राजस्थान का एकीकरण (1948–1956)

राजस्थान भारत का एक महत्वपूर्ण प्रान्त है। यह 30 मार्च 1949 को भारत का एक ऐसा प्रांत बना, जिसमें तत्कालीन राजपूताना की ताकतवर रियासतें विलीन हुईं। जाटों ने भी अपनी रियासत के विलय राजस्थान में किया था। राजस्थान शब्द का अर्थ है: 'राजाओं का स्थान' क्योंकि यहां अहीर,गुर्जर, राजपूत, मौर्य, जाट आदि ने पहले राज किया था। भारत के संवैधानिक-इतिहास में राजस्थान का निर्माण एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी।

वर्तमान राजस्थान राज्य में 10 संभाग और 50 जिले हैं

एकीकरण की पृष्ठभूमि संपादित करें

ब्रिटिश शासकों द्वारा भारत को आजाद करने की घोषणा करने के बाद जब सत्ता-हस्तांतरण की कार्यवाही शुरू की, तभी लग गया था कि आजाद भारत का राजस्थान प्रांत बनना और राजपूताना के तत्कालीन हिस्से का भारत में विलय एक दूभर कार्य साबित हो सकता है। आजादी की घोषणा के साथ ही राजपूताना के देशी रियासतों के मुखियाओं में स्वतंत्र राज्य में भी अपनी सत्ता बरकरार रखने की होड़ सी मच गयी थी, उस समय वर्तमान राजस्थान की भौगालिक स्थिति के नजरिये से देखें तो राजपूताना के इस भूभाग में कुल 19 देशी रियासतें, 3 ठिकाने व एक केंद्र शासित प्रदेश था।

केन्द्र शासित प्रदेश का नाम अजमेर मेरवाडा था जो सीधे केन्द्र यानि अग्रेजों के अधीन था। इनमें एक रियासत अजमेर मेरवाडा प्रांत को छोड़ कर शेष देशी रियासतों पर देशी राजा महाराजाओं का ही राज था। अजमेर-मेरवाडा प्रांत पर ब्रिटिश शासकों का कब्जा था; इस कारण यह तो सीघे ही स्वतंत्र भारत में आ जाती, मगर शेष 19 रियासतों का विलय होना यानि एकीकरण कर 'राजस्थान' नामक प्रांत बनाया जाना था। सत्ता की होड़ के चलते यह बड़ा ही दूभर लग रहा था क्योंकि इन देशी रियासतों के शासक अपनी रियासतों के स्वतंत्र भारत में विलय को दूसरी प्राथमिकता के रूप में देख रहे थे। उनकी मांग थी कि वे सालों से खुद अपने राज्यों का शासन चलाते आ रहे हैं, उन्हें इसका दीर्घकालीन अनुभव है, इस कारण उनकी रियासत को 'स्वतंत्र राज्य' का दर्जा दे दिया जाए। करीब एक दशक की ऊहापोह के बीच 18 मार्च 1948 को शुरू हुई राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया कुल सात चरणों में एक नवंबर 1956 को पूरी हुई। इसमें भारत सरकार के तत्कालीन देशी रियासत और गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल और उनके सचिव वी. पी. मेनन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी। इनकी सूझबूझ से ही राजस्थान के वर्तमान स्वरुप का निर्माण हो सका।

राजस्थान एकीकरण से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण बातें-
  • राज. के एकीकरण में कुल 8 वर्ष 7 माह 14 दिन या 3144 दिन लगें।
  • भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 की 8 वी धारा या 8 वें अनुच्छेद में देशी रियासतों को आत्म निर्णय का अधिकार दिया गया था।
  • एकीकरण हेतु 5 जुलाई 1947 को रियासत सचिवालय की स्थापना करवाई गयी थी।
  • इसके अध्यक्ष सरदार वल्लभ भाई पटेल व सचिव वी पी मेनन थे।
  • रियासती सचिव द्वारा रियासतों के सामने स्वतंत्र रहने की निम्न शर्त रखी गई थी–
  1. जनसंख्या 10 लाख से अधिक होनी चाहिये।
  2. वार्षिक आय 1 करोड से अधिक होनी चाहिये।
  3. उपर्युक्त शर्तो को पूरा करने वाली राज. में केवल 4 रियासतें थी–जयपुर,  जोधपुर,  उदयपुर, बीकानेर

