मन्वन्तर [1], मनु [2], हिन्दू धर्म अनुसार, मानवता के प्रजनक, की आयु होती है। यह समय मापन की खगोलीय अवधि है। मन्वन्तर एक संस्कॄत शब्द है, जिसका संधि-विच्छेद करने पर = मनु+अन्तर मिलता है। इसका अर्थ है मनु की आयु[3].

हिन्दू मापन प्रणाली में मन्वन्तर, लघुगणकीय पैमाने पर

प्रत्येक मन्वन्तर एक विशेष मनु द्वारा रचित एवं शासित होता है, जिन्हें ब्रह्मा द्वारा सॄजित किया जाता है। मनु विश्व की और सभी प्राणियों की उत्पत्ति करते हैं, जो कि उनकी आयु की अवधि तक बनती और चलती रहतीं हैं, (जातियां चलतीं हैं, ना कि उस जाति के प्राणियों की आयु मनु के बराबर होगी). उन मनु की मॄत्यु के उपरांत ब्रह्मा फ़िर एक नये मनु की सृष्टि करते हैं, जो कि फ़िर से सभी सृष्टि करते हैं। इसके साथ साथ विष्णु भी आवश्यकता अनुसार, समय समय पर अवतार लेकर इसकी संरचना और पालन करते हैं। इनके साथ ही एक नये इंद्र और सप्तर्षि भी नियुक्त होते हैं।

चौदह मनु और उनके मन्वन्तर को मिलाकर एक कल्प बनता है। यह ब्रह्मा का एक दिवस होता है। यह हिन्दू समय चक्र और वैदिक समयरेखा के नौसार होता है। प्रत्येक कल्प के अन्त में प्रलय आती है[4], जिसमें ब्रह्माण्ड का संहार होता है और वह विराम की स्थिति में आ जाता है, जिस काल को ब्रह्मा की रात्रि कहते हैं।

इसके उपरांत सृष्टिकर्ता ब्रह्मा फ़िर से सृष्टिरचना आरम्भ करते हैं, जिसके बाद फ़िर संहारकर्ता भगवान शिव इसका संहार करते हैं। और यह सब एक अंतहीन प्रक्रिया या चक्र में होता रहता है। [5].

सृष्टि कि कुल आयु : 4320000000वर्ष इसे कुल 14 मन्वन्तरों मे बाँटा गया है.

वर्तमान मे 7वें मन्वन्तर अर्थात् वैवस्वत मनु चल रहा है. इस से पूर्व 6 मन्वन्तर जैसे स्वायम्भव, स्वारोचिष, औत्तमि, तामस, रैवत, चाक्षुष बीत चुके है और आगे सावर्णि आदि 7 मन्वन्तर भोगेंगे.

1 मन्वन्तर = 71 चतुर्युगी 1 चतुर्युगी = चार युग (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग)

चारों युगों की आयु :-- सतयुग = 1728000 वर्ष त्रेतायुग = 1296000 वर्ष द्वापरयुग = 864000 वर्ष और कलियुग = 432000 वर्ष इस प्रकार 1 चतुर्युगी की कुल आयु = 1728000+1296000+864000+432000 = 4320000 वर्ष अत :

1 मन्वन्तर = 71 × 4320000(एक चतुर्युगी) = 306720000 वर्ष चूंकि एेसे - एेसे 6 मन्वन्तर बीत चुके है . इसलिए 6 मन्वन्तर की कुल आयु = 6 × 306720000 = 1840320000 वर्ष वर्तमान मे 7 वें मन्वन्तर के भोग मे यह 28वीं चतुर्युगी है. इस 28वीं चतुर्युगी मे 3 युग अर्थात् सतयुग , त्रेतायुग, द्वापर युग बीत चुके है और कलियुग का 5115 वां वर्ष चल रहा है . 27 चतुर्युगी की कुल आयु = 27 × 4320000(एक चतुर्युगी) = 116640000 वर्ष

और 28वें चतुर्युगी के सतयुग , द्वापर , त्रेतायुग और कलियुग की 5115 वर्ष की कुल आयु = 1728000+1296000+864000+5115 = 3893115 वर्ष इस प्रकार वर्तमान मे 28 वें चतुर्युगी के कलियुग की 5115 वें वर्ष तक की कुल आयु = 27वे चतुर्युगी की कुल आयु + 3893115 = 116640000+3893115 = 120533115 वर्ष इस प्रकार कुल वर्ष जो बीत चुके है = 6 मन्वन्तर की कुल आयु + 7 वें मन्वन्तर के 28वीं चतुर्युगी के कलियुग की 5115 वें वर्ष तक की कुल आयु = 1840320000+120533115 = 1960853115 वर्ष . अब इसमें प्रत्येक चतुर्युग के संधि काल के समय जो षष्ठांश के बराबर होता है तथा कल्पों के प्रारम्भ और अन्त की सन्ध्या के काल समय जो एक संध्या काल एक त्रेता युग के बराबर होता है, को जोड़ लें। अत: वर्तमान मे 1972949120 वां वर्ष चल रहा है और बचे हुए 2347050880 वर्ष भोगने है जो इस प्रकार है ... सृष्टि की बची हुई आयु = सृष्टि की कुल आयु - 1972949119 = 2347050881 वर्ष | यह गणना लिंग और स्कंध इत्यादि पुराणों से, पुरी पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य श्री निश्चलानन्द सरस्वती द्वारा उत्तरोत्तरित है।

श्वेतवाराह कल्प के मनु संपादित करें

मन्वन्तर मनु सप्तर्षि विशिष्ट व्यक्तित्व
प्रथम स्वायम्भु मनु मरीचि, अत्रि, अंगिरस, पुलह, कृतु, पुलस्त्य और वशिष्ठ[2][6]. प्रियव्रत, ऋषभदेव, भरत, जड़भरत, प्रह्लाद, भगवन कपिल[7].
द्वितीय स्वरोचिष मनु उर्जा, स्तम्भ, प्राण, दत्तोली, ऋषभ, निश्चर एवं अर्वरिवत
तृतीय औत्तमी मनु वशिष्ठ के पुत्र: कौकुनिधि, कुरुनधि, दलय, सांख, प्रवाहित, मित एवं सम्मित
चतुर्थ तामस मनु ज्योतिर्धाम, पृथु, काव्य, चैत्र, अग्नि, वानक एवं पिवर
पंचम रैवत मनु हिरण्योर्मा, वेदश्री, ऊर्द्धबाहु, वेदबाहु, सुधामन, पर्जन्य एवं महानुनि
षष्टम चाक्षुष मनु सुमेधस, हविश्मत, उत्तम, मधु, अभिनमन एवं सहिष्णु
वर्तमान सप्तम वैवस्वत मनु कश्यप, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि, भरद्वाज इक्ष्वाकु, मान्धाता, सत्यव्रत (त्रिशंकु ), हरिशचन्द्र, रोहित, सगर, अंशुमान, दिलीप, भगीरथ, खट्वांग, अज, दशरथ, भगवान राम, लव और कुश, भगवान कृष्ण
अष्टम सावर्णि मनु आने वाला पाठ्य....विष्णु पुराण: भाग:तृतीय, अध्याय:द्वितीय
नवम दक्ष सावर्णि मनु भविष्य के सप्तर्षि
दशम ब्रह्म सावर्णि मनु भविष्य के सप्तर्षि
एकादश धर्म सावर्णि मनु भविष्य के सप्तर्षि
द्वादश रुद्र सावर्णि मनु भविष्य के सप्तर्षि
त्रयोदश रौच्य या देव सावर्णि मनु भविष्य के सप्तर्षि
चतुर्दश भौत या इन्द्र सावर्णि मनु भविष्य के सप्तर्षि

