प्रमुख संगठनों के प्रधान रहे हैं।

भारतीय विज्ञान संस्थान, अभियांत्रिकी में स्नातकोत्तर शिक्षा तथा विज्ञान एवं अभियांत्रिकी की विभिन्न शाखाओं में शोध कार्यक्रम व उपाधि प्रदान करता है। विगत वर्ष में संस्थान में 4 वर्षीय स्नातकोत्तर शिक्षा (बी.एस. उपाधि) कार्यक्रम प्रारंभ किया गया है जो छात्रों के अनुसंधान के प्रति उन्मुख होने के साथ–साथ विज्ञान में ठोस बुनियाद प्रदान करता है। संस्थान की अनुसंधान प्रयोगशालाएँ आधुनिक सुविधाओं से युक्त हैं। ग्रंथालयों का आधुनिकीकरण प्रगति पर हैं। भारतीय विज्ञान संस्थान प्रति वर्ष भारत तथा विदेश के सैंकड़ों वैज्ञानिकों तथा शोधार्थियों का आतिथेय बनता है तथा अनेकों प्रमुख राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय शैक्षिक कार्यक्रम का केन्द्र बिन्दु है।

विगत कुछ वर्षों में विज्ञान एवं अभियांत्रिकी अनुसंधान का रूप त्वरित गति से परिवर्तित हो रहा है। अपने स्थापना के द्वितीय शताब्दी में पहुँचते-पहुँचते संस्थान ने अनेकों नये-नये कार्यकलाप प्रारंभ किया है। उनमें से उल्लेखनीय है – अति सूक्ष्म विज्ञान एवं अभियांत्रिकी में शोध कार्यक्रम। इन कार्यक्रमों का आशय रहा है – अति सूक्ष्म विज्ञान की शाखाओं की पारंपरिक सीमाओं को कम करना तथा एतत्द्वारा, विज्ञान की प्रत्येक शाखा में अनुसंधान का उन्नयन करना। परिवहन अभियांत्रिकी में एक स्नातकोत्तर कार्यक्रम वर्ष 2010 में प्रारंभ किया गया है तथा प्रबंधन में स्नातक कार्यक्रम के साथ-साथ प्रौद्योगिकी प्रबंध तथा व्यवसाय विश्लेषिकी उपशाखा को इस वर्ष प्रारंभ किया गया है। पृथ्वी-विज्ञान, जलवायु परिवर्तन तथा तंत्रिका विज्ञान (न्यूरोसाइन्स) के क्षेत्रों में नये केंद्र स्थापित किये गये हैं।

यह संस्थान विभिन्न प्रकार के अधिक्रमिक कार्यक्रमों के द्वारा समाज एवं उद्योग के साथ अंतर्कियाओं में कार्यरत है। वैज्ञानिक एवं औद्योगिक परामर्श केंद्र (सीएसआईसी) तथा नवोन्मेष एवं विकास संघ (एसआईडी) ये दोनों केंद्र उद्योगों के साथ संबंध स्थापित करते हैं। वहीं पर शिक्षा निरंतरता केंद्र (सीसीई), कार्यरत विज्ञानियों एवं अभियंताओं को अपने शैक्षिक शक्ति को समृद्धि बनाने के लिये अवसर प्रदान करता है। यह संस्थान सक्रिय रूप से ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन तथा संचालन करता है जो प्रतिभा संपन्न युवा विद्यालयी छात्रों तथा स्नातक कक्षा के छात्रों को अपने अनुसंधानात्मक व्यावसायिक जीवन का अनुसरण करने हेतु प्रेरणा देते हैं। संस्थान का विज्ञान एवं अभियांत्रिकी में युवा अधिसदस्यता कार्यक्रम युवा छात्रों को ग्रीष्म काल में अपने परिसर में शोध संबंधी कार्यक्रम में सहभागी बनने का अवसर देता है। भारतीय विज्ञान संस्थान भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना (केवीपीवाय) का भी संचालन करता है। परिसर पर स्थित कर्नाटक राज्य के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के साथ संपोषणीय प्रौद्योगिकी केन्द्र (सीएसटी) द्वारा लिये गये कार्यकलापों द्वारा विशेष रूप से महत्व दिये गये तथा सामाजिक रूप से संगत अनुसंधान के प्रति वचनबद्ध है।

इस संस्थान ने वर्ष 2009 में अपने अस्तित्व की एक शताब्दी पूरी की है।

संस्थान के निदेशक संपादित करें

विज्ञान शिक्षा में दक्ष इस संस्थान के अब तक के निदेशकों की सूची में ये महान नाम हैं-

मॉरीस ट्रेवर्स, FRS, वर्ष 1909-1914,
सर ए जी बॉर्न, FRS, सन् 1915-1921,
सर एम ओ फोरस्टर, FRS, 1922-1933,
सर सी.वी. रमन, FRS, वर्ष 1933-1937,
सर जे.सी. घोष, [6] 1939-1948,
एम एस ठेकर, 1949-1955,
एस भगवन्तम्, 1957-1962,
सतीश धवन, 1962-1981,
डी के बनर्जी, 1971-1972,
एस रामशेषन, [7] 1981-1984,
सी एन आर राव, FRS, 1984-1994,
जी पद्मनाभन, 1994-1998,
जी मेहता, 1998-2005,
पी. बलराम -- वर्ष २००५ से संस्थान के निदेशक हैं।