राजस्थान एकीकरण के सात चरण संपादित करें

पहला चरण – 18 मार्च 1948 संपादित करें

सबसे पहले अलवर, भरतपुर, धौलपुर, व करौली नामक देशी रियासतों का विलय कर तत्कालीन भारत सरकार ने फरवरी 1948 में अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल कर 'मत्स्य यूनियन' के नाम से पहला संघ बनाया। यह राजस्थान के निर्माण की दिशा में पहला कदम था। इनमें अलवर व भरतपुर पर आरोप था कि उनके शासक राष्टृविरोधी गतिविधियों में लिप्त थे। इस कारण सबसे पहले उनके राज करने के अधिकार छीन लिए गए व उनकी रियासत का कामकाज देखने के लिए प्रशासक नियुक्त कर दिया गया। इसी की वजह से राजस्थान के एकीकरण की दिशा में पहला संघ बन पाया। यदि प्रशासक न होते और राजकाज का काम पहले की तरह राजा ही देखते तो इनका विलय असंभव था क्योंकि इन राज्यों के राजा विलय का विरोध कर रहे थे। 18 मार्च 1948 को मत्स्य संघ का उद्घाटन भरतपुर में हुआ और धौलपुर के तत्कालीन महाराजा उदयभानसिंह को इसका राजप्रमुख मनाया गया। इसकी राजधानी अलवर रखी गयी थी। मत्स्य संघ नामक इस नए राज्य का क्षेत्रफल करीब तीस हजार किलोमीटर था, जनसंख्या लगभग 19 लाख और सालाना-आय एक करोड 84 लाख रूपए थी। जब मत्स्य संघ बनाया गया तभी विलय-पत्र में लिख दिया गया कि बाद में इस संघ का 'राजस्थान' में विलय कर दिया जाएगा।

दूसरा चरण – 25 मार्च 1948 संपादित करें

राजस्थान के एकीकरण का दूसरा चरण पच्चीस मार्च 1948 को स्वतंत्र देशी रियासतों कोटा, बूंदी, झालावाड, टौंक, डूंगरपुर, बांसवाडा, प्रतापगढ, किशनगढ और शाहपुरा को मिलाकर बने राजस्थान संघ के बाद पूरा हुआ। राजस्थान संघ में विलय हुई रियासतों में कोटा बड़ी रियासत थी, इस कारण इसके तत्कालीन महाराजा महाराव भीमसिंह को राजप्रमुख बनाया गया। बूंदी के तत्कालीन महाराव बहादुर सिंह राजस्थान संघ के राजप्रमुख भीमसिंह के बड़े भाई थे, इस कारण उन्हें यह बात अखरी कि छोटे भाई की 'राजप्रमुखता' में वे काम कर रहे है। इस ईर्ष्या की परिणति तीसरे चरण के रूप में सामने आयी।

तीसरा चरण – 18 अप्रैल 1948 संपादित करें

बूंदी के महाराव बहादुर सिंह नहीं चाहते थें कि उन्हें अपने छोटे भाई महाराव भीमसिंह की राजप्रमुखता में काम करना पडे, मगर बड़े राज्य की वजह से भीमसिंह को राजप्रमुख बनाना तत्कालीन भारत सरकार की मजबूरी थी। जब बात नहीं बनी तो बूंदी के महाराव बहादुर सिंह ने उदयपुर रियासत को पटाया और राजस्थान संघ में विलय के लिए राजी कर लिया। इसके पीछे मंशा यह थी कि बडी रियासत होने के कारण उदयपुर के महाराणा को राजप्रमुख बनाया जाएगा और बूंदी के महाराव बहादुर सिंह अपने छोटे भाई महाराव भीम सिंह के अधीन रहने की मजबूरी से बच जाएगे और इतिहास के पन्नों में यह दर्ज होने से बच जाएगा कि छोटे भाई के राज में बड़े भाई ने काम किया। 18 अप्रेल 1948 को राजस्थान के एकीकरण के तीसरे चरण में उदयपुर रियासत का राजस्थान संघ में विलय हुआ और इसका नया नाम हुआ 'संयुक्त राजस्थान संघ'। माणिक्य लाल वर्मा के नेतृत्व में बने इसके मंत्रिमंडल में उदयपुर के महाराणा भूपाल सिंह को राजप्रमुख बनाया गया, कोटा के महाराव भीमसिंह को वरिष्ठ उपराजप्रमुख बनाया गया। और कुछ इस तरह बूंदी के महाराजा की चाल भी सफल हो गयी।

