मुहर्रम का शोक

जब इमाम हुसैन इब्न अली को परिवार सहित दूसरे उमाय्याद खलीफ यज़ीद इब्न मुआविया दुवारा कर्बला की लड

मुहर्रम का शोक (या मुहर्रम या मुहर्रम पर्व का स्मरण) शिया और सुन्नी मुसलमान दोनों से जुड़े अनुष्ठानों का एक धार्मिक कार्य है।[1][2] इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने मुहर्रम में स्मारक आता है। यह आयोजन करबाला की लड़ाई की सालगिरह है, जब इमाम हुसैन इब्न अली को परिवार सहित दूसरे उमाय्याद खलीफ दुवारा कर्बला की लड़ाई में शहीद कर दिया था। इस घटना के दौरान इस घटना की याद वार्षिक शोक का, आशुरा के दिन के रूप में, शिया सांप्रदायिक पहचान को परिभाषित करता है।.[3]

मुहर्रम का शोक
Mourning of Muharram

तीर्थयात्री अशूरा इराक, 2016 में शोक अशबा के लिए इकट्ठे होते हुए। इस वर्ष करबाला में करीब 6.5 मिलियन लोग इकट्ठे हुए थे।
प्रकार Islamic
उद्देश्य हज़रत हुसैन इब्न अली की मौत का स्मारक

शिया और सुन्नी शोक में अन्तर संपादित करें

शोक प्रकट करने के लिए शिया मुसलमान अकेले में और सार्वजनिक रूप से अपने सीने को पीटते हैं, रोते हैं और इमाम हुसैन की याद में गीतों (मरसियों) को गाते हैं। सुन्नी मुसलमान केवल इस अवसर का स्मरण करते हैं। कुछ स्थानों पर अलम बिठाने का कार्य सुन्नी भी करते हैं।

शिया लोग मुहर्रम में विवाह नहीं करते तथा तथा इस महीने में पति-पत्नि के सम्बंध नहीं बनाते। विवाह न करने की प्रथा सुन्नियों में भी रही है, परन्तु वहाबी और उदारपंथी विचारधारा के तहत आजकल कई सुन्नी मुसलमान मुहर्रम में विवाह कर रहे हैं।

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; Clamard नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  2. Jean, Calmard (2011). "AZĀDĀRĪ". iranicaonline. मूल से 15 सितंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 सितंबर 2018.
  3. Martín, Richard C. (2004). Encyclopedia of Islam & the Muslim World. Macmillan Reference USA. पृ॰ 488.