विश्व की सबसे शानदार मानव-निर्मित और प्राकृतिक चीजों को सूचीबद्ध करने के लिए विश्व के सात आश्चर्य की कई सूचियां बनाई गयी हैं। लेकिन टाइम्स ऑफ इंडिया (TOI) समाचार पत्र ने [India] के पहचाने गए 20 प्राचीन तथा मध्यकालीन स्थलों में से सात महान आश्चर्यों के चुनाव के लिए 21 से 31 जुलाई 2007 के बीच एक Simple Mobile Massage मतदान करवाया. भारत के सात आश्चर्यों को (उनमें से चार यूनेस्को के वैश्विक विरासत स्थल हैं) हैं।[1]

स्वर्ण मंदिर और ताजमहल को छोड़कर बाकी सभी आश्चर्य छोटे शहरों तथा गावों में स्थित हैं। हालांकि, मतदान के लिए सूचीबद्ध 20 स्मारकों में से 4 महानगरों में भी स्थित हैं - दिल्ली का लोटस टेम्पल तथा क़ुतुब मीनार, मुंबई का विक्टोरिया टर्मिनस और कोलकाता का हावड़ा ब्रिज.

मतदान के क्रम के अनुसार भारत के सात महान आश्चर्य इस प्रकार हैं:

  1. श्रवणबेलगोला या गोमतेश्वर - कर्नाटक राज्य के हासन जिले का श्रवणबेलगोला नामक एक स्थान
  2. हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) - पंजाब के अमृतसर शहर में स्थित
  3. ताज महल - उत्तर प्रदेश के आगरा में स्थित
  4. हाम्पी - उत्तरी कर्नाटक के एक गांव में स्थित
  5. कोणार्क - उड़ीसा राज्य का एक छोटा सा शहर
  6. नालंदा - बिहार में पटना के निकट स्थित एक प्राचीन विश्वविद्यालय
  7. खजुराहो - भारत के मध्य प्रदेश राज्य का एक town जो की छतरपुर जिले में स्थित है।

संक्षिप्त विवरण नीचे दिए गए हैं जबकि विस्तृत विवरण को संबंधित विकी पृष्ठों से प्राप्त किया जा सकता है।

श्रवणबेलगोला या गोमतेश्वर संपादित करें

 
जैन संत भगवान गोमतेश्वर बाहुबली की 983 ई. में निर्मित 17.8 मीटर लंबी और एक ही पत्थर को काटकर बनी प्रतिमा भारत के श्रवणबेलगोला में स्थित है। प्रत्येक बारह वर्ष में एक बार हजारों श्रद्धालुओं द्वारा महामस्तकाभिषेक उत्सव के हिस्से के रूप में इसका अभिषेक किया जाता है।

कर्नाटक राज्य के श्रवणबेलगोला शहर के निकट चंद्रगिरी पहाड़ी (618 सीढियां चढ़कर इस मूर्ति तक पहुंचा जा सकता है) की चोटी पर स्थित गोमतेश्वर (जिसे श्रवणबेलगोला भी कहा जाता है) की एक ही पत्थर से निर्मित विशालकाय मूर्ति जिसे जैन संत बाहुबली के नाम से भी जाना जाता है। इसका निर्माण लगभग 983 ई. में गंगा राजा रचमल (रचमल सत्यवाक् चतुर्थ 975-986 ई.) के एक मंत्री चामुण्डाराया द्वारा करवाया गया था। ऐसा कहा जाता है कि इस मूर्ति को महीन सफ़ेद ग्रेनाईट के एक ही पत्थर से काटकर बनाया गया है और धार्मिक रूप से यह अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि जैनियों का मानना है कि मोक्ष (जीवन-मरण के चक्र से छुटकारा) की प्राप्ति सर्वप्रथम बाहुबली को हुई थी। यह मूर्ति एक कमल पर खड़ी हुई है। जांघों तक यह बिना किसी समर्थन के खड़ी है और इसकी लंबाई 60 फीट (18 मी॰) और चेहरे का माप 6.5 फीट (2.0 मी॰) है। जैन परंपरा के अनुरूप यह मूर्ति पूर्णतया नग्न अवस्था में है और 30 किमी की दूरी से दिखाई देती है। मूर्ति के चेहरे के निर्मल भाव, घुंघराली आकर्षक जटाएं, आनुपातिक शारीरिक रचना, विशालकाय आकार और कलात्मकता तथा शिल्पकला के बेहतरीन मिश्रण के कारण इसे मध्यकालीन कर्नाटक[2] की शिल्पकला की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि कहा जाता है। यह पूरे विश्व में एक पत्थर से निर्मित (एकाश्म) सबसे विशालकाय मूर्ति है[3].

