भूपेन्द्रनाथ दत्त

भारतीय क्रांतिकारी और एक प्रसिद्ध समाजशास्त्री

डॉ भूपेंद्रनाथ दत्त (4 सितम्बर 1880 – 25 दिसम्बर 1961)[1] भारत के स्वतंत्रता संग्राम के प्रसिद्ध क्रांतिकारी तथा समाजशास्त्री थे। अपने युवाकाल में वे युगान्तर आन्दोलन से नजदीकी से जुड़े थे। अपनी गिरफ्तारी (सन् १९०७) तक वे युगान्तर पत्रिका के सम्पादक थे। वे एक अच्छे लेखक भी थे।

भूपेन्द्रनाथ दत्त
जन्म 04 सितम्बर 1880
मौत 25 दिसम्बर 1961(1961-12-25) (उम्र 81)
राष्ट्रीयता Indian
संबंधी स्वामी विवेकानन्द (बड़े भाई)
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स्वामी विवेकानन्द उनके बड़े भाई थे। उन्होंने हिन्दू समाज में व्याप्त जाति पांति, छुआछूत ,भेदभाव, ऊँच-नीच और महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचारों का विरोध किया था। वह क्रांतिकारियों में एक समाजसुधारक, समाजशास्त्री, क्रांतिकारी लेखक और युगान्तरकारी पत्रिका के यशस्वी सम्पादक के रूप में जाने जाते थे ।

जीवन परिचय संपादित करें

जहाँ उस समय की राजनीतिक गतिविधियों में सम्मिलित होकर देश सेवा करना उनका लक्ष्य था, वहीं उच्च शिक्षा प्राप्त करना भी उनका लक्ष्य था। उन्होंने अमेरिका से एम.ए. और जर्मनी से पी.एच.डी. की डिग्री प्राप्त की।

भूपेन्द्रनाथ दत्त का जन्म 4 सितम्बर,1880 को कोलकाता में हुआ था। उनकी आरम्भिक शिक्षा ईश्वर चंद्र विद्यासागर द्वारा स्थापित 'मेट्रोपॉलिटन इंस्टीट्यूशन' नामक विद्यालय में हुई थी। शिक्षा के दौरान ही उन्होंने राजनैतिक गतिविधियों में भाग लेना आरम्भ कर दिया था। अपनी युवावस्था में वे केशव चन्द्र सेन और देवेन्द्रनाथ ठाकुर के तत्त्वावधान में चल रहे ब्राह्म समाज में सम्मिलित हो गए। यहाँ उनकी भेंट शिवनाथ शास्त्री से हुई जिन्होंने इन्हें बहुत प्रभावित किया। ब्राह्म समाज ने उनके जीवन को एक नया रुप दिया। ब्राह्मसमाज से ही उनको जाति-विहीन समाज तथा अन्धविश्वासों पर अविश्वास पैदा हुआ।

क्रान्तिकारी गतिविधियाँ संपादित करें

भारत में संपादित करें

इसी समय अंग्रेजों के अत्याचारों ने उन्हे और क्रान्तिकारी बनाना शुरु किया। १९०२ में प्रमथ नाथ मित्र द्वारा चलाई जा रही अनुशीलन समिति में सम्मिलित हो गये। 1905 ई० में बंगाल के विभाजन के विरुद्ध सारे बंगाल में बंग-भंग आन्दोलन चला जो भारत के कोने-कोने में भी फैला था। सन १९०६ में वे युगान्तर पत्रिका के सम्पादक बने। यह पत्रिका बंगाली भाषा में निकलने वाली क्रान्तिकारी पत्रिका थी जिसकी स्थापना बारीन्द्र कुमार घोष, अविनाश भट्टाचार्य और भूपेन्द्रनाथ दत्त ने मिलकर की थी। उसी समय वे अरविन्द घोष और बारीन्द्र कुमार घोष के निकट सम्पर्क में आये। उन्होंने अपने ‘युगान्तर पत्रिका’ के द्वारा तीव्र शब्दों में बंगाल विभाजन का विरोध किया था। ‘युगान्तर पत्रिका’ के एक अंक में उन्होंने युवकों को सलाह देते हुए लिखा था, “अंग्रेज इस तरह नहीं मानने वाले। जब तक ईंट का जवाब ईंट से और लाठी का जवाब लाठी से नहीं दिया जायेगा, तब तक अंग्रेज अत्याचार करते ही रहेंगे।” ‘युगान्तर’ में लिखे गये अपने लेखों के कारण डॉ० दत्त 1907 ई० में गिरफ्तार कर लिये गये। उन पर राजद्रोह का मुकद्दमा चलाया गया। 24 जुलाई को न्यायालय में बयान देते हुए उन्होंने कहा था, “मेरा नाम डॉ० भूपेन्द्रनाथ दत्त है। ‘युगान्तर’ के जिन लेखों के कारण मुझ पर मुकद्दमा चलाया गया है, वे मेरे ही लिखे हुए हैं। मैंने उन्हें जान-बूझ कर लिखा है। ये लेख लिखकर मैंने देश के प्रति अपने कर्तव्य का पालन किया है।” दत्त का बयान सुनने के पश्चात् मजिस्ट्रेट ने 24 जुलाई को ही उन्हें एक वर्ष के कठोर कारावास का दण्ड दिया।

