मिताक्षरा याज्ञवल्क्य स्मृति पर विज्ञानेश्वर की टीका है जिसकी रचना 11वीं शताब्दी में हुई। यह ग्रन्थ 'जन्मना उत्तराधिकार' (inheritance by birth) के सिद्धान्त के लिए प्रसिद्ध है। विज्ञानेश्वर कल्याणी के चालुक्य शासक विक्रमादित्य V I के दरबारी कवि थे। विज्ञानेश्वर के अतिरिक्त अपरार्क ने भी याज्ञवल्क्य स्मृति पर टीका लिखा है।

हिंदू उत्तराधिकार संबंधी भारतीय कानून को लागू करने के लिए मुख्य रूप से दो मान्यताओं को माना जाता है- पहला है दायभाग मत, जो बंगाल और असम में लागू है। दूसरा है मिताक्षरा, जो शेष भारत में मान्य है। मिताक्षरा के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को जन्म से ही अपने पिता की संयुक्त परिवार सम्पत्ति में हिस्सेदारी हासिल हो जाती है। इसमें 2005 में कानून में हुए संशोधन के बाद लड़कियों को भी शामिल किया गया। [1]

मिताक्षरा विधि की शाखा पांच उप-शाखाओं में विभाजित है। दत्तकग्रहण तथा दाय के संबंध में परस्पर मतभेद होने के कारण इन उपशाखाओं की उत्पत्ति हुई। ये सभी उप-शाखाएं मिताक्षरा को ही सर्वोपरि प्रमाण मानते हैं, परन्तु कुछ परिस्थितियों में मतभेद होने पर किसी मूल भाष्य या ग्रंथ विशेष को प्राथमिकता देते हैं।

ये पांच उप-शाखाएं है-

  • (१) बनारस शाखा
  • (२) मिथिला शाखा
  • (३) मद्रास शाखा
  • (४) बम्बई शाखा
  • (५) पंजाब शाखा

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "पुश्तैनी प्रॉपर्टी गिफ्ट में देना, यानी परेशानी". मूल से 31 अक्तूबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 अक्तूबर 2014.

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