मानी

मैनिकीवाद के संस्थापक और भविष्यवादी।

मानी (सीरियाई: ܡܐܢܝ ܚܝܐ, मानी हय्या, अर्थ: जीवित मानी; अंग्रेज़ी: Mani; यूनानी: Μάνης, मानेश; जन्म: २१६ ईसवी अनुमानित; मृत्यु: २७६ ईसवी) एक ईरानी मूल का धर्म-संस्थापक था जिसने मानी धर्म की स्थापना करी। यह धर्म किसी ज़माने में मध्य एशिया, ईरान और अन्य क्षेत्रों में बहुत फैला हुआ था लेकिन समय के साथ-साथ पूरी तरह ख़त्म हो गया। मानी का जन्म पार्थिया के अधीन असुरिस्तान (असीरिया) क्षेत्र में हुआ था और मृत्यु सासानी साम्राज्य के गुंद-ए-शापूर (Gundeshapur) शहर में हुई। उसने सीरियाई भाषा में छह प्रमुख धार्मिक रचनाएँ लिखी और एक शापूरगान नामक कृति ईरान के शाह, शापूर प्रथम, को समर्पित करते हुए मध्य फ़ारसी में लिखी।[1]

मानी

उस समय सासानी साम्राज्य बहुत विस्तृत हुआ था और उसमें भारत, मध्य एशिया और मध्य पूर्व के बहुत से हिस्सा शामिल हो गए थे। इस से एक ही साम्राज्य में बौद्ध धर्म, पारसी धर्म और ईसाई धर्म के अनुयायी आ गए थे। मानी ने कहा कि वह ईश्वर द्वारा भेजा गया मसीहा है और उसने अपने नए धर्म में इन तीनों धर्मों के तत्व शामिल किये। उसने भारत की यात्रा भी करी, हालांकि आधुनिक राजनैतिक सरहदों के अनुसार वह वास्तव में अफ़्ग़ानिस्तान गया था। उसने अपना सबसे पहला धार्मिक गुट भारत में ही स्थापित किया था और इसके बाद २४१-२४२ ईसवी में वह ईरान लौट आया।[2] वहाँ उसने नए सम्राट शापूर प्रथम की प्रशंसा करी और अपना धर्म फैलाने में जुट गया जिस में उसे काफी सफलता मिली। लेकिन बाद में जब बहराम प्रथम सम्राट बना तो उसपर पारसी धर्म के एक बड़े गुरु, कर्तीर, का गहरा प्रभाव था और उसने मानी को कारावास में बंदी कर लिया, जहाँ उसकी मृत्यु हो गई। लेकिन मानी धर्म फिर भी चलता रहा। उसकी लिखित कोई भी किताब पूर्ण रूप से नहीं बची है लेकिन उनके बहुत से अंश अभी भी उपलब्ध हैं।

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. Encyclopedia of World Biography, Gale Research, 1998, ISBN 978-0-7876-2550-4, ... Upon Ardashir's death in 241, Mani returned to western Persia, where he found favor with Ardashir's successor, Shahpur I, to whom he dedicated one of his books, Shapurgan. Mani engaged in intense missionary activities. Eventually, however, the opposition of the Zoroastrian priesthood enlisted the support of Bahram I, who ordered Mani arrested and fettered. He died in prison a martyr ...
  2. Evangelical dictionary of theology, Walter A. Elwell, Baker Academic, 2001, ISBN 978-0-8010-2075-9, ... Mani claimed his first revelation at the age of twelve and his call to apostleship when he was twenty-four. After his efforts to convert his community failed and resulted in his expulsion, he traveled to India, where he founded his first religious group. He returned in 242 to preach his faith in Babylonian provinces, and he became a vassal of the new monarch, Shapur I ...