महुआ माझी का उपन्यास मैं बोरिशाइल्ला बांग्लादेश की मुक्ति-गाथा पर केंद्रित है। यह उपन्यास बहुत ही कम समय में खासा चर्चित हुआ है और इस कृति को सम्मानित भी किया गया है। इस उपन्यास के असामान्य शीर्षक के बारे में स्पष्टीकरण देती हुई वे, उपन्यास के प्राक्कथन में कहती हैं - “...जिस तरह बिहार के लोगों को बिहारी तथा भारत के लोगों को भारतीय कहा जाता है, उसी प्रकार बोरिशाल के लोगों को यहाँ की आंचलिक भाषा में बोरिशाइल्ला कहा जाता है। उपन्यास का मुख्य पात्र केष्टो, बोरिशाल का है। इसीलिए वह कह सकता है - मैं बोरिशाइल्ला।”[1] इस उपन्यास में १९४८ से १९७१ तक के बांग्ला देश के ऐतिहासिक तथ्यों, पाकिस्तानी हुकूमत द्वारा बांग्लादेशी जनता पर किए अत्याचारों की घटनाओं तथा मुक्तिवाहिनी के संघर्ष गाथाओं को कथा सूत्र में पिरोया गया है। इस उपन्यास की रचना प्रक्रिया के विषय में वे कहती हैं कि बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम को अपने पहले ही उपन्यास का विषय बनाने का कारण था कि मैं नई पीढ़ी के लिए उसे एक दृष्टांत के रूप में पेश करना चाहती थी कि आज बेशक पूरी दुनिया में सारी लड़ाइयाँ धर्म के नाम पर ही लड़ी जा रही हैं, लेकिन सच तो ये हैं कि सारा खेल सत्ता का है। ये लड़ाइयाँ अब बंद होनी चाहिये।[2]

मैं बोरिशाइल्ला  

मुखपृष्ठ
लेखक महुआ माझी
देश भारत
भाषा हिन्दी
विषय बांग्लादेश की अभ्युदय गाथा
प्रकाशक राजकमल प्रकाशन
प्रकाशन तिथि २००६
पृष्ठ ४००
आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 8126712058

भाषा और शैली की दृष्टि से इस उपन्यास के अति साधारण व नीरस होने बात कही जाती है। आलोचकों का मानना है कि उपन्यास की भाषा अत्यंत साधारण है और समूचे उपन्यास में कहीं भी कोई भाषाई शिल्प दिखाई नहीं देता। कथन में प्रवाह नहीं है और उपन्यास घटना-प्रधान होते हुए भी आमतौर पर बोझिल-सा बना रहता है। जिसके कारण इसके कई खण्ड घोर अपठनीय ही बने रहते हैं। लेखिका ने शायद पाकिस्तानी सैनिकों तथा उर्दूभाषी नागरिकों द्वारा बांग्लाभाषियों पर किए गए अत्याचारों तथा मुक्तिवाहिनी के कार्यों के बहुत प्रामाणिक विवरण देने के लोभ में उपन्यास को बिखरा सा दिया है। घटना प्रधान कथानक में रहस्य का सर्वथा अभाव भी आगे पढ़ने की जिज्ञासा बनाए रखने में सहायक नहीं होता।[3]

सन्दर्भ

  1. माजी, महुआ. मैं बोरिशाइल्ला. नई दिल्ली: राजकमल प्रकाशन. 8126712058. |access-date= दिए जाने पर |url= भी दिया जाना चाहिए (मदद)
  2. "हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स में एक बार फिर हिन्दी की गूंज" (एचटीएम). वेब दुनिया. अभिगमन तिथि १ जनवरी २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  3. "मैं बोरिशाइल्ला : भीड़ से अलग". निरंतर. मूल से 7 जनवरी 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १ जनवरी २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)