मुशायरा, (उर्दू: مشاعره) उर्दु भाषा की एक काव्य गोष्ठी है। मुशायरा शब्द हिन्दी में उर्दू से आया है और यह उस महफ़िल (محفل) की व्याख्या करता है जिसमें विभिन्न शायर शिरकत कर अपना अपना काव्य पाठ करते हैं। मुशायरा उत्तर भारत और पाकिस्तान की संस्कृति का अभिन्न अंग है और इसे प्रतिभागियों द्वारा मुक्त आत्म अभिव्यक्ति के एक माध्यम (मंच) के रूप में सराहा जाता है।

== १ ==क़लम मैं तो उठाके जाने कब का रख चुका होता

मगर तुम हो कि क़िस्सा मुख़्तसर करने नहीं देते

फूल तो फूल हैं आँखों से घिरे रहते हैं

कांटे बेकार हिफ़ाज़त में लगे रहते हैं

 (साजिद खान)

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