गोमतेश्वर प्रतिमा के अलावा श्रवणबेलगोला के आसपास के क्षेत्रों में जैनियों की बस्तियां और उनके तीर्थंकरों की कई प्रतिमाएं भी मौजूद हैं। चंद्रगिरी पहाड़ी के ऊपर से आसपास के क्षेत्रों के एक सुंदर दृश्य को देखा जा सकता है। प्रत्येक 12 वर्षों में हजारों श्रद्धालु महामस्तकाभिषेक के लिए यहां एकत्र होते हैं। इस अत्यंत शानदार मौके पर हजार वर्ष पुरानी प्रतिमा का दूध, दही, घी, केसर तथा सोने के सिक्कों से अभिषेक किया जाता है। पिछला अभिषेक फरवरी 2018 में हुआ था और इसकी अगली तिथि 2030 में है।[4].

स्वर्ण मंदिर या हरिमन्दिर साहिब संपादित करें

 
रात में स्वर्ण मंदिर
 
हरमंदिर साहिब (ईश्वर के निवास)- स्वर्ण मंदिर (मुख्य भवन) अकाल तख़्त साहिब के साथ कॉम्प्लेक्स अगस्त 1604 ई. में ख़तम हुआ

हरमंदिर साहिब[5] (पंजाबी: ਸਾਹਿਬ ਹਰਿਮੰਦਰ) या दरबार साहिब[6] (पंजाबी: ਸਾਹਿਬ ਦਰਬਾਰ), जिसे अनौपचारिक तौर पर स्वर्ण मंदिर या भगवान का मंदिर[5] कहा जाता है, सांस्कृतिक रूप से सिखों की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थान होने के साथ-साथ उनका सबसे पुराना गुरुद्वारा भी है। यह सिखों के चौथे गुरु राम दास द्वारा स्थापित [[अमृतसर|अमृतसर]] शहर में स्थित है। अमृतसर शहर को इस पवित्र तीर्थस्थान के कारण ही अपनी पहचान मिली है।

सिखों के चौथे गुरु राम दास ने 1577 ई. में एक सरोवर की खुदाई की जो बाद में अमृतसर या अमृत सरोवर (अर्थात अमरत्व प्रदान करने वाला सरोवर) के नाम से जाना गया[6], इसके आसपास बसने वाले शहर का नाम भी इसी के नाम पर पड़ा. समय के साथ इस सरोवर के बीच में हरिमन्दिर साहिब (अर्थात भगवान का निवास स्थान)[6] नामक एक शानदार सिख ईमारत का निर्माण किया गया और यह सिख धर्म का सर्वोच्च केन्द्र बन गया। इसके गर्भगृह में गुरु अर्जन देव द्वारा संकलित आदि ग्रंथ को रखा गया है जिसमें सिख गुरुओं और सिख मूल्यों तथा विचारों को प्रकट करने वाले बाबा फरीद, कबीर आदि जैसे अन्य संतों के उपदेश शामिल हैं।

स्वतंत्रता और आध्यात्मिक आजादी के प्रतीक इस मंदिर में पूरी दुनिया से श्रद्धालु आते हैं और इस स्थान का आनंद लेने के साथ-साथ प्रार्थना भी करते हैं। स्वर्ण मंदिर एक आयताकार मंच पर बना है और चारों तरफ से अमृत सरोवर से घिरा हुआ है। एक प्रवेश द्वार की बजाय इस मंदिर में चार प्रवेश द्वारा हैं। यह सिख धर्म के खुलेपन का प्रतीक है और इंगित करता है कि सभी धर्मों के अनुयायियों को प्रवेश की अनुमति है। भीतर की दीवारों को नक्काशीदार लकड़ी के फट्टों और चांदी तथा सोने जड़े काम से सजाया गया है। आदि ग्रंथ एक रत्न-जटित छतरी के नीचे एक सिंहासन पर विराजमान है। पुजारीगण निरंतर इस पवित्र पुस्तक के छंदों का पाठ करते रहते हैं।

