वीरचन्द गाँधी

जैन विद्वान - शिकागो के प्रसिद्ध धर्म-सम्मेलन में जैन-प्रतिनिधि

वीरचन्द गाँधी (25 अगस्त 1864 - 7 अगस्त 1901) उन्नीसवीं सदी के एक जैन विद्वान थे, जो शिकागो के उस प्रसिद्ध धर्म-सम्मेलन में जैन-प्रतिनिधि बन कर गए थे जिससे स्वामी विवेकानन्द को ख्याति मिली थी। वीरचन्द गाँधी ने अहिंसा के सिद्धान्त को बहुत महत्वपूर्ण बताया था।

वीरचन्द गाँधी

वीरचन्द गाँधी
जन्म 25 अगस्त 1864
Mahuva, Gujarat
मौत 7 अगस्त 1901(1901-08-07) (उम्र 36)
Mahuwar, near Mumbai, India
शिक्षा बी.ए.(राजनीति)
शिक्षा की जगह मुंबई विश्वविद्यालय
पेशा वकालत, जैन विद्वान्
प्रसिद्धि का कारण जैन धर्म के प्रतिनिधि बनकर World Parliament of Religions, Chicago 1893
धर्म जैन धर्म
बच्चे मोहनदास गांधी
माता-पिता राघव तेजपाल गांधी
हस्ताक्षर

जीवन परिचय संपादित करें

वीरचंद जी का जन्म २५ अगस्त १८६४ को गुजरात के महुवा गाँव में हुआ था। उनके पिता जी राघवजी तेजपालजी गाँधी, महुवा नगर के प्रतिष्ठित नगरसेठ थे व उनका मोती–जेवरात का व्यापार था। १८७९ में वीरचंद जी का जीवी बेन से विवाह हुआ। वीरचंदजी ने २१ वर्ष की आयु में अपना बी ए (आनर्स) , मुम्बई के एल्फिंस्टन कॉलेज से किया व तब तक वे १४ भाषाओं के ज्ञाता व सर्व धर्म ग्रंथो के विद्वान् बन चुके थे। २१ वर्ष की आयु में वे भारत के जैन संघ के सचिव नियुक्त किये गए।

वीरचंद जी ने पालीताणा दर्शन के लिए वहां के ठाकुर (राजा ) को प्रति व्यक्ति को जो कर देना पड़ता था उसे अपनी जान पर खेलकर व अंग्रेजो से मिलकर प्रति व्यक्ति कर को रद्द कराया। इसी तरह कोलकाता जाकर बंगाली सीख कर उन्होंने कोर्ट में अपने द्वारा दस्तावेज देकर सम्मेद शिखरजी के प्रांगण में एक अंग्रेज व्यापारी बेद्दम का बना हुआ सूअर के क़त्लखाने को बंद कराया।

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