होमी भाभा, सतीश धवन, जी. एन. रामचंद्रन, सर सी. वी. रमण, राजा रामन्ना, सी. एन. आर. राव, विक्रम साराभाई, जमशेदजी टाटा, मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया, ए. पी. जे. अब्दुल कलाम जेसे महान विज्ञान से जुड़े व्यक्तित्व इस संस्थान के विद्यार्थी रह चुके हैं या किसी न किसी रूप में भारतीय विज्ञान संस्थान से जुड़े रहे हैं।

विकिपीडिया के अनुसार विश्वस्तर पर रैंकिग में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साईंस बेंगलोर का प्रथम १०० में स्थान है। विज्ञान शिक्षा प्राप्त करने हेतु यह देश का एक मात्र इंडियन इंस्टीट्यूट है जिसे डीम्ड यूनिवर्सिटी का दर्जा प्राप्त है। अब तक संस्थान से स्नातक या शोध के एम.एससी. (Engg), एम.टेक., एम.बी.ए. व पीएच.डी. पाठ्यक्रम ही संचालित थे पर इसी वर्ष २०११ जुलाई से अपने पहले बैच के प्रवेश के १००वें वर्ष से संस्थान ने विश्व स्तरीय ४ वर्षीय बी.एस. पाठ्यक्रम प्रारंभ भी किया है, जिसमें अधिकतम कुल ११० सीटें हैं। प्रवेश के लिये किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना को प्रमुख मापदण्ड बनाया गया है, कुछ सीटें आई आई टी जे ई ई, तथा ए आई ई ई ई तथा ए आई पी एम टी के उच्च स्थान प्राप्त बच्चो को भी दी जाती हैं। हायर सेकेण्डरी की शिक्षा के बाद कालेज एजूकेशन में जो छात्र केवल नम्बर मात्र लाने के उद्देश्य से पढ़ाई नहीं करना चाहते और न ही फार्मूले रटते हैं वरन् जो पढ़ने को इंजाय करते हैं अर्थात जिनमें विज्ञान के प्रति नैसर्गिक अनुराग है, जो जीवन-यापन के लिये केवल धनार्जन के लिये नौकरी ही नहीं करना चाहते बल्कि कुछ नया सीखकर कुछ नया करना चाहते हैं, समाज को कुछ देना चाहते हैं, उनके लिये ज्ञानार्जन का यह भारत में सर्वश्रेष्ठ विज्ञान शिक्षण संस्थान है।

संस्थान का कैम्पस 400 एकड़ हरे भरे १०० से अधिक प्रजातियो के सघन वृक्षो से सजी जमीन पर फैला हुआ है। मैसूर के महाराजा कृष्णराजा वोडयार चतुर्थ के समय में इस संस्थान का निर्माण किया गया था। आईआईएससी परिसर उत्तर बंगलौर में स्थित है जो शहर के मुख्य रेलवे स्टेशन से ६ कि मी, बस स्टैंड से 4 किलोमीटर की दूरी पर है। यशवंतपुर निकटतम रेल्वे हेड है जो लगभग २.५ कि॰मी॰ पर है। संस्थान बहुत पुराना है और टाटा इंस्टीट्यूट के नाम से आटो रिक्शा चालक सहज ही इसे पहचानते हैं। परिसर में 40 से अधिक विज्ञान शिक्षण के विभागो के भवन हैं, छह कैंटीन (कैफेटेरिया), एक जिमखाना (व्यायामशाला और खेल परिसर), फुटबॉल और क्रिकेट मैदान, नौ पुरुषों के और पाँच महिलाओं के हॉस्टल हैं, एक हवाई पट्टी, "जेआरडी टाटा मेमोरियल लाइब्रेरी, एक भव्य कंप्यूटर केंद्र भी है जो भारत के सबसे तेज सुपर कंप्यूटर्स में है। नेनो टैक्नालाजी की नई प्रयोगशाला विश्वस्तरीय आकर्षण है। खरीदारी केन्द्रों, मसाज पार्लर, ब्यूटी पार्लर और स्टाफ के सदस्यों के लिए निवास भी परिसर में है। यह पूर्णतः आवासीय शिक्षण संस्थान है। मुख्य भवन के बाहर संस्थापक जे.एन. टाटा की स्मृति में उनकी आदमकद मूर्ति स्थापित की गई है।

डीआरडीओ, इसरो, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, वैमानिकी विकास एजेंसी, नेशनल एयरोस्पेस लेबोरेटरीज, सीएसआईआर, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग (भारत सरकार) इत्यादि वैज्ञानिक संगठनो से आईआईएससी अनेक परियोजनाओ में निरंतर सहयोग कर रहा है। कार्पोरेट जगत के साथ तादात्म्य बनाने के लिये भी संस्थान सक्रिय है और अनेक निजी क्षेत्र की कंपनियां कैम्पस सेलेक्शन तथा प्रोडक्ट रिसर्च में सहयोग हेतु यहां पहुंचती हैं। विदेशी शिक्षण संस्थानो से भी आईआईएससी अनेक एम ओ यू हस्ताक्षरित कर रहा है।

कुछ जानेमाने विद्यार्थी और जुड़े लोग संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें