मनाली लेह राजमार्ग उत्तर भारत में हिमाचल प्रदेश के मनाली और लद्दाख़ के लेह को जोड़ने वाला राजमार्ग है। यह साल में केवल चार-पांच महीनों के लिए ही खुला रहता है। अक्टूबर में बर्फबारी होने के कारण यह बंद हो जाता है। यह मनाली को लाहौल-स्पीति और ज़ंस्कार से भी जोड़ता है। मनाली लेह मार्ग का निर्माण और मरम्मत सीमा सड़क संगठन द्वारा किया जाता है, ताकि सेना के बड़े-बड़े और भारी वाहन यहाँ से गुजर सकें।[1][2][3]

लेह-मनाली राजमार्ग
Leh-Manali Highway
नक्शा

टागलांग ला दर्रा, ऊँचाई: 5359 मीटर (17,582 फुट)
मार्ग की जानकारी
लंबाई: 428 कि॰मी॰ (266 मील)
प्रमुख जंक्शन
उत्तर अन्त: लेह, लद्दाख़
दक्षिण अन्त: मनाली, हिमाचल प्रदेश
स्थान
राज्य:हिमाचल प्रदेश, लद्दाख़
मुख्य गंतव्य:

भौगोलिक विशेषताएँ संपादित करें

मनाली लेह मार्ग की औसत ऊंचाई 4000 मीटर (13000 फीट) है और सबसे अधिक ऊंचाई तंगलंगला दर्रे पर 5328 मीटर (17480 फीट) है। यह पूरा मार्ग पर्वतीय भूभाग में स्थित है। यह कई जगह ठंडी बर्फीली जलधाराओं से गुजरता है। ज्यादातर जगह कोई पुल भी नहीं है। ये जलधाराएं सीधे ग्लेशियरों से आती हैं और इनका बहाव बड़ा तेज होता है। एक बार जब आप रोहतांग दर्रे को पार कर लोगे और लाहौल-स्पीति में चन्द्रा घाटी में प्रवेश कर जाओगे तो भू-दृश्य बड़ी तेजी से बदलता है। यहाँ चूँकि बारिश नहीं होती इसलिए हरियाली भी नहीं है। पहाड़ भूरे और शुष्क हो जाते हैं। इसके बावजूद पर्वतों की चोटियां बर्फ से ढकी रहती हैं और धूप में खूब चमकती हैं। यह मार्ग मुख्यतः दो लेन वाला है लेकिन कहीं-कहीं एक लेन भी है। कहीं भी डिवाइडर नहीं है। कुछ जगहों पर सड़क ख़राब भी है। पहाड़ी मार्ग होने के कारण गाड़ियां तेजी से नहीं चलाई जा सकतीं। अगर ऐसा किया तो दुर्घटना होनी तय है। तकरीबन 500 किलोमीटर के इस मार्ग को दो या ज्यादा दिनों में पूरा किया जाना चाहिए। यहाँ यात्रा करने का आनंद लेह पहुँचने के आनंद से कहीं ज्यादा है। पूरे मार्ग पर शानदार और हैरतअंगेज दृश्य आपका मन मोह लेंगे।

राजमार्ग की लम्बाई संपादित करें

इस राजमार्ग की कुल लम्बाई 474 किलोमीटर है। सरचू लगभग मध्य में पड़ता है। सरचू में ही हिमाचल प्रदेश समाप्त हो जाता है और जम्मू-कश्मीर राज्य शुरू हो जाता है।

मार्ग संपादित करें

 
मोरे मैदान में याक

मनालीरोहतांग जोत - ग्राम्फू - कोकसर - टाण्डी - केलांग - जिस्पा - दारचाजिंगजिंगबार - बारालाचा ला - भरतपुर - सरचू - गाटा लूप - नकीला - लाचुलुंग ला - पांग - मोरे मैदान - तंगलंग ला - उप्शी - कारु - लेह