चौथा चरण – 30 मार्च 1949 संपादित करें

इससे पहले बने संयुक्त राजस्थान संघ के निर्माण के बाद तत्कालीन भारत सरकार ने अपना ध्यान देशी रियासतों जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर पर केन्द्रित किया और इसमें सफलता भी हाथ लगी और इन चारों रियासतो का विलय करवाकर तत्कालीन भारत सरकार ने तीस मार्च 1949 को वृहत्तर राजस्थान संघ का निर्माण किया, जिसका उदघाटन भारत सरकार के तत्कालीन रियासती और गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया। बीकानेर रियासत ने सर्वप्रथम भारत में विलय किया। यही ३० मार्च आज राजस्थान की स्थापना का दिन माना जाता है। इस कारण इस दिन को हर साल राजस्थान दिवस के रूप में मनाया जाता है। हालांकि अभी तक चार देशी रियासतो का विलय होना बाकी था, मगर इस विलय को इतना महत्त्व नहीं दिया जाता, क्योंकि जो रियासते बची थी वे पहले चरण में ही 'मत्स्य संघ' के नाम से स्वतंत्र भारत में विलय हो चुकी थी। अलवर, भतरपुर, धौलपुर व करौली नामक इन रियासतो पर भारत सरकार का ही आधिपत्य था इस कारण इनके राजस्थान में विलय की तो मात्र औपचारिकता ही होनी थी।

पांचवा चरण – 15 मई 1949 संपादित करें

पन्द्रह मई 1949 को मत्स्य संध का विलय ग्रेटर राजस्थान में करने की औपचारिकता भी भारत सरकार ने निभा दी। भारत सरकार ने 18 मार्च 1948 को जब मत्स्य संघ बनाया था तभी विलय पत्र में लिख दिया गया था कि बाद में इस संघ का राजस्थान में विलय कर दिया जाएगा। इस कारण भी यह चरण औपचारिकता मात्र माना गया।

छठा चरण – 26 जनवरी 1950 संपादित करें

भारत का संविधान लागू होने के दिन 26 जनवरी 1950 को सिरोही रियासत का भी विलय ग्रेटर राजस्थान में कर दिया गया। इस विलय को भी औपचारिकता माना जाता है क्योंकि यहां भी भारत सरकार का नियंत्रण पहले से ही था। दरअसल जब राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया चल रही थी, तब सिरोही रियासत के शासक नाबालिग थे। इस कारण सिरोही रियासत का कामकाज दोवागढ की महारानी की अध्यक्षता में एजेंसी कौंसिल ही देख रही थी जिसका गठन भारत की सत्ता हस्तांतरण के लिए किया गया था। सिरोही रियासत के एक हिस्से आबू देलवाडा को लेकर विवाद के कारण इस चरण में आबू देलवाडा तहसील को बंबई और शेष रियासत विलय राजस्थान में किया गया।

सांतवा चरण – 1 नवंबर 1956 संपादित करें

अब तक अलग चल रहे आबू देलवाडा तहसील को राजस्थान के लोग खोना नहीं चाहते थे, क्योंकि इसी तहसील में राजस्थान का कश्मीर कहा जाने वाला आबूपर्वत भी आता था, दूसरे राजस्थानी, बच चुके सिरोही वासियों के रिश्तेदार और कईयों की तो जमीन भी दूसरे राज्य में जा चुकी थी। आंदोलन हो रहे थे, आंदोलन कारियों के जायज कारण को भारत सरकार को मानना पड़ा और आबू देलवाडा तहसील का भी राजस्थान में विलय कर दिया गया। इस चरण में कुछ भाग इधर उधर कर भौगोलिक और सामाजिक त्रुटि भी सुधारी गया। इसके तहत मध्यप्रदेश में शामिल हो चुके सुनेल थापा क्षेत्र को राजस्थान में मिलाया गया और झालावाड जिले के उप जिला सिरनौज को मध्यप्रदेश को दे दिया गया।

इसी के साथ आज से राजस्थान का निर्माण या एकीकरण पूरा हुआ। जो राजस्थान के इतिहास का एक अति महत्ती कार्य था 1 नवंबर 1956 को राजप्रमुख का पद समाप्त कर राज्यपाल का पद सृजित किया गया था।

इन्हें भी देखें संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें

संदर्भ संपादित करें