अमेरिका में संपादित करें

एक वर्ष की सजा काट कर १९०८ में जब वे कारागार से बाहर निकले, तो अंग्रेजों का दमन-चक्र जोरों से चल रहा था। ‘वन्दे मातरम्’ और ‘सन्ध्या’ आदि पत्र दमन के शिकार हो चुके थे। विपिनचन्द्र पाल भी गिरफ्तार होकर जेल जा चुके थे। अरविन्द घोष पांडिचेरी चले गये थे। इस समय दत्त क्रान्तिकारी कार्यों में संलग्न हो गये। वे सशस्त्र क्रान्ति के द्वारा अंग्रेजी शासन को उलटना चाहते थे, किन्तु सबसे बड़ी कठिनाई यह थी कि उन्हें हथियार नहीं मिल पा रहे थे। बिना हथियार के सशस्त्र क्रान्ति का होना अत्यधिक कठिन था। इसके अलावा जेल से छूटने पर जब उनको ‘अलीपुर बम कांड’ में फंसाने की तैयारी हो रही थी, वे देश से बाहर अमेरिका चले गए। वहाँ कुछ दिनों तक वे वहाँ के "इंडिया हाउस" में रहे। अमेरिका के ब्राउन विश्वविद्यालय से उन्होंने एम ए की डिग्री प्राप्त की। उन दिनों अमेरिका में कई भारतीय क्रान्तिकारी रहते थे, जो भारत में विद्रोह करने के उद्देश्य से ही अमेरिका गये थे। उन क्रान्तिकारियों में लाला हरदयाल मुख्य थे। 1913 ई० में जब गदर पार्टी की स्थापना हुई, तो उस समय डॉ० दत्त अमेरिका में ही थे। वे कैलिफोर्निया की गदर पार्टी के सदस्य थे और उसके कार्यों में योग दिया करते थे। इसी समय उन्होंने समाजवाद और साम्यवाद का अध्ययन किया।

जर्मनी में संपादित करें

1914 ई० में प्रथम महायुद्ध आरम्भ हुआ। उस युद्ध में जर्मनी अंग्रेजों में का शत्रु था, अतः डॉ० दत्त जर्मनी चले गये। वे बर्लिन में रहकर जर्मनी के सहयोग से भारत की स्वतंत्रता के लिए प्रयत्न करने लगे। उन दिनों बर्लिन में कई भारतीय क्रान्तिकारी रहते थे। उन क्रान्तिकारियों में लाला हरदयाल, बरकतुल्ला और चम्पकरमण पिल्ले आदि मुख्य थे। उन क्रान्तिकारियों ने बर्लिन में इंडियन इंडिपेंडेंस समिति नामक एक संस्था बनाई थी। इस समिति को बर्लिन कमिटी भी कहते हैं। बर्लिन में सन 1916 में उन्हें इंडियन इंडिपेंडेंस समिति का सचिव बनाया गया। इस पद पर 1918 तक बने रहे। डॉ० दत्त ने इस समिति में यह प्रस्ताव रखा था कि भारत की स्वतंत्रता के लिए जर्मनी में एक सेना का संगठन करना चाहिए और उस सेना को जर्मनों की सहायता से भारत पर आक्रमण करना चाहिए।

1914 ई० में ही एक दूसरी संस्था का भी गठन हुआ, जिसका नाम जर्मन यूनियन फ्रेडरिक इंडिया था। डॉ० दत्त इस संस्था के भी सदस्य थे। कुछ दिनों पश्चात् वे इस संस्था के महत्त्वपूर्ण कार्यकर्ता बन गये थे। सन् 1920 में वे जर्मन ऐंथ्रोपोलॉजिकल सोसाइटी से जुड़े। सन 1921 में रुस की राजधानी मास्को में हुए कम्युनिस्ट इंटरनेशनल में शामिल होने गए। उनके साथ मानवेन्द्र नाथ राय और बिरेन्द्रनाथ दास गुप्ता ने भी कमेंट्रन में भाग लिया। कॉमिनटाउन को कम्युनिस्ट इंटरनेशनल या तृतीय इंटरनेशनल भी कहते हैं जो एक अन्तरराष्ट्रीय साम्यवादी संगठन था जो पूरे विश्व को साम्यवादी बनाने की वकालत करता था। भूपेन्द्रनाथ दत्त ने 1921 में हुए इस सम्मेलन के दौरान उस समय के भारत के राजनैतिक स्थिति पर एक रिसर्च पेपर व्लादिमीर लेनिन के सामने पेश किया। 1924 में में वे जर्मन ऐशियाटिक सोसाइटी से जुड़े। सन 1923 में जर्मनी की हैम्बर्ग विश्वविद्यालय से उन्होंने नृविज्ञान में पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। 1924 में में वे जर्मन ऐशियाटिक सोसाइटी से जुड़े। डॉ० दत्त को विश्वास था कि जर्मनी का विदेश विभाग उनकी सहायता करेगा और वे भारत की स्वतंत्रता के लिए कुछ कर सकेंगे, किन्तु उनकी आशा पूर्ण नहीं हुई।

