मैंग्रोव (Mangrove) ऐसे क्षुपवृक्ष होते हैं जो खारे पानी या अर्ध-खारे पानी में पाए जाते हैं। अक्सर यह ऐसे तटीय क्षेत्रों में होते हैं जहाँ कोई नदी किसी सागर में बह रही होती है, जिस से जल में मीठे पानी और खारे पानी का मिश्रण होता है। मैंग्रोव वनों का पारिस्थिकि में बहुत महत्व है, क्योंकि यह तटों को स्थिरता प्रदान करते हैं और बहुत प्राणी, मछली और पक्षी जातियों को निवास व सुरक्षा प्रदान करते हैं। मैंग्रोव वन व झुरमुट विश्व के उष्णकटिबन्धीय और उपोष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों में मिलते हैं। कृत्रिम उपग्रहों द्वारा किए गए चित्रण के आधार पर इनका वैश्विक विस्तार 1,37,800 वर्ग किमी अनुमानित करा गया है, जिसका अधिकांश भाग 25 अक्षांश उत्तर और 25 अक्षांश दक्षिण के बीच है।[1]

मैंग्रोव पादप - जल के ऊपर व नीचे का दृश्य
कृष्णा वन्य अभयारण्य में समुद्र से तट पर उग रहे मैन्ग्रोव वन का दृश्य

शब्दोत्पत्ति संपादित करें

मैंग्रोव शब्द दक्षिण अमेरिका की एक आदिवासी भाषा, गुआरानी भाषा, से उत्पन्न हुआ और फिर विश्वभर की भाषाओं में फैल गया। यह शब्द तीन अर्थों में प्रयोग किया जाता है:-

  1. पूर्ण पेड़ या पौधे के आवास के लिए 'मैन्ग्रोव स्वैम्प्स' (दलदल) या 'मैन्ग्रोव वन' प्रयोग किया जाता है।
  2. मंगल के सभी पेड़ों और पौधों के लिए,
  3. जो रिज़ोफोरेसी परिवार से होते हैं, या रिज़ोफोरा वंश से किसी भी पादप के लिए,

मंगल डिपोज़ीश्नल तटीय क्षेत्रों में मिलते हैं, जहाँ बारीक कण, जिनमें उच्च कार्बनिक मात्रा हो, उच्च ऊर्जा की लहरों के प्रभाव से एकत्रित हो जाते हैं।

चित्र दीर्घा संपादित करें

इन्हें भी देखें संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर