सदस्य:Anmol Kamath K/प्रयोगपृष्ठ

पृष्ठ भूमिका संपादित करें

मेरा नाम अन्मोल कामत क. है। मेरी सहेलियां मुझे अनू बुलातीं हैं। मैं एक पत्रकार बनकर मीडिया के माध्यम से लोगों को सकारात्मक रूप से प्रभावित करना चाहती हूं।

परिवार संपादित करें

हमरा परिवार कई पीढ़ियों से मैंगलुरु में बसा हुआ है। हमारे संयुक्त परिवार में मेरे अलवा पांच सदस्य है - दादा, दादी, माता, पिता और छोटा भाई। मेरे दादा और पिता दोनो इंजीनियर हैं। सत्तर साल के होने के बावजुद मेरे दादा, मेरे पिता के साथ, लोहे के कारखाने को संभालते हैं। मेरी माँ पूरे परिवार क ध्यान रखतीं हैं और हमारे घर को संभालती हैं। मेरा छोटा भाई नौवीं कक्षा में है और राज्य-स्तर का बैडमिंटन खिलाड़ी है।

हाल ही में हमने एक बिल्ली का बच्चे को पालना शुरु किया है जिसका नाम हमने सिल्वेस्टर रखा है।

शिक्षा संपादित करें

मैनें लेडी हिल विक्टोरिया विद्यालय से दसवी कक्षा पुरा किया। बचपन से मैंने कईं गायन,नृत्य और वाग्मिता के अनेक विद्यालय-स्तर से लेकर राज्य-स्तर के प्रतियोगिताओं में भाग लिया और कईं पुरस्कार जीते हैं।

ग्यारवी और बारहवीं कक्षा की पढ़ाई मैंने केनरा पी यु कॉलेज से प्राप्त किया जहा मेंने हिन्दी, अंग्रेज़ी, गणित, रसायन विज्ञान, जीवविज्ञान और भौतिक विज्ञान का अध्ययन किया। विज्ञान में छोटी आयु से दिलचस्पी होने के कारण मेंने इन विषयों का चयन किया था। यहा मुझे अनेक आयोजन समितियों का हिस्सा बनने का मौका भी मिला जिससे मेरे सर्वांगीण व्यक्तित्व का विकास हुआ।

बारहवीं कक्षा तक मैंगलुरु से पढ़ाई पूरा करके मैनें बैंगलोर के क्राइस्ट यूनिवर्सिटी के मीडिया विभाग में प्रवेश लिया।

रुचियां संपादित करें

मेरे खाली समय में मुझे उपन्यास और लघु कथाएँ पढ़ने का शौक है। मुझे अरुंधति रॉय और सुधा मूर्ति के लघु कथाएँ बहुत पसंद हैं और मैंने इनहे कई बार पढ़ी हैं। मुझे हैरी पॉटर,पर्सी जैक्सन,फ़ेमस ५ आदि जैसे रोमांचक श्रृंखलाए पढ़ना अच्छा लगता है। किताबों को पढ़ने के इस शौक से मेरी कल्पना शक्ति बढ़ गयी है और मेरे दृष्टिकोण को परिवर्तित कर दिया है। इसके अलावा मुझे अभिनय का भी शौक है। बचपन से मैंने अनेक नाटको और टेलीविज़न कार्यक्रमों में अभिनय किया है।



 

गौड़ सारस्वत ब्राह्मणों की शादी के रस्म रिवाज संपादित करें

नांदी पूजा संपादित करें

शादी के १० दिन पहले, इस पूजा से सभी देवताओं और पूर्वजो से आशिर्वाद का आह्वान किया जाता है ताकि शादी के सारे रस्म रिवाज बिना किसी विघ्न के सम्पूर्ण हो जाये। इस पूजा को दूल्हा और दुल्हन, दोनों के घरो मे आयोजित किया जाता है। पुरातन काल मे नांदी पूजा के दिन घर के प्रवेश द्वार के सामने ही 'छप्रा' यानि मंटप को स्थापित किया जाता था। यह घर में होने वाले शादी का संकेत था।

चावल और चार नरियल की एक थाली को तैयार की जाती है, जिसे 'पोलेरु' कहा जाता है। परिवार की शादीशुदा महिलाओं द्वारा इस 'पोलेरु' से दुल्हन, उसके माता पिता और धेद्दि की आरती की जाती है।

आमतौर पर 'धेद्दि', दुल्हन की छोटी बहन होती है, जिसके लिये उसके माता पिता रिशते ढूंढ़ रहे है। इस दिन शादी के कपदे और गेहनो की पूजा की जाती है। शादी के समाप्त होने तक इस 'पोलेरु' में शगुन के कपड़े और गहने पूजा घर मे रखकर हर दिन दीया जलाया जाता है।