पुनः भारत में संपादित करें

सन 1925 में वे वापस भारत आ गये और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होने का निर्णय किया। सन १९२७-२८ में वे बंगाल कांग्रेस के सदस्य बने। १९२९ में वे अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सदस्य बने। सन १९३० के कांग्रेस के कराची के वार्षिक सम्मेलन में उन्होंने भारतीय किसानों के लिये मूलभूत अधिकारों से सम्बन्धित एक प्रस्ताव रखा जिसे स्वीकार कर लिया गया।

उसके बाद उन्होंने अपना ध्यान किसानों और श्रमिकों को संगठित करने पर लगाया। १९३६ से वे भारत में किसान आंदोलन में शामिल हुए और १९३७ से १९४० तक लगातार बंगाल कृषक सभा के अध्यक्ष रहे। वे दो बार अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस के अध्यक्ष बने।

स्वतन्त्रता की ओर भारत संपादित करें

डॉ दत्त 'फ्रेन्ड्स ऑफ सोवियत यूनियन' के प्रथम अध्यक्ष बने। इसकी स्थापना २२ जून १९४१ को सोवियत संघ पर आक्रमण के बाद हुई थी। १९४३ के बंगाल के भीषण अकाल में लोगों की सहायता के लिये कार्य किया। उन्होंने कार्यकर्ताओं से भूख से मर रहे लोगों के लिये सहायता इकट्ठा करने का प्रयत्न किया। इसके लिये उन्होंने सामूहिक भोजनालय खोले और लोगों में अति आवश्यक सामान बंटवाये। डॉ दत्त ने कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा भारत छोड़ो आन्दोलन के विरोध का भी भरपूर विरोध किया था।[2] भारत के स्वतन्त्र होने पर नेहरू के नेतृत्व में बने सरकार को उन्होंने 'राष्ट्रीय सरकार' माना। उनकी इच्छा थी कि सभी देशवासी एक साथ मिलकर कार्य करें और गरीब से गरीब लोगों का जीवन स्तर सुधारा जाय। पर इसके साथ ही वे गांधीवाद और नेहरू के समाजवाद के आलोचक रहे।[3]

26 दिसम्बर, 1961 को कोलकाता में उनका देहान्त हो गया।

साहित्यिक प्रतिभा संपादित करें

वे समाजविज्ञान, नृतत्व, इतिहास, साहित्य, वैष्णवशास्त्र, हिन्दु आर्यशास्त्र, मार्क्सवादी दर्शन आदि विषयों के विद्वान थे। बांग्ला, अंग्रेजी, जर्मन, हिन्दी, फारसी आदि भाषाओं में उनकी अनेक रचनाएँ प्रकाशित हुईं हैं।

उनके द्वारा रचित उल्लेखयोग्य ग्रन्थ निम्नलिखित हैं-

  • अप्रकाशित राजनीतिक इतिहास
  • युगसमस्या
  • तरुणेर अभियान (तरुणों का अभियान)
  • जातिसंगठन (राष्ट्रीय संगठन)
  • यौबनेर साधना (यौवन की साधना)
  • साहित्ये प्रगति (साहित्य में प्रगति)
  • भारतीय समाजपद्धति (३ खण्ड)
  • आमार आमेरिकार अभिज्ञता (३ खण्ड)
  • बैष्णब साहित्ये समाजतन्त्र (वैष्णव साहित्य में समाजतन्त्र)
  • बांलार इतिहास (बंगला का इतिहास)
  • डायालेक्ट्स ऑफ हिन्दु रिचुयालिज्म
  • डायालेक्टस ऑफ लैंड इकोनॉमिक्स ऑफ इन्डिया
  • स्टडीज इन इंडियन पॉलिटी
  • स्वामी विवेकानन्द, पैट्रिऑट-प्रोफेट : अ स्टडी
  • बिबेकानन्द द सोसालिस्ट।

सन्दर्भ संपादित करें

  1. Chaturvedi, Badrinath (2 June 2006). Swami Vivekananda: The Living Vedanta. Penguin Books Limited. पपृ॰ 444–. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-8475-507-7. अभिगमन तिथि 4 June 2013.
  2. Bhupendranath Datta : Patriot, Revolutionary, and Scholar
  3. Bhupendranath Datta : From National Revolutionary to Marxist