दूरियाँ संपादित करें

  • 1: मनाली (ऊँचाई 1950 मी) से मढ़ी (3300 मी) दूरी 33 किमी।
  • 2: मढ़ी से रोहतांग दर्रा (3980 मी), दूरी 18 किमी।
  • 3: रोहतांग दर्रा से ग्राम्फू (3200 मी), दूरी 19 किमी। ख़राब सड़क, तेज ढलान। यहाँ से दाहिने वाली सड़क बाटल और कुंजुम पास होते हुए काजा (स्पीति घाटी) जाती है।
  • 4: ग्राम्फू से कोकसर, दूरी (6 किमी)। यह रोहतांग के बाद पहला गाँव है। विदेशियों को यहाँ पुलिस चेक-पोस्ट पर अपना पासपोर्ट और वीजा चेक कराना होता है। (वैसे कोई भी लेह जा सकता है। हालाँकि लेह से आगे के कुछ इलाकों में जाने के लिए विशेष अनुमति लेनी होती है। यह अनुमति लेह से मिलती है।)
  • 5: कोकसर से सिस्सू (3130 मी), दूरी 25 किमी। सिस्सू में एक हेलीपैड भी है।
  • 6: सिस्सू से तांदी (2570 मी), दूरी 8 किमी। तांदी चन्द्रा और भागा नदियों के संगम पर स्थित है। संगम के बाद यह चन्द्रभागा नदी बन जाती है जो आगे जम्मू कश्मीर में प्रवेश करने पर चेनाब हो जाती है। यहाँ भागा नदी पर एक पुल बना है। पुल पार करके दाहिने मुड़कर आगे बढ़ते है।
  • 7: तांदी से केलांग (3080 मी), दूरी 9 किमी।
  • 8: केलांग से जिस्पा (3310 मी), दूरी 22 किमी।
  • 9: जिस्पा से दारचा (3360 मी), दूरी 6 किमी। यहाँ सभी यात्रियों को चेक-पोस्ट पर रजिस्टर में नाम लिखना होता है।
  • 10: दारचा से जिंगजिंगबार (4270 मी), दूरी 26 किमी। यहां से बारालाचा ला की चढ़ाई शुरू होती है।
  • 11: जिंगजिंगबार से बारालाचा ला (4950 मी), दूरी 18 किमी। यह एक तेज चढ़ाई है। बारालाचा ला से ही विपरीत दिशाओं में चन्द्रा और भागा नदियों का उद्गम है।
  • 12: बारालाचा ला से भरतपुर, दूरी 2 किमी। ख़राब सड़क और तेज ढलान।
  • 13: भरतपुर से सरचू (4300 मी), दूरी 38 किमी। यहाँ भी रजिस्टर में नाम लिखना होता है। (हिमाचल प्रदेश की सीमा समाप्त और जम्मू कश्मीर राज्य का लद्दाख क्षेत्र शुरू।)
  • 14: सरचू से पांग (4600 मी), दूरी 80 किमी। रास्ते में 22 हेयरपिन बैण्ड वाले गाटा लूप हैं। 4739 मी की ऊँचाई पर नकीला है और उसके बाद 5050 मी पर लाचुलुंग ला दर्रा है। लाचुलुंग ला से पांग तक का मार्ग बड़ा खतरनाक और हैरतअंगेज दृश्यों से भरा है। पांग में भी चेक पोस्ट पर नाम लिखना होता है।
  • 15: पांग से तंगलंग ला (5328 मी), दूरी 69 किमी। रास्ते में सुप्रसिद्ध मोरे मैदान पड़ता है जहां पचासों किलोमीटर तक बिलकुल सीधी और चौड़ी सड़क है। तंगलंग ला इस मार्ग का सबसे ऊँचा स्थान है। यह दर्रा दुनिया का तीसरा सबसे ऊँचा मोटर योग्य दर्रा है।
  • 16: तंगलंग ला से उप्शी, दूरी 60 किमी। उप्शी में सिंधु नदी के पहली बार दर्शन होते हैं। यहाँ सिंधु नदी पार करनी होती है। यहाँ से पुराने समय में तिब्बत के लिए रास्ता जाता था। वह रास्ता अभी भी है और भारत-तिब्बत सीमा पर चुमार तक जाता है।
  • 17: उप्शी से कारु, दूरी 15 किमी। सिन्धु नदी को पार करने के बाद रास्ता नदी के दाहिने किनारे के साथ साथ जाता है।
  • 18: कारु से लेह (3500 मी) दूरी 35 किमी। कारु से एक रास्ता सुप्रसिद्ध पेंगोंग झील के लिए जाता है।

