"भीमराव आम्बेडकर": अवतरणों में अंतर

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== छुआछूत के विरुद्ध संघर्ष ==
[[File:Ambedkar Barrister.jpg|thumb| सन 1922 में एक वकील के रूप में डॉ॰ भीमराव आम्बेडकर]]
 
आम्बेडकर बड़ौदा के रियासत राज्य द्वारा शिक्षित थे, और वह उनकी सेवा करने के लिए बाध्य थे। उन्हें महाराजा गायकवाड़ का सैन्य सचिव नियुक्त किया गया, लेकिन जातिगत भेदभाव के कारण कम समय में उन्हें यह नौकरी छोड़नी पडी। उन्होंने इस घटना को अपनी आत्मकथा, ''[[वेटिंग फॉर ए वीजा]]'' में वर्णित किया। इसके बाद, उन्होंने अपने बढ़ते परिवार के लिए जीवित रहने के तरीके खोजने की कोशिश की। उन्होंने एकाउंटेंट के रूप में एक निजी शिक्षक के रूप में काम किया, और एक निवेश परामर्श व्यवसाय की स्थापना की, लेकिन यह तब विफल रहा जब उनके ग्राहकों ने जाना कि वह अस्पृश्य हैं। 1918 में, वह मुंबई में सिडेनहम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स में राजनीतिक अर्थव्यवस्था (''Political Economy'') के प्रोफेसर बने। हालांकि वह छात्रों के साथ सफल रहे, फिर भी अन्य प्रोफेसरों ने उनके साथ पानी पीने के जॉग साझा करने पर विरोध किया।
 
भारत सरकार अधिनियम [[१९१९]], तैयार कर रही साउथबरो समिति के समक्ष, भारत के एक प्रमुख विद्वान के तौर पर आम्बेडकर को गवाही देने के लिये आमंत्रित किया गया। इस सुनवाई के दौरान, आम्बेडकर ने दलितों और अन्य धार्मिक समुदायों के लिये [[पृथक निर्वाचिका]] (separate electorates) और आरक्षण देने की वकालत की। [[१९२०]] में, बंबई से , उन्होंने साप्ताहिक मूकनायक के प्रकाशन की शुरूआत की। यह प्रकाशन जल्द ही पाठकों मे लोकप्रिय हो गया, तब आम्बेडकर ने इसका इस्तेमाल रूढ़िवादी हिंदू राजनेताओं व जातीय भेदभाव से लड़ने के प्रति भारतीय राजनैतिक समुदाय की अनिच्छा की आलोचना करने के लिये किया। उनके दलित वर्ग के एक सम्मेलन के दौरान दिये गये भाषण ने कोल्हापुर राज्य के स्थानीय शासक शाहू चतुर्थ को बहुत प्रभावित किया, जिनका आम्बेडकर के साथ भोजन करना रूढ़िवादी समाज मे हलचल मचा गया। आम्बेडकर ने अपनी वकालत अच्छी तरह जमा ली और [[बहिष्कृत हितकारिणी सभा]] की स्थापना भी की जिसका उद्देश्य दलित वर्गों में शिक्षा का प्रसार और उनके सामाजिक आर्थिक उत्थान के लिये काम करना था। सन् [[१९२६]] में, वो बंबई विधान परिषद के एक मनोनीत सदस्य बन गये। सन [[१९२७]] में डॉ॰ आम्बेडकर ने छुआछूत के खिलाफ एक व्यापक आंदोलन शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने सार्वजनिक आंदोलनों और जुलूसों के द्वारा, पेयजल के सार्वजनिक संसाधन समाज के सभी लोगों के लिये खुलवाने के साथ ही उन्होनें अछूतों को भी हिंदू मंदिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिये भी संघर्ष किया। उन्होंने महड में अस्पृश्य समुदाय को भी शहर की पानी की मुख्य टंकी से पानी लेने का अधिकार दिलाने कि लिये सत्याग्रह चलाया।