यदुरु कंसणि संपादित करें

शादी के रस्मो की शुरुवात देवताओं और पूर्वजो से आशिर्वाद के आह्वान से होती है। इसके बाद दुल्हन का भाई दूल्हे के परिवार को शादी मे आमंत्रित करने के लिये उनके घर जाता है। शादी के मंटप पे पहुँचने पर दूल्हे और उसके परिवार का स्वागत, गुलाब जल, हल्दी-कुमकुम और फूलों से होता है और दुल्हन की बहनें भी थालियों में आईने रखकर द्वार पर खड़ी होती हैं। यह प्रबन्ध प्रतीकाकात्मक है, जहाँ गुलाब जल से लम्बी सफ़र के बाद सभी ताज़ा महसूस करे, और हल्दी-कुमकुम, फूलों और आईने से महाली अपना श्रृंगार कर सकें। दुल्हन के पिता दूल्हे को एक नारियल देते हैं और उसे हाथ पकड़कर मंटप तक ले जाते हैं।

फूल मुद्दि संपादित करें

मंटप तक पहुँचने पर दूल्हे को दुल्हन के पिता एक अंगूठी देकर उसकी आरती करते हैं। इसके बाद दूल्हा मंटप से बहर जाता है और दुल्हन और दूल्हे की माँ प्रवेश करते हैं। अब दूल्हे की माँ, दुल्हन को फूल देकर उसकी आरती करती हैं।

उडिदा महुरत संपादित करें

काला चना, या उडिदु, कोंकणी समाज का प्रमुख आहार है। इस रस्म में दुल्हन को काला चना को चक्की पर पीसना सिखाते हैं। दूल्हा भी इस रस्म को प्रतीकत्मक रूप रसे करता है ताकि वह पत्नी के बीमार होने पर उसकी सहयता कर सके।

घड़े उद्दा संपादित करें

इस रस्म मैं घर की महिलाएँ दुल्हन को कुएं से पानी खींचना सिखाते हैं। आगे की रस्मो के लिए कुएं से पांच घड़ों को पानी से भरकर रखा जाता है।

काशी यात्रा संपादित करें

इस प्रतीकात्मक रस्म मे दूल्हा, शादी के सारे रस्मो से थककर, सभी सांसारिक सुखों को त्यागकर, एकांत का जीवन पाने के लिए काशी की ओर प्रस्थान करता है। दुल्हन के पिता उसे रोक कर अनुरोध करते हैं कि वह वापस आकर उनकी बेटी से शादी करे।

वरमाला पूजा संपादित करें

दूल्हा को तैयार करके मंटप लाया जाता है। दुल्हन को मंटप तक उसके मामा ले आते हैं। दूल्हा-दुल्हन के बीच में अन्तर्पाट (शाल) को पकड़कर श्लोक पढ़े जाते हैं। शाल को नीचे रखते ही दूल्हा-दुल्हन एक दूसरे को वरमाला पहनाते हैं।

कन्यादान संपादित करें

इस रस्म में दुल्हन के पिता, दुल्हन के हाथ को दूल्हे के हाथ में सौंपतें हैं। इसके बाद दूल्हा, दुल्हन को मंगलसूत्र से शृंगार करता है।

सप्तपदी संपादित करें

दूल्हा-दुल्हन के बीच में चावल के सात ढेर रखे जाते हैं। श्लोक जपते हुए, दुल्हन ढेरों पे कदम रखते हुए आगे बढती है और यह सात प्रतिज्ञाओं का प्रतीक है। अब ये शादीशुदा जोड़ी के रूप मैं बाकी रस्मों को पूरा कर सकते हैं।

होन्टी भोर्चे संपादित करें

सात प्रतिज्ञाओं की रस्म के बाद, दुल्हन कपड़े बदल कर लगना कापड (शादी की साड़ी) पहन लेती है। उसके अर्द्धचंद्र बिंदी को पूर्णचंद्र बना दिया जाता है जो उसके शादीशुदा होने का प्रतीक है। इसके बाद दुल्हन को सास उपहार के रूप मे नारियल, फूल-कुमकुम और ब्लाउज का कपड़ा देती है।

वर उभर्चे संपादित करें

यह शादी की आखिरी रस्म है। दुल्हन के मामा और मामी, जोड़े को मंटप से ले आते हैं। फिर दुल्हन ज़मीन पे बेठती है और दूल्हा उसकी पल्लु पर बेठकर उस पर एक सोने क सिक्का बांधता है। यह प्रतीक है कि दूल्हा अपनी पत्नी को आय का ख्याल रखने देगा। अंत में, जोड़ी दोपहर के भोजन करके दूल्हे के घर की ओर प्रस्थान करते हैं।

चश्मदीद गवाह का बयान संपादित करें

 

