जैसा कि हमारे भारतीय संविधान की प्रस्तावना है। उसके अनुसार हमारे संविधान की धाराएँ नहीं बनायीं गयी हैं। काश:! इसकी समझ हम सभी को हो जाती। हमारे संविधान की धाराएँ उत्पादक वर्गों का शोषण करने के लिए ही बनायीं गयीं हैं। जिस्का आरम्भ चुनाव से ही होतीं हैं। गणतंत्र एक छलावा ही है। क्योंकि कर्मों की प्रधानता ब्यवहारिक रुप से भारत में स्थापित ही नहीं है। गणतंत्र का मूल उदेश्य कर्मों की प्रधानता ब्यवहारिक रुप से स्थापित करना ही है। ताकि प्रत्येक नगरिक को उसके करनी का फल निष्पक्षता तथा ईमानदारी से मिल सके। चुनाव तथा अन्य प्रावधनों को बदले बिना हमें संविधान की प्रस्तावना के अनुसार हम भारतीयों की मौलिक अधिकरों की रक्षा नहीं हो सकेगी। हमें ऐसी संविधान की धाराएँ चाहिए जिनके द्वारा प्रत्येक भारतीय को उसकी योग्यता के अनुसार ही फलें निष्पक्षता तथा ईमानदारी से मिल सके। यनी भ्रष्टाचारियों को दण्ड तथा नैतिकवानों को पुरष्कारें निष्पक्षता तथा ईमानदारी से मिल सके।

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