यात्रा का समय संपादित करें

मनाली लेह राजमार्ग अच्छी सड़क, ख़राब सड़क, बर्फ, तेज बहती जलधाराओं और भू-स्खलन सभी का मिश्रण है। यह 5000 मीटर से भी ऊंचे दर्रो से गुजरता है। यात्रा में कितना समय लगेगा, यह कहना मुश्किल है क्योंकि मौसम कभी भी बदल सकता है। सामान्यतया यात्रा में दो दिन लगते है। लेकिन अगर कोई समस्या आ गई या मौसम बिगड़ गया तो ज्यादा समय भी लग सकता है। यात्री अक्सर रात में जिस्पा या सरचू में रुकते हैं। हालाँकि केलांग, दारचा और पांग में भी बहुत शानदार रुकने का इंतजाम होता है। सबसे अधिक यात्री मई और जून में आते है। ज्यादातर भारतीय यात्री रोहतांग दर्रा देखकर ही मनाली लौट जाते हैं। रोहतांग दर्रा गर्मियों में भी बर्फ से ढका रहता है। बसें मनाली से सुबह चार बजे ही चलना शुरू हो जाती है और नियमित अंतराल पर दोपहर बारह बजे तक चलती रहती हैं। ये बसें ज्यादातर केलांग जाती हैं। मनाली से केलांग तक अमूमन छह घंटे लगते हैं। लेकिन मढ़ी में ब्यास नाले पर लगने वाले जाम, ख़राब मौसम, बर्फबारी आदि के कारण ज्यादा समय भी लग जाता है। अगर आपको रोहतांग दर्रा पार करके लाहौल में उतरना है तो सलाह दी जाती है कि सुबह आठ बजे से पहले रोहतांग पार हो जाना चाहिए। मार्ग में बसों के अलावा शेयर टैक्सियां भी चलती हैं लेकिन वे ज्यादातर स्थानीय लोगों से भरी रहती है। इसके अलावा शेयर टैक्सी में बाहर के दृश्य भी उतने अच्छे नहीं दिखते जिससे यात्रा का मजा किरकिरा हो जाता है। दूसरी बात कि वे हर जगह नहीं रुकतीं। कुछ लोग मनाली से लेह तक मोटरसाइकिलों व साइकिलों पर भी जाते हैं।

उच्च पर्वतीय बीमारी संपादित करें

सभी जानते हैं कि ऊँचाई बढ़ने के साथ साथ हवा भी कम होती चली जाती हैं। इसके कारण साँस लेने में परेशानी होती हैं। इसके अलावा सिरदर्द, उबकाई, चक्कर आना और उलटी आना भी आम बात हैं। बहुत से लोग इस परेशानी से गुजरते हैं। इससे बचने के लिए सभी को लेह के लिए प्रस्थान करने से पहले एक दिन मनाली में बिताना चाहिए। पहले ही दिन लेह जाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। तंगलंग ला पार करने से पहले सरचू या पांग में रुक जाना चाहिए। इससे शरीर वातावरण के अनुकूल हो जाता है। इसके अलावा अपने साथ कुछ चाकलेट, टॉफी, ग्लूकोज आदि रखने चाहिए। खूब पानी पीना चाहिए और ऊंची जगहों जैसे दर्रों पर कम से कम समय के लिए रुकना चाहिए।

मौसम संपादित करें

लद्दाख एक शुष्क ठंडा मरुस्थल है। इसलिए गर्मियों में भी पूरा मार्ग ठंडा रहता है। हालाँकि धूप निकलने पर दिन में काफी गर्मी हो जाती है लेकिन राते अत्यधिक ठंडी रहती हैं। इसलिए दिन में हल्के ऊनी कपडे और रात में मोटे ऊनी कपड़ों की आवश्यकता होती है। नदियों और नालों का पानी बेहद ठंडा रहता है और इसे पार करते समय भीगने से बचना चाहिए। एक बार अगर रोहतांग पार कर लिया तो लेह तक बारिश नहीं मिलेगी, यहाँ तक कि मानसून में भी नहीं। हरियाली कहीं नहीं मिलती। केवल रास्ते में पड़ने वाले गाँवों में ही थोड़ी बहुत हरियाली होती है।

ठहरने के स्थान संपादित करें

भारत में ढाबा परम्परा है। ये सस्ते होते हैं। मनाली लेह मार्ग पर पूरे रास्ते ये ढाबे मिलते हैं, यहाँ तक कि बिल्कुल निर्जन स्थानों पर भी. ढाबों में आप खाना खाने के साथ साथ आराम भी कर सकते हैं और रात को सो भी सकते हैं। यहाँ आपको कम दामों पर बिस्तर मिलते हैं।

  • मनाली में हर बजट के होटल हैं।
  • कोकसर में केवल एक ही गेस्ट हाउस है।
  • सिस्सू में एक होटल और पी डब्ल्यू डी का रेस्ट हाउस है। यहाँ चंद्रा नदी के उस तरफ एक सुन्दर झरना भी है। यहाँ एक हेलीपैड भी है जो सर्दियों में मनाली आने-जाने के काम आता है।

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "The Rough Guide to India Archived 2017-02-19 at the वेबैक मशीन," Penguin, 2016, ISBN 978-0-24129-614-1
  2. "Himachal Pradesh, Development Report, State Development Report Series, Planning Commission of India, Academic Foundation, 2005, ISBN 9788171884452
  3. "Himachal Pradesh District Factbook," RK Thukral, Datanet India Pvt Ltd, 2017, ISBN 9789380590448