ताज महल संपादित करें

 
ताज महल, रानी मुमताज महल के की स्मृति में बनाया गया

ताज महल (जिसे केवल "ताज" के नाम से भी जाना जाता है) को मुग़ल सम्राट शाहजहां द्वारा अपनी रानी मुमताज महल की याद में बनवाया गया था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के एक विवरण के अनुसार यह मुग़ल वास्तुकला का सर्वोत्तम नमूना है। इसे मुगल वास्तुकला का सबसे बेहतरीन उदाहरण माना जाता है, ऐसी शैली जिसमें फारसी, तुर्क, भारतीय और इस्लामी शैलियों का सुंदर मिश्रण है। 1983 में ताजमहल एक यूनेस्को विश्व विरासत स्थल बन गया और "भारत में मुस्लिम कला के एक बेशकीमती गहने और वैश्विक विरासत की सर्वत्र प्रशंसनीय एवं उत्कृष्ट कलाकृतियों में से एक के रूप में उद्धृत किया गया।" इसकी संरचना काफी सममित एवं एकीकृत है और इसे 1648 के आसपास पूर्ण किया गया था। आमतौर पर उस्ताद अहमद लाहौरी को ताज महल का प्रमुख रचयिता होने का श्रेय जाता है।[7]

सफ़ेद संगमरमर से निर्मित कब्र ताज महल का मुख्य आकर्षण है। इस कब्र को एक चौकोर स्तंभ पर बनाया गया है जिसमे एक सममित भवन शामिल है। इस सममित भवन में एक चापाकार दरवाजा (इवान) है और इन सबके ऊपर एक बड़े आकार का गुंबद बना हुआ है। अधिकांश मुगल मकबरों की तरह इसके भी बुनियादी तत्व फारसी मूल के ही हैं। इसके आधार में एक बड़ी और अनेक कक्षों वाली संरचना को बनाया गया है। इसका आधार घनाकार (क्यूब) है जिसके किनारे तिरछे हैं और चारों तरफ यह लगभग 55 मीटर तक फैला हुआ है (दाहिनी तरफ के फ्लोर प्लान को देखें). लंबे किनारों पर एक विशाल पिश्ताक या गुम्बददार तोरण, समान प्रकार की एक चापाकार बालकनी द्वारा इवान को घेरे हुए है। मुख्य मेहराब (चाप) के दोनों तरफ अतिरिक्त पिश्ताकों को ऊपर और नीचे की तरफ बनाया गया है। इस प्रकार के पिश्ताकों को तिरछे किनारों पर भी बनाया गया है। यह डिजाइन इसके चारों तरफ एक समान (सममित) ही है। मकबरे के आधार के चारों कोनों पर एक मीनार बनाई गयी है जिनका मुख तिरछे किनारों की तरफ है। मुख्य कक्ष में मुमताज महल और शाहजहां के नकली ताबूत रखे हुए हैं, उनकी वास्तविक कब्रें तो एक निचले स्तर में बनी हुई हैं। ताजमहल की बाहरी सजावट मुगल वास्तुकला की सबसे बेहतरीन सजावटों में से है। इसकी अलंकृत लिखावट थुलुथ लिपि की है जिसे फारसी शिल्पकार अमानत खान द्वारा रचा गया था।

इस स्मारक के निर्माण के लिए पूरे साम्राज्य और मध्य एशिया तथा इरान तक से विभिन्न प्रकार के भवन निर्माण कारीगरों तथा विशेषज्ञों को बुलाया गया था। जबकि आंतरिक निर्माण के लिए ईंटों को स्थानीय स्तर पर तैयार किया गया था, बाहरी सजावट के लिए सफेद संगमरमर को राजस्थान के मकराना से मंगवाया गया था। अलंकरण के लिए कम-कीमती पत्थरों को भारत, सीलोन (श्रीलंका) और अफगानिस्तान के सुदूर क्षेत्रों से लाया गया था। विभिन्न रंगों वाले लाल सैंडस्टोन (बलुआ पत्थर) को निकट की सीकरी, धौलपुर खदानों से मंगाया गया था। ताज के निर्माण में 17 वर्ष लगे थे।

हाम्पी संपादित करें

 
हाम्पी
 
विजयनगर हाम्पी, कर्नाटक में राजा गोपुरा

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14 वीं सदी के इन खंडहरों के भीतर लगभग हर प्रकार की पारंपरिक भारतीय वास्तुकला की झलकियों को देखा जा सकता है। महलों, मंदिरों, बाजारों, निगरानी के बुर्जों, अस्तबलों, स्नानागारों और पत्थर की मूर्तियों को विशाल शिलाखंडों के बीच चारों तरफ देखा जा सकता है; ये शिलाखंड इस स्थान के बंजर दृश्य तथा ऐतिहासिक अनुभूति को और अधिक उजागर करने का काम करते हैं।

