"नामांतर आंदोलन": अवतरणों में अंतर

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नामांतर आंदोलन के इतिहास की आयु 35 वर्ष है। 27 जुलाई 1978 में विधानमंडल के दोनों सभागृहों में मराठवाडा विश्वविद्यालय को डॉ॰ [[भीमराव आंबेडकर]] जी का नाम देने का निर्णय लिया गया। इसका महाराष्ट्र की बौद्ध, दलित तथा पुरोगामी जनता द्वारा स्वागत हुआ किंतु अधिकांश हिन्दुओं ने इसका विरोध किया और विरोध प्रदर्शन के लिए रैलियां तथा मार्च निकाले। विरोध करने में [[मराठा]] जाति व [[शिवसेना]] पार्टी सबसे आगे थी। बौद्ध व दलित समाज ने भी विश्वविद्यालय को आम्बेडकर का नाम देने के लिए रैलियां निकाली, [[दलित पँथर]] ने इसमें सक्रियता से भाग लिया था। तब महाराष्ट्र में रैलियां व प्रति-रैलियों का दौर था। उस दौरान हिन्दुओं द्वारा अनगिणत बौद्ध ([[महार]]) लोगों पर कई तरह के अत्याचार किये गये। बौद्धों पर अपमान, उनपर हमला, उनकी हत्या, महिलांओ के साथ बलात्कार, उनका सामाजिक बहिष्कार तथा उनके घर व उन्हें भी जलाया गया। यह सिलसिला 35 वर्षों तक चलता रहा।
 
==सफलता==
==यशस्वीतता==
सोळा16 वर्षाच्यावर्ष लढाईनंतरकी औरंगाबादेतीललढाई के बाद मराठवाडा विद्यापीठालाविश्वविद्यालय को १४ जानेवारीजनवरी १९९४ रोजीको "डॉ. भीमरावबाबासाहेब आंबेडकर मराठवाडा विद्यापीठविश्वविद्यालय'' असेनाम नावदिया देण्यातगया। आले.नामांतराचीनामांतर अधिकृतकी औपचारिक घोषणा तत्कालीन मुख्यमंत्री [[शरद पवार]] यांनीने केली.कि थी। इस आन्दोलन को सफल बनाने में कई लोगों की जांने गई तो कई लोगों को इसकी बहुत बडी कितम चूकानी पडी। हर साल 14 जनवरी इन लोगों भी का स्मरण कर उन्हें अभिवादन किया जाता हैं।
 
== सन्दर्भ ==