राज मोहिनी देवी

समाज सेविका

राजमोहनी देवी गांधीवादी विचार धारा वाली एक समाज सेविका थी जिन्होंने बापू धर्म सभा आदिवासी मण्डल की स्थापना की। ये संस्था गोंडवाना स्थित आदिवासियों के हित के लिए कार्य करती है। वे स्वयं एक आदिवासी जाति मांझी में जन्मी थी।[1]

राज मोहिनी देवी
मौत सरगुजा जिला Edit this on Wikidata
पेशा शैक्षणिक व्यक्ती, सामाजिक कार्यकर्ता Edit this on Wikidata

१९५१ के अकाल के समय गांधीवादी विचारधाराओ व आदर्शों से प्रभावित होकर इन्होंने एक जन आंदोलन चलाया जिसे राजमोहनी आंदोलन के नाम से जाना जाता है।[2] इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य आदिवासी महिलाओं की स्वतन्त्रता व स्वायत्ता निश्चित करना था साथ ही अंधविश्वास और मदिरा पान की समस्याओं का उन्मूलन था। धीरे धीरे इस आंदोलन से ८०००० से भी ज्यादा लोग जुड़ गए। बाद में ये आंदोलन एक अशाष्कीय संस्थान के रूप में सामने आया। इस संस्थान के आश्रम न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि उत्तर प्रदेश और बिहार में भी है।

सन १९८९ को भारत सरकार द्वारा इन्हे भारत के चतुर्थ सर्वोच्च नागरिक सम्मान "पद्म श्री" से सम्मानित किया गया। उनके जीवन पर सीमा सुधीर जी द्वारा एक किताब की रचना की गयी है जिसका शीर्षक है "सामाजिक क्रांति की अग्रदूत राजमोहनी देवी" जिसका प्रकाशन छत्तीसगढ़ राज्य हिन्दी ग्रंथ अकादेमी द्वारा सन 2013 में किया गया।

उनके नाम पर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा संचालीत "राजमोहनी देवी कॉलेज ऑफ एग्रिकल्चर अँड रिसर्च स्टेशन" व "राजमोहनी देवी पीजी महिला महाविद्यालय" अंबिका पुर में स्थित है।

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "CM Releases Book on Padmashree Rajmohini Devi". Daily Pioneer. 2 May 2013. मूल से 5 फ़रवरी 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि September 2, 2015.
  2. Stephen Fuchs. "Messianic Movements in Primitive India". NIRC. मूल से 4 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 मई 2017.