References संपादित करें

  1. Manuantara Archived 2008-07-06 at the वेबैक मशीन The Secret Doctrine by H. P. Blavatsky, Vol. 1, p. 368, THE DAYS AND NIGHTS OF BRAHMA, THIS is the name given to the Periods called MANVANTARA (Manuantara, or between the Manus) and PRALAYA (Dissolution); one referring to the active periods of the Universe, the other to its times of relative and complete rest -- according to whether they occur at the end of a "Day," or an "Age" (a life) of Brahma. These periods, which follow each other in regular succession, are also called Kalpas, small and great, the minor and the Maha Kalpa; though, properly speaking, the Maha Kalpa is never a "day," but a whole life or age of Brahma, for it is said in the Brahma Vaivarta: "Chronologers compute a Kalpa by the Life of Brahma; minor Kalpas, as Samvarta and the rest, are numerous." In sober truth they are infinite; as they have never had a commencement, i.e., there never was a first Kalpa, nor will there ever be a last one, in Eternity.
  2. Account of the several Manus and Manwantaras Archived 2008-07-06 at the वेबैक मशीन Vishnu Purana, translated by Horace Hayman Wilson, 1840, Book III: Chapter I. p. 259, The first Manu was Swáyambhuva, then came Swárochisha, then Auttami, then Támasa, then Raivata, then Chákshusha: these six Manus have passed away. The Manu who presides over the seventh Manwantara, which is the present period, is Vaivaswata, the son of the sun...
  3. "श्रीमद-भग्वतम 3.13.14-16". मूल से 22 अप्रैल 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 25 जून 2008.
  4. Pralaya Archived 2008-07-06 at the वेबैक मशीन The Secret Doctrine by H. P. Blavatsky, Vol. 2, p. 307 THE SEVEN AND FOURTEEN MANUS.
  5. Manvantara Archived 2008-05-14 at the वेबैक मशीन The Laws of Manu, (Manu Smriti), Sacred Books of the East Vol. 25, translated by Georg Bühler, 1886, Chapter I, 79. The before-mentioned age of the gods, (or) twelve thousand (of their years), being multiplied by seventy-one, (constitutes what) is here named the period of a Manu (Manvantara). The Manvantaras, the creations and destructions (of the world, are) numberless; sporting, as it were, Brahman repeats this again and again.
  6. Inhabitants of the Worlds Archived 2008-07-26 at the वेबैक मशीन Mahanirvana Tantra, translated by Arthur Avalon, (Sir John Woodroffe), 1913, Introduction and Preface. The Rishi are seers who know, and by their knowledge are the makers of shastra and "see" all mantras. The word comes from the root rish Rishati-prapnoti sarvvang mantrang jnanena pashyati sangsaraparangva, etc. The seven great Rishi or saptarshi of the first manvantara are Marichi, Atri, Angiras, Pulaha, Kratu, Pulastya, and Vashishtha. In other manvantara there are other sapta-rshi. In the present manvantara the seven are Kashyapa, Atri, Vashishtha, Vishvamitra, Gautama, Jamadagni, Bharadvaja. To the Rishi the Vedas were revealed. Vyasa taught the Rigveda so revealed to Paila, the Yajurveda to Vaishampayana, the Samaveda to Jaimini, Atharvaveda to Samantu, and Itihasa and Purana to Suta. The three chief classes of Rishi are the Brah-marshi, born of the mind of Brahma, the Devarshi of lower rank, and Rajarshi or Kings who became Rishis through their knowledge and austerities, such as Janaka, Ritaparna, etc. Thc Shrutarshi are makers of Shastras, as Sushruta. The Kandarshi are of the Karmakanda, such as Jaimini.
  7. "संग्रहीत प्रति". मूल से 31 मई 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 17 सितंबर 2009.

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें

"भारतीय मूलत: देव हैं=[[5 मार्च]] [[2008]]". ताप्तीलोक. मूल (पीएचपी) से 16 अक्तूबर 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 25 जून 2008. URL–wikilink conflict (मदद)