"भीमराव आम्बेडकर": अवतरणों में अंतर

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रामजी आम्बेडकर ने सन [[१८९८]] में जिजाबाई से पुनर्विवाह कर लिया और परिवार के साथ [[मुंबई]] (तब बंबई) चले आये। यहाँ आम्बेडकर [[एल्फिंस्टोन रोड]] पर स्थित गवर्न्मेंट हाई स्कूल में, तथाकथिक "अछूत" समाज से संबंधित पहले छात्र बने।<ref name="Columbia2">{{cite web| last = Pritchett| first = Frances| date = | url = http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00ambedkar/timeline/1900s.html| title = In the 1900s| format = PHP| accessdate = 2006-08-02}}</ref>
 
==उच्च शिक्षा ==
===माध्यमिक शिक्षा===
1897 में, आम्बेडकर का परिवार मुंबई चला गया जहां एल्फिंस्टन हाई स्कूल में आम्बेडकर एकमात्र अस्पृश्य छात्र थे। अप्रैल 1906 में, जब वह लगभग 15 वर्ष आयु के थे, तो नौ साल की लड़की [[रमाबाई आंबेडकर|रमाबाई]] से उनकी शादी कराई गई थी।
 
===उच्च शिक्षा===
[[File:Ambedkar Barrister.jpg|thumb| सन 1922 में एक वकील के रूप में डॉ॰ भीमराव आम्बेडकर]]
[[बड़ोदरा]] राज्य के शासक [[सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय|सयाजीराव गायकवाड़]] द्वारा, सन १९१३ में [[संयुक्त राज्य अमेरिका]] के [[कोलंबिया विश्वविद्यालय]] मे जाकर अध्ययन के लिये भीमराव आम्बेडकर का चयन किया गया, साथ ही उनके लिये एक ११.५ डॉलर प्रति मास की छात्रवृत्ति भी प्रदान की। [[न्यूयॉर्क]] शहर में आने के बाद, भीमराव आम्बेडकर को राजनीति विज्ञान विभाग के स्नातक अध्ययन कार्यक्रम में प्रवेश दे दिया गया। शयनशाला मे कुछ दिन रहने के बाद, वे भारतीय छात्रों द्वारा चलाये जा रहे एक आवास क्लब मे रहने चले गए और उन्होने अपने एक [[पारसी]] मित्र नवल भातेना के साथ एक कमरा ले लिया। १९१६ में, उन्हे उनके एक शोध के लिए पीएच.डी. से सम्मानित किया गया। इस शोध को अंततः उन्होंने पुस्तक ''इवोल्युशन ओफ प्रोविन्शिअल फिनान्स इन ब्रिटिश इंडिया'' के रूप में प्रकाशित किया। हालाँकि उनका पहला प्रकाशित काम, ''भारत में जाति: उनकी प्रणाली, उत्पत्ति और विकास'' नामक एक लेख है। अपनी डाक्टरेट की डिग्री लेकर सन १९१६ में डॉ॰ आम्बेडकर [[लंदन]] चले गये जहाँ उन्होने ग्रेज् इन और [[लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स]] में [[विधि]] का अध्ययन और [[अर्थशास्त्र]] में डॉक्टरेट शोध की तैयारी के लिये अपना नाम दर्ज कराया। अगले वर्ष छात्रवृत्ति की समाप्ति के चलते मजबूरन उन्हें अपना अध्ययन अस्थायी तौरपर बीच में ही छोड़ कर भारत वापस लौटना पड़ा; ये [[प्रथम विश्व युद्ध]] का काल था; [[बड़ौदा]] राज्य के सेना सचिव के रूप में काम करते हुये अपने जीवन में अचानक फिर से आये भेदभाव से डॉ॰ भीमराव आम्बेडकर निराश हो गये और अपनी नौकरी छोड़ एक निजी ट्यूटर और लेखाकार के रूप में काम करने लगे। यहाँ तक कि अपनी परामर्श व्यवसाय भी आरंभ किया जो उनकी सामाजिक स्थिति के कारण विफल रहा। अपने एक अंग्रेज जानकार मुंबई के पूर्व राज्यपाल लॉर्ड सिडनेम, के कारण उन्हें मुंबई के ''सिडनेम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनोमिक्स'' मे राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर के रूप में नौकरी मिल गयी। [[१९२०]] में कोल्हापुर के [[शाहू महाराज]], अपने पारसी मित्र के सहयोग और अपनी बचत के कारण वो एक बार फिर से इंग्लैंड वापस जाने में सक्षम हो गये। [[१९२३]] में उन्होंने अपना शोध ''प्रोब्लेम्स ऑफ द रुपी'' (रुपये की समस्यायें) पूरा कर लिया। उन्हें [[लंदन विश्वविद्यालय]] द्वारा "डॉक्टर ऑफ साईंस" की उपाधि प्रदान की गयी। और उनकी कानून का अध्ययन पूरा होने के साथ ही साथ उन्हें ब्रिटिश बार में बैरिस्टर के रूप में प्रवेश मिल गया। भारत वापस लौटते हुये डॉ॰ भीमराव आम्बेडकर तीन महीने [[जर्मनी]] में रुके, जहाँ उन्होने अपना अर्थशास्त्र का अध्ययन, [[बॉन विश्वविद्यालय]] में जारी रखा। उन्हें औपचारिक रूप से [[८ जून]] [[१९२७]] को [[कोलंबिया विश्वविद्यालय]] द्वारा पीएच.डी. प्रदान किया गया।