"भीमराव आम्बेडकर": अवतरणों में अंतर

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सन 1925 में, उन्हें बम्बई प्रेसीडेंसी समिति में सभी यूरोपीय सदस्यों वाले [[साइमन कमीशन]] काम करने के लिए नियुक्त किया गया। इस आयोग के विरोध में भारत भर में विरोध प्रदर्शन हुये और जबकि इसकी रिपोर्ट को ज्यादातर भारतीयों द्वारा नजरअंदाज कर दिया गया, डॉ॰ आम्बेडकर ने अलग से भविष्य के संवैधानिक सुधारों के लिये सिफारिशों लिखीं।
 
1 जनवरी 1927 को आम्बेडकर ने द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध, की [[कोरेगाँव की लडा़ई]] के दौरान मारे गये भारतीय [[महार]] सैनिकों के सम्मान में कोरेगाँव विजय स्मारक (जयस्तंभ) में एक समारोह आयोजित किया। यहाँ महार समुदाय से संबंधित सैनिकों के नाम संगमरमर के एक शिलालेख पर खुदवाये गये हैं।
 
सन 1927 तक, डॉ॰ आम्बेडकर ने छुआछूत के खिलाफ एक व्यापक एवं सक्रिय आंदोलन शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने सार्वजनिक आंदोलनों, सत्याग्रहों और जुलूसों के द्वारा, पेयजल के सार्वजनिक संसाधन समाज के सभी लोगों के लिये खुलवाने के साथ ही उन्होनें अछूतों को भी हिंदू मंदिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिये भी संघर्ष किया। उन्होंने [[महाड]] शहर में अस्पृश्य समुदाय को भी शहर की चवदार तालाब से पानी लेने का अधिकार दिलाने कि लिये सत्याग्रह चलाया। 1927 के अंत में सम्मेलन में, आम्बेडकर ने जाति भेदभाव और "अस्पृश्यता" को वैचारिक रूप से न्यायसंगत बनाने के लिए, प्राचीन हिंदू पाठ, [[मनुस्मृति]] (मनु के कानून), जिसके कई पद, खुलकर जातीय भेदभाव व जातिवाद का समर्थन करते हैं,<ref name="manuBE">{{cite web |title=मनुस्मृति-ब्रिटैनिका विश्वकोश |url=https://www.britannica.com/topic/Manu-smriti |website=www.britannica.com |publisher=[[ब्रिटैनिका विश्वकोश]] |accessdate=२३ जून २०१८ |ref="Its influence on all aspects of Hindu thought, particularly the justification of the caste system, has been profound."}}</ref> की सार्वजनिक रूप से निंदा की, और उन्होंने औपचारिक रूप से प्राचीन पाठ की प्रतियां जला दीं।<ref>{{cite web|url=http://www.bbc.com/hindi/india/2016/03/160309_manusmriti_granth_pj|title=भारत में कैसे बढ़ा 'मनुस्मृति' का महत्व}}</ref> 25 दिसंबर 1927 को, उन्होंने हजारों अनुयायियों का नेतृत्व [[मनुस्मृति]] की प्रतियों को जलाया।<ref>{{cite web|url=http://www.bbc.com/hindi/india/2015/12/151226_sangh_recognising_ambedkar_rd|title='क्या मनुस्मृति दहन दिन मनाएगा संघ?'}}</ref> इस प्रकार प्रतिवर्ष 25 दिसंबर को ''[[मनुस्मृति दहन दिवस]]'' के रूप में आम्बेडकरवादियों और दलितों द्वारा मनाया जाता है।