पृष्ठ भूमिका संपादित करें

चश्मदीद गवाह का बयान या प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्य, अदालत में एक पीड़ित या दर्शक के द्वारा दिये हुए बयान को कहा जाता है जिसमे यह वर्णन हो कि उस व्यक्ति ने क्या देखा जो जांच के तहत विशिष्ट घटना के दौरान हुआ था। आदर्श रूप से घटनाओं की अनुस्मरण विस्तृत होते है; हालांकि, यह मामला हमेशा नहीं होता है। गवाह के दृष्टिकोण से क्या हुआ, यह दिखाने के लिए यह अनुस्मरण सबूत के रूप में प्रयोग किया जाता है।

अतीत में किसी घटना की यादों का एक विश्वसनीय स्रोत माना गया था, लेकिन हाल ही में इसकी कड़ी निंदा हुई है क्योंकि फोरेंसिक भी अब मनोवैज्ञानिकों को अपने दावे में समर्थन कर सकते हैं कि यादें और व्यक्तिगत धारणा अविश्वसनीय हैं, उनका छेड़छाड़ हो सकता है और वे पक्षपाती हो सकतीं हैं। इसके कारण, कई देश और राज्य अब अदालत में प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्य प्रस्तुत करने में बदलाव करने का प्रयास कर रहे हैं।

गलत स्रोत का गुणारोपण संपादित करें

किसी व्यक्ति की स्मृति अपराध के बाद देखी गई या सुनाई गई चीज़ों से प्रभावित हो सकती है। इस विकृति को घटना के बाद गलत सूचना का प्रभाव के रूप में जाना जाता है। [1] एक अपराध होने के बाद जब एक प्रत्यक्षदर्शी आगे आता है, विधि-प्रवर्तन पर्यावरण (जैसे मीडिया) से आने वाले प्रभाव से बचने के लिए अधिक से अधिक जानकारी इकट्ठा करने की कोशिश करता है। कई बार जब अपराध बहुत प्रचार से घिरा होता है, चश्मदीद गवाह गलत स्रोत के गुणारोपण या गलतफहमी का अनुभव कर सकते हैं जब गवाह यादों को स्मरण करने मै भूल करता है कि वह कहां की या कब की स्मृति है। यदि कोई गवाह अपनी पुनर्प्राप्त स्मृति के स्रोत की सही ढंग से पहचान नहीं सकता है, तो उस गवाह को विश्वसनीय नहीं माना जाता है।

पुष्टि पूर्वाग्रह संपादित करें

जहां कुछ गवाह किसी अपराध का शुरूवात से अंत तक साक्षी होते हैं, वहीं कुछ गवाह केवल अपराध के किसी हिस्से का साक्षी होते हैं। इन गवाहों की पुष्टि पूर्वाग्रह का अनुभव करने की अधिक संभावना है। पुष्टि पूर्वाग्रह से आने वाले विरूपण का कारण साक्षी अपेक्षाएं हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, लिंडहोल्म और क्रिश्चियसन ने १९९८[2] में पाया कि एक नकली अपराध के गवाह, जिन्होंने पूरे अपराध को नहीं देखा, फिर भी जो कुछ होने की उम्मीद की थी, उन्होंने उसे प्रमाणित किया। आम तौर पर पर्यावरण की जानकारी के कारण ये अपेक्षाएं व्यक्तियों में समान होती हैं। अमेरिका के परीक्षणों मे जब इस तरह के सबूत को गवाही के रूप में पेश किया जाता है, प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्य की विश्वसनीयता का मूल्यांकन सभी जूरी-सदस्यों पर पड़ता है। शोध से पता चला है कि नकली जूरी अक्सर झूठी और सटीक प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्य के बीच अंतर करने में असमर्थ होते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि जूरी के सदस्य अक्सर गवाह के आत्मविश्वास के स्तर को उनकी गवाही की सटीकता से सहसंबंधित करते हैं। लाब और क्ष्च् द्वारा इस शोध के सिंह वलोकन दिख ता है कि यह सटीकता का एक गलत नाप है। [3]

विधि-प्रवर्तन, कानूनी व्यवसाय, और मनोवैज्ञानिकों ने प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्य को अधिक विश्वसनीय और सटीक बनाने के प्रयासों में एक साथ काम किया है।

संदर्भ संपादित करें

  1. Loftus, Elizabeth F.; Palmer, John C. (1974). "Reconstruction of automobile destruction: An example of the interaction between language and memory". Journal of Verbal Learning and Verbal Behavior. 13 (5): 585–589. डीओआइ:10.1016/S0022-5371(74)80011-3.
  2. Lindholm, Torun; Christianson, Sven-Åke (1998). "Intergroup Biases and Eyewitness Testimony". The Journal of Social Psychology. 138 (6): 710–723. डीओआइ:10.1080/00224549809603256.
  3. Laub, Cindy; Bornstein, Brian H. (2008). "Juries and eyewitnesses". Encyclopedia of Psychology and Law. 1: 391–392. डीओआइ:10.4135/9781412959537.n153.