हाम्पी के अवशेष एक यूनेस्को विश्व विरासत स्थल हैं[8] और विजयनगर वास्तुकला को दर्शाते हैं। इनमें पिछली सदियों में विकसित होने वाली चालुक्य, होयसला, पांड्य चोल शैलियों के जीवंत संयोजन को देखा जा सकता है।[9][10].हाम्पी विजयनगर साम्राज्य की अंतिम राजधानी थी और 14 वीं तथा 16 वीं शताब्दी के बीच आने वाले यात्रियों द्वारा इसका काफी गुणगान किया गया था। लेकिन 1565 ई. में दक्खन पर विजय प्राप्त करने वाले मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा इसको पूरी तरह बर्बाद करके छोड़ दिया गया।[11]. महलों, मंदिरों, बाजारों, निगरानी के बुर्जों, अस्तबलों, स्नानागारों और पत्थर की मूर्तियों को विशाल शिलाखंडों के बीच चारों तरफ देखा जा सकता है; ये शिलाखंड इस स्थान के बंजर दृश्य तथा ऐतिहासिक अनुभूति को और अधिक उजागर करने का काम करते हैं।

मूर्तिकला, वास्तुकला और चित्रकला की इसकी विरासत ने इस साम्राज्य का अंत होने के बाद भी लंबे समय तक कला के विकास को प्रभावित किया है। अलंकृत खंबेदार कल्याणमंटप (विवाह भवन), वसंतमंटप (खुला हुआ खंबेदार भवन) और राजगोपुरा (बुर्ज), इसकी प्रमुख कलाकृतियां हैं। हालांकि इस साम्राज्य के स्मारक पूरे भारत दक्षिणी में फैले हुए हैं, इसकी राजधानी विजयनगर में खुले स्थित स्मारकों की विशाल संख्या और आकार के समान कुछ भी नहीं है।[12].

कोणार्क संपादित करें

 
रात में कोणार्क सूर्य मंदिर, ओड़िसा

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चित्र:Wheel of Konark, Orissa, भारत.JPG
कोणार्क सूर्य मंदिर के व्हील

कोणार्क सूर्य मंदिर (इसे ब्लैक पगोड़ा के नाम से भी जाना जाता है) का निर्माण पूर्वी गंगा वंश के राजा नरसिंहदेव I (1236-1264 ई.) द्वारा काले ग्रेनाईट से करवाया गया था।[13]. यह मंदिर यूनेस्को का एक विश्व विरासत स्थल है। 13 वीं सदी में निर्मित इस मंदिर को एक विशालकाय रथ के आकार में बनाया गया है जिसमें 24 पहिये (प्रत्येक का व्यास 3.3 मीटर है) लगे हैं और इसके सात घोड़ों द्वारा सूर्य देवता को आकाश मार्ग से ले जाते दिखाया गया है। यह धार्मिक वास्तुकला का एक आश्चर्यजनक स्मारक है।[14].[15].[16] सूर्य मंदिर, भारतीय मंदिरों की कलिंग शैली में निर्मित है। इसके वक्रीय स्तंभों के ऊपर एक गुंबद है और सूर्य देवता को समर्पित होने के कारण यह पूर्व-पश्चिम दिशा की सीध में बना हुआ है। इसका प्रवेश द्वार सूर्य द्वारा प्रकाशित होता है। मंदिर के तीन खंड हैं - नटमंदिर (बाहरी हिस्सा), जगमोहन (भीतरी हिस्सा) और गर्भगृह (मुख्य परिसर जहां देवता का आवास है). मुख्य गर्भगृह (69.8 मी ऊंचा) को काफी विस्तृत दर्शक दीर्घा (39.5 मी ऊंचा) के साथ बनाया गया है। प्रमुख देवता के निवास वाला मुख्य गर्भगृह टूटकर गिर चुका है। दर्शक दीर्घा अपने पूर्ण स्वरूप में बची हुई है लेकिन नट मंदिर (नृत्य भवन) और भोग-मंडप के केवल कुछ ही हिस्से समय की मार को झेल पाए हैं। मंदिर परिसर का माप 857 फीट (261 मी॰) बटा 540 फीट (160 मी॰) है।[17].

