पुराणों में रंभा का चित्रण एक प्रसिद्ध अप्सरा के रूप में हुआ है। उसकी उत्पत्ति देवताओं और असुरों द्वारा किए गए विख्यात सागर मंथन से मानी जाती है। वह पुराण और साहित्य में सौंदर्य की एक प्रतीक बन चुकी है। इंद्र ने इसे अपनी राजसभा के लिए प्राप्त किया था। उसने एक बार रंभा को ऋषि विश्वामित्र की तपस्या भंग करने के लिए भेजा था। महर्षि ने उसे एक सहस्त्र वर्ष तक पाषाण के रूप में रहने का श्राप दिया। वह स्वर्ग की अप्सरा थी. जो तमाम नृत्यों और कई कलाओं को जानती थी. रम्भा नलकुबेर की पत्नी थी. रावण और कुबेर दोनों भाई थे. कुबेर के पुत्र का नाम था नलकुबेर था। रम्भा का विवाह नलकुबेर से हुआ था। और इस रिश्ते से वह रावण की बहू लगती थी। एक दिन जब रावण की नजर रम्भा की सुंदरता पर मोहित हो गया और उसने रम्भा से आपत्तिजनक बातें पूछी। रावण ने रम्भा से पूछा कि वह इतना सज-धज कर किसको तृप्त करने जा रही है? रावण ने इसके लिए संस्कृत में ‘भोक्ष्यते’ शब्द का प्रयोग किया।

रंभा का चित्र

रम्भा ने रावण को रिश्ते-नातों की याद दिलाई। रावण ने पहले तो मानने से इनकार कर दिया कि वह उसकी पुत्रवधू है, लेकिन जब रम्भा ने नलकुबेर के बारे में बताया, तो रावण ने फिर आनाकानी शुरू कर दी। उस समय रम्भा काफ़ी डरी हुई थी और देवताओं को भी जीत चुके रावण के बारे में उसे पता था कि वह कुछ भी कर सकता है। डर से काँप रही रम्भा को शायद यह नहीं पता था कि रावण अपनी दुष्टता के कारण रिश्तों-नातों की भी परवाह नहीं करेगा। पुराणों के अनुसार और वाल्मीकि द्वारा लिखि गई रामायण’ के अनुसार, रावण ने रम्भा के साथ दुराचार किया था रंभा ने रावण को श्राप दिया कि अगर वह किसी भी महिला को उसके इच्छा के विरूध छूता है, तो उसके दसों सर उसी वक्त फट जाएगें।

दवापर युग मे रंभा का विवाह ऋषि शेशिरायनण के साथ हुआ था। उन दोनो को एक पुत्र भी था जो कालयवन के नाम से जाना गया, पुत्र के जन्म के बाद रंभा स्वर्ग लोक वापस चली गयी। कालयवन बहुत ही शक्तिशाली था।

सन्दर्भ संपादित करें

हिंदी साहित्य कोश, भाग़- 2, पृष्ठ 468