मंदिर के प्रवेश द्वार पर दो सिंहों द्वारा एक-एक युद्ध हाथी को दबोचे हुए दिखाया गया है। जबकि उन दोनों हाथियों को एक मानव शरीर के ऊपर चढ़े दिखाया गया है। प्रवेश द्वार पर एक नट मंदिर अथवा नृत्य भवन भी है जहां मंदिर की नर्तकियां सूर्य देवता के सम्मान में नृत्य का प्रदर्शन किया करती थीं। मंदिर के चारों तरफ का हिस्सा विभिन्न पुष्प और ज्यामितीय आकारों से सुसज्जित है। कई मानवीय, दैवी तथा अर्ध-दैवी आकृतियों को कामुक अवस्थाओं में दर्शाया गया है। इन आकृतियों में जोड़ों को कामसूत्र से ली गयी विभिन्न कामुक अवस्थाओं में दर्शाया गया है।

नालंदा संपादित करें

 
नालंदा में सारिपुत्त का स्तूप.

भारत के बिहार राज्य में स्थित नालंदा, 427 ई. से 1197 ई. के बीच एक बौद्ध शिक्षा केन्द्र था और आंशिक रूप से पाल साम्राज्य के अधीन था।[18].[19] इसे "लिखित इतिहास के प्रथम महान विश्वविद्यालयों में से एक" कहा गया है।[19]. ऐतिहासिक अध्ययनों के अनुसार नालंदा विश्वविद्यालय को गुप्त वंश के सम्राटों द्वारा 450 ई. में स्थापित किया गया था; इनमें सबसे उल्लेखनीय नाम कुमारगुप्त का है।[18]. दुनिया के पहले आवासीय विश्वविद्यालय के रूप में माने जाने वाले नालंदा में छात्रों के शयनकक्ष मौजूद थे और 10,000 से अधिक छात्र और लगभग 2,000 शिक्षक यहां रहते थे। इस विश्वविद्यालय को वास्तुशिल्प का एक बेहतरीन नमूना माना जाता था जिसमे एक ऊंची दीवार और एक ही प्रवेश द्वारा था। नालंदा में आठ अलग-अलग परिसरों तथा दस मंदिरों के साथ-साथ कई अन्य ध्यान लगाने के भवन तथा कक्षाएं मौजूद थीं। अनेक झीलें तथा उद्यान भी थे। पुस्तकालय एक नौ मंजिला इमारत में था जहां ग्रंथों की प्रतियां को अत्यंत सावधानीपूर्वक तैयार किया जाता था। नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षण के लगभग सभी विषयों को सिखाया जाता था और कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, तुर्की, फारस तथा इंडोनेशिया जैसे सुदूर क्षेत्रों से भी विद्यार्थी तथा विद्वान यहां आते थे।[19] तांग वंश के चीनी तीर्थयात्री ह्वेनसांग ने 7 वीं सदी में इस विश्वविद्यालय का विस्तृत विवरण प्रदान किया है।

खजुराहो संपादित करें

 
खजुराहो में एक पंचायाताना मंदिर में लक्ष्मण मंदिर.
 
खजुराहो मंदिर, भारत

खजुराहो में हिंदू और जैन धर्मों के मध्ययुगीन (950 ई. से 1050 ई. के बीच) मंदिरों का सबसे बड़ा समूह है। कामुक कलाकृतियों के प्रसिद्ध इस मंदिर परिसर में वास्तुकला और मूर्तिकला का आदर्श मिश्रण (संलयन) दिखाई देता है। यह मंदिर परिसर यूनेस्को का एक विश्व विरासत स्थल है। कन्दारिया के मंदिर में प्रचुर मात्रा में अलंकृत कलाकृतियां मौजूद हैं जिन्हें भारतीय कला के सर्वश्रेष्ठ नमूनों में से एक माना जाता है।[20]. चंदेल वंश द्वारा निर्मित इन मंदिरों में स्पष्ट रूप से कामुकता दर्शाने वाली मूर्तियों को दिखाया गया है, जिन्हें उस समय प्रचलित संभोग की मुद्राओं हेतु कलाकार की कल्पना अथवा कामसूत्र में इंगित नियमों के आधार पर बनाया गया है। कई वास्तुशिल्पियों ने इन कलाकृतियों का श्रेय लेने का दावा किया है।[21] बादामी, गुलाबी या हल्के पीले रंग के विभिन्न प्रकारों के सैंडस्टोन (बलुआ पत्थर) से निर्मित इन मंदिरों में से अधिकांश शिव, वैष्णव या जैन धार्मिक संप्रदायों से संबंधित हैं; हालांकि इन संप्रदायों में अंतर करना काफी मुश्किल काम है। पूर्व-पश्चिम दिशा में स्थित ये मंदिर काफी विस्तृत स्थान पर फैले हुए हैं और अंदर के कमरे आपस में जुड़े हुए हैं। एक प्रवेश द्वार, एक भवन, एक गलियारे और एक गर्भगृह को सामान्य तौर पर मंदिरों में पाया जा सकता है। ऐसा कहा गया है कि खजुराहो मंदिर स्त्रीजाति और उसके अनगिनत भावों तथा पहलुओं के एक उत्सव के समान हैं, जिन्हें पत्र लिखती, आंखों का श्रृंगार करती, बालों को संवारती, नृत्य करती और अपने बच्चे के साथ खेलती हुई महिलाओं की नक्काशियों और कलाकृतियों में देखा जा सकता है। इसके अलावा अत्यंत कुशलता के साथ मासूम, नखरे दिखाते हुई, मुस्कुराते हुए, मोहक, भावुक और सुंदर तथा कामुक कलाकृतियों को काफी सूक्ष्मता के साथ चित्रित किया गया है। यह राय भी व्यक्त की गयी है कि चंदेल वंश के लोग तांत्रिक आस्था का पालन करते थे, उनका विश्वास था कि सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति निर्वाण प्राप्ति की तरफ उठाया जाने वाला एक कदम है।[22]

सन्दर्भ संपादित करें

  1. timesofindia.indiatimes.com/And_Indias_7_wonders_are/articleshow/2256124.cms-
  2. कामथ में शेषाद्रि (2001), पृष्ठ51
  3. Keay, John (2000). India: A History. New York: Grove Press. पपृ॰ 324 (across). ISBN 0-8021-3797-0.
  4. "Mahamastabhishek". मूल से 21 अक्तूबर 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 अक्तूबर 2010.
  5. Harban Singh; Punjabi University (1998). Encyclopedia of Sikhism. Punjabi University. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 817380530X. |publisher= में बाहरी कड़ी (मदद)
  6. स्वर्ण मंदिर, पंजाबी विश्वविद्यालय, परम बर्कशिश सिंह, देविंदर कुमार वर्मा, ISBN 81-7380-569-5
  7. "युनेस्को advisory body evaluation" (PDF). मूल से 19 जून 2009 को पुरालेखित (PDF). अभिगमन तिथि 21 अक्तूबर 2010.
  8. "Group of monuments at Hampi (1986), Karnataka". मूल से 27 अगस्त 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 अक्तूबर 2010.
  9. कला समीक्षक, पर्सी ब्राउन कॉल विजयनगर आर्किटेक्चर अ ब्लोसोमिंग ऑफ़ ड्रेविडियन स्टाइल (कामथ 2001, पृष्ठ182)
  10. अर्थिकेज, साहित्यिक गतिविधि
  11. "Group of Monuments at Hampi". मूल से 13 मई 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 अक्तूबर 2010.
  12. निर्माण में उपयुक्त पत्थर और उनसे बनने वाले स्मारक इतने अंतरंग हैं कि कई बार प्रकृति के अंत और कला की शुरुआत में भेद कर पाना असंभव हो जाता है" (कला आलोचक पर्सी ब्राउन द्वारा हाम्पी, ए ट्रेवल गाइड के पृष्ठ 64 में उद्घृत)
  13. "Konark Sun Temple". मूल से 18 फ़रवरी 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 अक्तूबर 2010.
  14. "Sun Temple Konarak". मूल से 25 अक्तूबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 अक्तूबर 2010.
  15. "Where the language of stone defeats the language of man, Orissa Tourism Department". मूल से 1 नवंबर 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 अक्तूबर 2010.
  16. "Pedaling to Konark".[मृत कड़ियाँ]
  17. "Konark -- Ode to the Sun Temple". मूल से 4 जून 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 अक्तूबर 2010.
  18. अल्टेकर, अनंत सदाशिव (1965). एडुकेशन इन एन्शियंट इण्डिया, छठे, वारानसी: नंद किशोर एवं ब्रदर्स
  19. "रियली ओल्ड स्कूल," गर्टें, जेफ्फ्रे ई. न्यूयॉर्क टाइम्स, 9 दिसम्बर 2006.
  20. "Kajuraho group of Monuments". मूल से 16 नवंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 अक्तूबर 2010.
  21. "Beauty of Khajuraho Temples by K.L Kamat". मूल से 3 मार्च 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 अक्तूबर 2010.
  22. "Khajuraho Temples, Madhya Pradesh". मूल से 2 नवंबर 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 अक्तूबर 2010.

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